-पार्टियां लड़ रही है टोपी की जंग, हर कोई पब्लिक को टोपी पहनाने के जुगाड़ में

-अलग-अलग रंगों की टोपियां सजी दिख रही हैं कार्यकर्ताओं के सिर पर

VARANASI: चुनाव जीतने के लिए क्या कुछ नहीं करना पड़ता है। अब तक के चुनावों में कैंडीडेट्स एड़ी-चोटी का जोर लगाया करते थे। मगर इस बार एड़ी-टोपी को जोर लगा रहे हैं। जी हां, इस बार ज्यादातर पार्टियां अपनी पार्टी के नाम, सिम्बल, स्लोगन वाली टोपी को यूएसपी के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं। आप भी देखिये क्या-क्या हो रहा है सबको टोपी पहनाने के लिए

टोपी बना रही है टेम्पो

'सिर पर टोपी लाल हाथ में रेशम का रुमाल हाय तेरा क्या कहना' पुरानी हिन्दी फिल्म के इस गाने में सिर पर सजने वाली टोपी से हीरो की शख्सियत का बखान किया गया है। जी हां, यह टोपी किसी भी व्यक्ति की खासियत में कई गुना बढ़ा देती है। टोपी के अलग-अलग रूप हैं। कहीं साफा तो कहीं पगड़ी। कुछ नहीं तो गमछे को ही टोपी का रूप दिया और सिर पर चढ़ा लिया। खास यह कि इस चुनावी दौर में टोपियों ने अपना खास महत्व बनाया है। रंग-बिरंगी टोपियां लोगों के सिर चढ़ रही हैं। हर पार्टी की चाहत लोगों को अपनी टोपी पहनाने की है। यही कारण है कि पार्टियों ने अलग-अलग रंग और टाइप की टोपियों को अडॉप्ट किया है।

एक टोपी के कई कई रंग

भइया टोपी एक ही है लेकिन चुनावी माहौल ने उसकी रंगत में विविधता ला दी है। कोई केसरिया टोपी को सिर पर सजा रहा है तो कोई सफेद टोपी को। किसी ने लाल रंग की टोपी को अपनी खासियत बनाया है तो कोई नीले रंग का टोपी को अपने सिर पर सजा कर चल रहा है। तिरंगी टोपी की लोगों सिर सजी दिख रही है। यानि कि टोपी से व्यक्ति की विचारधारा की पहचान हो जा रही है। केसरिया टोपी हो तो बीजेपी, सफेद हो तो आम आदमी पार्टी और नीली हो तो बसपा, लाल हो तो समाजवादी पार्टी और तिरंगी हो तो कांग्रेस।

कवायद कि हर सिर पर हमारी टोपी

इन दिनों पार्टियों की कवायद सिर्फ एक है कि हर सिर पर हमारी टोपी हो। पार्टी की टोपी पहनने का मतलब पार्टी को समर्थन है। जिसके सिर टोपी वह उस पार्टी का वोटर। यही कारण है कि पार्टियां बैनर, पोस्टर, झंडे से अधिक अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों को टोपी पहनाने की होड़ में लगी है। किसी भी पार्टी की रैली हो, आपको उस पार्टी के खास रंग में रंगी टोपियों का रेला दिखायी देगा। एक तरह से पार्टियां टोपी की जंग लड़ रही हैं। चुनावी माहौल से बैनर, पोस्टर, झंडे, कम हुए हैं लेकिन टोपियों की डिमांड बढ़ गयी है।

डिमांड अप लेकिन क्वालिटी डाउन

अमूमन टोपी को लेाग धूप आदि से बचने के लिए इस्तेमाल करते हैं। लेकिन आज के चुनावी टोपियों का इस्तेमाल पार्टियां अपने प्रचार के लिए कर रही हैं। अब टोपियों पर आज की राजनीति का रंग चढ़ा तो उनकी क्वॉलिटी तो डाउन होनी थी। पहले के जमाने पंडित जवाहर लाल नेहरु, लाल बहादुर शास्त्री ने जो टोपी पहनी वह निश्चित रूप से आज की टोपी की क्वॉलिटी से कई गुना बेहतर थी। लेकिन आज की टोपियां कागज के जैसी हो गयी हैं। न तो इनसे सिर को धूप को बचाया जा सकता है और न ही ये किसी दूसरे काम में आ सकती है। पार्टियां अपने चुनावी खर्च में इजाफे को रोकने के लिए मोल्डेड टोपियां बांट रही हैं। सिलने-सिलाने का भी झंझट नहीं।

जमकर बंट रही हैं टोपियां

पार्टी वाले अपने अपने खास रंग में रंगी टोपियों को जमकर बांट रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक अब तक बनारस में कुल मिलाकर लगभग आठ लाख टोपियां बांटी जा चुकी है। कौन पार्टी कितनी टोपी बांट रही है या कितनी बांट चुकी है इसका तो उनके पास कोई हिसाब नहीं है और न ही वे बताना चाहती हैं लेकिन इतना तो तय है कि हर पार्टियों ने अपने चुनाव प्रचार खर्च में टोपियों के लिए एक खास बजट एलाट किया है। पार्टी वाले जहां भी जा रहे टोपी बांट रहे हैं।

एक टोपी की कीमत तकरीबन एक रुपये

चुनाव प्रचार अभियान में इस्तेमाल में खप रही एक टोपी की कीमत तकरीबन एक रुपये आ रही है। कुछ पार्टी वाले इससे अधिक कीमत की टोपी का इस्तेमाल भी प्रचार के लिए कर रहे हैं। कमोबेश सभी की क्वालिटी एक जैसी है। एक पार्टी के सीनियर लीडर ने बताया कि उनकी पार्टी ने अधिकतर टोपियां दिल्ली और आसपास के शहरों से बन कर आ रही हैं। वहीं पर उनका प्रिंट भी कराया जा रहा है। उन्होंने बताया कि बाहर से बल्क ऑर्डर देने पर टोपियां सस्ती पड़ रही हैं वहीं अगर बनारस में इनको तैयार कराया जाय तो इनकी कीमत लगभग दुगनी हो जा रही है।

सिर्फ प्रचार ही नहीं झगड़े का भी कारण

टोपियों के जरिये सिर्फ पार्टी का प्रचार ही नहीं हो रहा है बल्कि ये कार्यकर्ताओं के बीच झगड़े का भी कारण बन रही है। कहीं एक पार्टी की टोपी लगाये हुए कार्यकर्ता दिखे तो दूसरे पार्टी के कार्यकर्ताओं भड़क उठे। अभी हाल में शहर में कई घटनाएं हुई हैं जिसमें पार्टी कार्यकर्ताओं की टोपियों को छीना गया। सिर से टोपी छिनी यानि की इज्जत पर हाथ डाला। बस फिर क्या था शुरु हो गया बवाल।