- सूचना जुटाने के लिए इस्तेमाल करती पुलिस टीम

- वर्किग से वाकिफ होने पर उठाने लगते बेजा फायदा

<- सूचना जुटाने के लिए इस्तेमाल करती पुलिस टीम

- वर्किग से वाकिफ होने पर उठाने लगते बेजा फायदा

GORAKHPUR: GORAKHPUR: जिले में पुलिस के मुखबिर फिर से पब्लिक की मुसीबत बनने लगे हैं। पुलिस कर्मचारियों के संरक्षण में रहने वाले मुखबिरों की हरकतों से लोग परेशान हो रहे हैं। खुद को दरोगा-सिपाही समझने वाले इन मुखिबरों की वजह से पुलिस टीम की खूब किरकिरी हो रही। गीडा एरिया में पुलिस के दो मुखबिरों की करतूत पर अफसरों ने सख्ती का निर्देश दिया है। हालांकि बिना मुखबिरों के पुलिस की गाड़ी नहीं चल पाएगी।

पुलिस की वर्किंग से होते वाकिफ, उठाते बेजा फायदा

बदमाशों तक पहुंचने के लिए हर इलाके में पुलिस मुखबिर पालती है। अपराधियों की रेकी करने के लिए मुखबिर की जरूरत पड़ती है। ऐसे में थानेदार से लेकर सिपाही तक अपना-अपना मुखबिर सेट रखते हैं। जरूरत पड़ने पर वही मुखबिर पुलिस को सूचना मुहैया कराते हैं। ज्यादातर मामलों में पूर्व में अपराध में लिप्त रह चुके बदमाशों को पुलिस कर्मचारी अपना मुखबिर बना लेते हैं। इसके लिए वह मुखबिरों को परिवार के सदस्य से ज्यादा तवज्जो देते हैं। थानों पर उनकी हर पैरवी सुनी जाती है जबकि उनकी छोटी-मोटी गलतियों को नजरअंदाज किया जाता है। ऐसे में तमाम मुखबिर, पुलिस की वर्किंग को ठीक से जान जाते हैं। सिपाही- दरोगाओं का मुंहलगा होने की वजह से वह खुद को पुलिस कर्मचारी समझने लगते हैं। इसलिए वह भी मौका देखकर लाभ उठाते हैं। सादे कपड़ों में रहने वाले पुलिस कर्मचारियों की तरह कद-काठी, हेयर स्टाइल बनाकर वह खुद को पुलिस वाला जताने की कोशिश भी करते हैं। ऐसे में कई बार लोग मुखबिरों को ही असल पुलिस कर्मचारी समझकर उनका कहा मानने लगते हैं।

केस एक

क्राइम का दरोगा-सिपाही बनकर कर रहे थे वसूली

बेलीपार थाना का सिपाही और दरोगा बनकर वसूली करते हुए दो युवक पकड़े गए। सोमवार रात दवहिया टोला में दोनों पहुंचे। खुद को पुलिस वाला बताकर क्0 हजार रुपए मांगने लगे। पैसा न देने पर थाने जाने की धमकी दी। पीडि़त ने अपने पार्षद को सूचना दी तो उनकी पोल खुली। जांच में पता लगा कि दोनों एक दरोगा के लिए मुखबिरी करते थे। पुलिस की पूछताछ में अपने को क्राइम ब्रांच का दरोगा और सिपाही बताने लगे थे।

केस दो

सीओ के लिए करता था मुखबिरी, जमाता था धौंस

गोरखपुर में तैनात रहे एक सीओ के लिए मुखबिरी करने वाले युवक को पुलिस ने जेल भेजा था। पुलिस को सूचना देते-देते वह सीओ का करीबी हो गया। इस वजह से उसे कई दरोगा और सिपाही सलाम ठोंकने लगे। इस चक्कर में उसने वसूली शुरू कर दी। शिकायत पहुंचने पर उसके खिलाफ कार्रवाई हुई थी।

मुखबिर पालने को मिलता बजट, पुलिस करती खर्च

इलेक्ट्रानिक सर्विलांस के बढ़ते प्रभाव ने मुखबिरों की जरूरत कम कर दी है। लेकिन फिर उनकी अहमियत पूर्वत बनी हुई है। जिस थाना प्रभारी के पास जितने मुखबिर होते हैं। उसे उतना ही मजबूत माना जाता है। थानों के रेग्युलर काम से लेकर अपराधियों की धर-पकड़ तक पुलिस अपने मुखबिरों की मदद लेती है। शासन की तरफ से मुखबिर पालने के लिए बजट भी दिया जाता है। लेकिन यह बजट इतना कम होता है उसकी भरपाई करने के लिए थानेदार को अलग से फंड जुटाना पड़ता है। पुलिस ही नहीं बल्कि कई सुरक्षा एजेंसियां अपने मुखबिर पालती हैं।

न रहे तो अटकेगा काम

महकमे से जुड़े लोगों का कहना है कि मुखबिरों के बिना पुलिस काम नहीं चल पाएगा। दिनभर तमाम प्रकार की सूचनाओं की जरूरत पड़ती है। ऐसे में मुखबिर पालने ही पड़ते हैं। उनकी कमी से पुलिस के कई काम बाधित हो जाएंगे। कई बार ऐसा होता है कि एक थाना के खास मुखबिर को दूसरे थाना की पुलिस किसी न किसी मामले में अरेस्ट करके जेल भेज जाती है। इसका काफी असर उनके कामकाज में पड़ता है। आपस में टशन भी बढ़ जाती है। इसलिए अक्सर यह होता है कि पुलिस टीम अपने हर मुखबिर के बारे में सूचना शेयर कर लेती है। कुछ लोगों का कहना है कि तमाम गुप्त सूचनाओं को जानने वाले मुखबिर अवैध कमाई करने में मदद भी करते हैं।