जुलाई का महीना साउथ वेस्ट मानसून के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। क्योंकि इस समय होने वाली बारिश देश केअधिकांश भाग को कवर करती है। इसलिए इस महीने में होने वाली खराब बारिश मानसून के सामान्य से कमजोर होने का कारण बनती है। अब जब भी ये पाया जाता है कि बारिश 90 परसेंट से कम हुई है तो मानसून कमजोर पड़ जाता है। इसका असर सबसे ज्यादा कर्नाटक के इंटीरियर इलाकों और वेस्ट उत्तर प्रदेश तक सबसे ज्यादा होता है। अल नीनों के प्रभाव के चलते जब जब जुलाई में खराब वर्षा हुई है ये पाया गया है कि 30 में से 21 मेट सबडीविजंस को वीक मानसून का शिकार बनना पड़ा है।

अगर अपवाद के तौर पर ओडिसा, कुछ हिमालयन डिवीजंस, वेस्ट बंगाल, आसाम और मेघालय के कुछ भागों को छोड़ दिया जाए तो बाकी देश में 10 में से 9 अलनीनो प्रभावित वर्षों में खराब बारिश से मानसून भी प्रभावित हुआ है। अलनीनो के असर तक बारिश के 90 प्रतिशत मौकों पर कमजोर होने की संभावना होती है। हालाकि इसमें ओडिसा, कोंकण, गोआ और छत्तीसगढ़ इसमें भी अपवाद रहे हैं। जबकि हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी राजस्थान का इसका सबसे ज्यादा असर पड़ता है। 10 में 7 अलनीनो वर्षों में इन स्थानों पर 90 फीसद से कम वर्षा दर्ज की गयी है।  

जुलाई के महीने में ही इसका सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है क्योंकि भारत के अधिकांश भागों में जुलाई अगस्त के ही महीनों में एक तीहाई तक वर्षा होती है। जो जून में होने वाली मानसून की वर्षा से करीब 40 प्रतिशत और 70 प्रतिशत सितंबर अधिक है।

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