चुनाव में लाइसेंसी असलहों को जमा कराने का बनाते दबाव

2014 में व्यापारी ने चिलुआताल थाना पर जमा कराई थी बंदूक

GORAKHPUR: इलेक्शन कोई हो, आचार संहिता लागू होने पर लाइसेंसी असलहों को जमा कराने का दबाव बढ़ जाता है। अपने-अपने थाना क्षेत्रों में पुलिस सभी लाइसेंसी असलहाधारकों बंदूकें जमा कराने की हिदायत देती है। थानेदार से लेकर बीट सिपाही तक को फिक्स टारगेट पूरा करना होता है। इसलिए पुलिस कर्मचारी दौड़भाग कर असलहे जमा कराते हैं। लेकिन थाना में जमा असलहा चोरी होने का मामला सामने आने से लाइसेंस होल्डर परेशान हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में चिलुआताल थाना में जमा कराई गई बंदूक मालखाना से लापता हो गई है। पीडि़त की शिकायत पर एसएसपी ने जांच का निर्देश दिया है। लेकिन थानेदार सहित अन्य जिम्मेदार झूठ पर झूठ बोल रहे हैं। थानेदार का दावा है कि बिजनेसमैन की बंदूक लौटा दी गई है। जबकि, लाइसेंसधारी कह रहा है कि उसे बंदूक मिली ही नहीं है। मामले की जांच कैंपियरगंज सीओ का प्रभार देख रहे एएसपी प्रमोद रोहन बोत्रे कर रहे हैं।

ऐसे कैसे थाने से गायब हो गई बंदूक

जंगल नकहा नंबर एक निवासी बिजनेसमैन प्रभुनाथ के पास दो नाली लाइसेंसी बंदूक है। 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान पुलिस ने असलहा जमा कराने को कहा। 23 मार्च को उन्होंने थाने में बंदूक जमा करा दी। थाना से उनको बंदूक जमा कराने की रसीद भी दी गई। इलेक्शन खत्म होने के बाद जब वह अपनी गन लेने पहुंचे तो मुंशी-दीवान के अवकाश पर होने की बात कहकर बाद में बुलाया गया। करीब चार साल में 40 से अधिक चक्कर लगा चुके व्यापारी की बंदूक नहीं मिली तो उन्होंने एसएसपी को जानकारी दी। तब एसएसपी ने जांच का निर्देश दिया। लेकिन कोई लाभ न मिलने पर पीडि़त ने सात फरवरी को फिर से कप्तान से मुलाकात की। लेकिन व्यापारी को बंदूक नहीं मिल सकी। व्यापारी का कहना है कि उसे बंदूक नहीं मिली जबकि पुलिस दावा कर रही कि बंदूक लौटा दी गई है।

थाने में नहीं होता रखरखाव, टूटा लोगों का भरोसा

लाइसेंसी असलहों के खरीदने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। लाइसेंस बनवाने से लेकर बंदूक खरीदने तक लोगों के पसीने छूट जाते हैं। इसलिए लोग चाहते हैं कि चुनाव में बंदूक न जमा करानी पड़े। थानों पर रख-रखाव और मेंटीनेंस का अभाव होता है। इससे असलहों में जंग लगने से लेकर अन्य तकनीकी खराबियां आ जाती है। चिलुआताल थाना में बंदूक गायब होने की घटना के बाद लोग रिवाल्वर, पिस्टल और बंदूकों की सुरक्षा को कशमकश में पड़े हैं। दुकानों पर बंदूकों की देखभाल तो हो जाती है लेकिन उसे थाना से ज्यादा सुरक्षित नहीं माना जा सकता है।

यह आती प्रॉब्लम

- चुनाव के लाइसेंस असलहाधारियों से खतरे का अंदेशा जताया जाता है।

- चुनाव के दौरान थानों पर मालखाना में बंदूक जमा कराया जाता है।

- मालखानों में जमा असलहे कम से कम तीन माह तक पड़े रहते हैं।

- चुनाव आचार संहिता खत्म होने पर लोग अपने असलहे घर ले जाते हैं।

- बारिश होने, सीलन लगने की वजह से बंदूकों में जंग लग जाती है।

- समुचित रख-रखाव के अभाव और उठा-पठक में असलहों प्रभावित होते हैं।

फैक्ट फीगर

जिले में कुल लाइसेंसी असलहे- 22207

थाना जहां पर असलहे जमा होते- 26

एक नाली बंदूकों की तादाद - 15000

शहर में बंदूक की दुकानें-

चुनाव आने पर असलहों को जमा कराने का दबाव पुलिस बनाती है। दुकान पर चोरी होने का खतरा होने की वजह से हम लोग थानों पर जमा करा देते हैं। लेकिन थानों से बंदूक चोरी हो जाएगी तो कहां लेकर जाएंगे।

धीरेंद्र सिंह बघेल, मेडिकल कालेज

थानों पर असलहों की देखभाल में लापरवाही होती है। दुकान पर व्यवस्था होती है कि वह निर्धारित शुल्क लेकर देखभाल करते हैं। हर दुकान की एक क्षमता है। इसलिए ज्यादातर लोग थानों पर बंदूक जमा करा देते हैं।

ज्ञानेंद्र सिंह, तारामंडल

ऐसा नियम बनाया जाना चाहिए कि चुनाव में भी लोग लाइसेंसी असलहा घर पर रख सकें। बार-बार दरवाजे पर पुलिस दस्तक देती है। इससे परेशान होकर असलहा जमा कराना पड़ता है। अब थाना से लाइसेंसी बंदूक गायब हो जा रही तो क्या किया जाए।

मनोज कुमार श्रीवास्तव, शाहपुर

यदि बंदूक को थाने पर जमा कराया गया है तो उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी पुलिस की होती है। कुछ दिन पहले सिद्धार्थनगर जिले में पुलिस का असलहा भी गायब हो गया था। इससे पब्लिक का भरोसा टूट रहा है।

दिलीप कुमार, जेल रोड

एसएसपी का वर्जन

बिजनेसमैन की शिकायत है कि उसकी बंदूक थाना में जमा थी। सीओ कैंपियरगंज को मामले की जांच सौंपी गई है। जल्द ही इसकी रिपोर्ट आ जाएगी। इस मामले में जो भी दोषी पाया जाएगा। उसके खिलाफ कड़ा एक्शन लिया जाएगा।

डॉ। सुनील गुप्ता, एसएसपी