क्त्रन्हृष्ट॥ढ्ढ: कभी झारखंड में आतंक का पर्याय माने जाने वाले नक्सली कुंदन पाहन को सीबीआई कोर्ट से राहत मिली है. साल 2009 में नामकुम थाना क्षेत्र के लाली गांव में पुलिस और माओवादियों के बीच हुए मुठभेड़ केस में साक्ष्य के अभाव में कोर्ट ने नक्सली कुंदन पाहन को बरी कर दिया है. मामले की सुनवाई सीबीआई के विशेष न्यायाधीश एसके सिंह की अदालत में हुई. अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद नक्सली कुंदन पाहन को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया. बता दें कि इस मामले में अभियोजन पक्ष की ओर से 9 गवाहों की गवाही दर्ज कराई गई. वहीं बचाव पक्ष की ओर से 4 गवाहों की गवाही हुई थी.

कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा था

2 मई को पुलिस और माओवादिओं के बीच मुठभेड़ मामले में कोर्ट में सुनवाई हुई थी. अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था. इस मामले की सुनवाई के लिए अगली तारीख 4 मई निर्धारित की गई थी.

मुठभेड़ पूरी तरह से बताया गया फर्जी

कोर्ट में बहस के दौरान अभियोजन पक्ष ने अपनी दलील रखते हुए बताया कि मुठभेड़ रात में हुई थी. इस कारण वह किसी भी माओवादी को पहचान नहीं पाए. वहीं बचाव पक्ष के अधिवक्ता प्रभु दयाल किशोर ने कोर्ट को बताया कि यह मुठभेड़ पूरी तरह से फर्जी है. उस रात किसी भी तरह की कोई मुठभेड़ नहीं हुई थी. पिछली सुनवाई के दौरान नक्सली कुंदन पाहन की गवाही दर्ज कराई गई थी. जिस दौरान कुंदन पाहन ने न्यायालय को बताया था कि इस मुठभेड़ में वह शामिल नहीं था. इस मामले में उसकी कोई संलिप्तता नहीं है. इसी मामले पर 2 मई को कोर्ट में सुनवाई हुई थी. जिसमें अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया है था.

क्या है मामला

2009 में नामकुम थाना क्षेत्र के लाली क्षेत्र में पुलिस और माओवादियों के बीच मुठभेड़ का मामला सामने आया था. इस मुठभेड़ में कई पुलिसकर्मी और माओवादी घायल हुए थे. मुठभेड़ के दौरान किसी भी माओवादी की पुलिस की ओर से गिरफ्तारी नहीं की गई थी. इस मुठभेड़ को लेकर पुलिस ने कुंदन पाहन समेत सात लोगों को नामजद अभियुक्त बनाया है. जिनमें से कुंदन पाहन को छोड़ सभी अभियुक्त साक्ष्य के अभाव में पहले ही बरी हो चुके हैं.