सिटी में पांच हजार से अधिक टेलीफोन के खंभे

सिटी में जहां तहां टेलीफोन के खंभे नजर आते हैं। आप्टिकल फाइबर के आने के बाद टेलीफोन के तारों की महत्ता खत्म होती चली गई। धीरे-धीरे तार भी गायब हो गए। कुछ जगहों से विभाग ने तार उतारा तो कुछ जगहों से स्मैकिये तार चुराकर कबाडिय़ों को दे आए, लेकिन खंभे खड़े रहे। इन खंभों की वजह से ट्रैफिक की प्रॉब्लम खड़ी हो रही है।

सरकारी खंभा, हो रहा प्राइवेट यूज

बीएसएनएल का खंभा लोगों के निजी कामों में आ रहा है। कहीं-कहीं फोन के पतले वायर नजर आते हैं, लेकिन अधिकांश जगहों पर इन खंभों पर नेताओं या संस्थाओं की होर्डिंग, प्रचार सामग्री नजर आती है। सरकारी खंभे का प्राइवेट यूज होने पर जब कभी जीएमसी एनक्रोचमेंट हटाने का अभियान चलाता है तो इनकी साफ-सफाई हो जाती है। प्राइवेट यूज में आ रहे इन खंभों के न हटने से अक्सर कहीं न कहीं ट्रैफिक की प्रॉब्लम खड़ी होती है।

दो कमिश्नर चले गए, तीसरे ने भी किया प्रयास

सिटी में ट्रैफिक की प्रॉब्लम को सॉल्व करने के लिए पूर्व कमिश्नर पीके महांति और के रविंद्र नायक काफी प्रयास कर चुके हैं। हर बार की मीटिंग में ट्रैफिक डिपार्टमेंट, नगर निगम, बिजली विभाग, पीडब्ल्यूडी सहित अन्य विभागों के जिम्मेदार एक दूसरे पर जिम्मेदारी टालते रहे। इसको देखते हुए के रविंद्र नायक ने सभी विभागों की मीटिंग बुलाई। इस दौरान सभी की जिम्मेदारियां तय हुई। इसमें बिजली और टेलीफोन के खंभे के हटाने की बात हुई लेकिन कोई काम नहीं हुआ। के रविंद्र नायक के तबादले के बाद जब कमिश्नर जेपी गुप्ता ने कार्यभार संभाला तो उन्होंने भी सभी विभागों की बैठक बुलाकर प्रॉब्लम सॉल्व करने को कहा। इस बैठक को भी हुए करीब छह माह बीत गए लेकिन खंभे जस के तस नजर आ रहे हैं।

यह हमारी जिम्मेदारी नहीं है। बिजली विभाग अपना खंभा हटा रहा है तो बीएसएनएल को भी कार्रवाई करनी चाहिए। सड़क और नालियों के किनारे खड़े खंभे प्रॉब्लम बने हुए हैं। इससे सड़कों की चौड़ाई बढ़ाने, साफ-सफाई करने में भी दिक्कत आती है।

आरके त्यागी, नगर आयुक्त

जीएमसी कोई विकल्प नहीं सुझाता है। हमसे रोड कटिंग का चार्ज वसूलने के बाद वर्क करने देते हैं। पोल पर डीपी बाक्स लगे हैं। वहीं से नये कनेक्शन भी दिए जाते हैं। पब्लिक अपने शॉप या घर के पास डीपी बाक्स लगाने नहीं देती। ऐसे में पोल को हटाने में प्रॉब्लम होगी।

टीएन शुक्ला, जीएम, बीएसएनएल