उमर के ट्वीट

-3 अगस्त : ‘क्या आप परवेज को जिंबाब्वे सिर्फ उनका मनोबल कम करने के लिए लेकर गए हैं. अगर आप ऐसा देश में ही करते तो यह सस्ता पड़ता.’

-1 अगस्त : ‘रसूल को अब तक एक भी मैच में नहीं खिलाया जाना बहुत निराशाजनक है. बीसीसीआइ इस युवा को खेल के मैदान में हुनर दिखाने का एक मौका दे.’

-दो माह पहले : ‘अगर रसूल में काबिलियत होगी तो वह टीम इंडिया के लिए जरूर खेलेगा. उसे बेचारा नहीं बनाएं. वह अपने खेल के दम पर खेलेगा.’

खेल राजनीति

-खेलों में क्षेत्रीयता और राजनीति को मत लाया जाए : कीर्ति आजाद

-उमर और थरूर ने परवेज को नहीं खिलाने पर किए थे ट्वीट

नहीं लानी चाहिए हर चीज में क्षेत्रीयता

रसूल के चयन में राजनेताओं के ट्वीट से गुस्साए पूर्व क्रिकेटर और सांसद कीर्ति आजाद ने कहा कि हर चीज में क्षेत्रीयता को नहीं लाना चाहिए. उन्होंने कहा कि क्रिकेट संचालन में वैसे ही राजनीतिज्ञों का जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप है. कम से कम अंतिम एकादश के चयन से तो राजनेताओं को दूर ही रहना चाहिए. उन्होंने कहा कि अंतिम एकादश का चयन टीम संयोजन, पिच की स्थिति और मौसम के आधार पर होता है और इसी को देखते हुए कप्तान विराट कोहली ने पांचों मैचों के लिए अपने हिसाब से टीम चुनी. उन्होंने कहा कि जब हम 1983 विश्व कप खेलने इंग्लैंड गए थे तो 14 सदस्यीय दल में सिर्फ एक खिलाड़ी सुनील वाल्सन को मौका नहीं मिल पाया था. उन्होंने कहा कि कप्तान भारत की जीत के लिए टीम चुनता है न कि किसी राज्य के खिलाड़ी को प्रतिनिधित्व देने के लिए अंतिम एकादश चुना जाता है.

रसूल स्पिनर हैं, बल्लेबाजी भी

रसूल मूलत: स्पिनर हैं, जो बल्लेबाजी भी कर लेते हैं. उनकी जगह टीम में तभी बन सकती थी जब अमित मिश्रा या रवींद्र जडेजा में से किसी एक को बाहर किया जाता. अमित शानदार फॉर्म में हैं और उन्होंने शनिवार को छह विकेट झटके. यही नहीं उन्होंने यहां एक सीरीज में सबसे ज्यादा विकेट लेने के जवागल श्रीनाथ के रिकॉर्ड की बराबरी भी की. जडेजा एक ऑलराउंडर हैं और वह गेंद के साथ बल्ले से भी शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं. इसी कारण पहली बार राष्ट्रीय टीम का हिस्सा बनने वाले रसूल को जिंबाब्वे दौरे में एक भी मैच खेलने का मौका नहीं मिल पाया. शनिवार के मैच में भी अंतिम एकादश में दो बदलाव किए गए जिसमें अंबाती रायुडू और रोहित शर्मा की जगह अजिंक्य रहाणे और शिखर धवन को शामिल किया गया.

पहले भी कई क्रिकेटरों को नहीं मिला है मौका

ऐसे कई क्रिकेटर हैं जिन्हें अपने पहले दौरे में टीम इंडिया के अंतिम एकादश में जगह नहीं मिली. 1983 वल्र्ड कप में सुनील वाल्सन और इससे पहले इंग्लैंड दौरे में गए पश्चिम बंगाल के गोपाल बोस को बिना खेले ही वापस आना पड़ा था. इसके अलावा भी कई ऐसे खिलाड़ी हैं जो अपने पहले दौरे में डेब्यू नहीं कर पाए. अगर मौकों की बात करें तो अमित मिश्रा ही काफी दुर्भाग्यशाली रहे. उन्होंने 13 अप्रैल 2003 में पहला वनडे खेला था और उन्हें 10 साल के करियर में अब तक सिर्फ 19 मैच खेलने को मिले हैं.

Report by: Abhishek Tripathi (Dainik Jagran)