'No news' means 'good news'

एक ऐसी जगह, जहां से किसी तरह की खबर का न आना सबसे अच्छी खबर मानी जाती है। जहां छह महीने दिन ही दिन रहता है और छह महीने तक रात का अंधेरा छाया रहता है। जी हां, ऐसी जगह अपनी धरती पर ही है। बिरले ही होते हैं, जो वहां जाते हैं और सेफली वापस लौट आते हैं। बीएचयू बॉटनी डिपार्टमेेंट के एक रिसर्च स्कॉलर प्रशांत कुमार सिंह ऐसे ही खुशकिस्मत हैं। दुनिया के सुदूर नार्थ पोल (उत्तरी ध्रुव) के पास स्वेलबर्ड एक जगह है। नार्वे कंट्री में पडऩे वाले इस जगह छह महीने दिन और छह महीने की रात होती है। इस जगह प्रशांत ने पूरे 32 दिन बिताये। ब्लू ग्रीन एल्गी पर अपने रिसर्च वर्क के चलते उन्हें वहां जाने का मौका मिला। लौटने पर उन्होंने अपने एक्सपीरियंस आई नेक्स्ट से शेयर किया। उन्होंने बताया कि इससे कठिन जिदंगी की कल्पना मैंने नहीं की थी।

32 दिनों तक रात नहीं देखी

 

30 जुलाई से शुरू हुई journey

प्रशांत बताते हैं कि ब्लू ग्रीन एल्गी पर उनके काम को देखकर यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ बोहेमिया चेक रिपब्ल्कि ने उन्हें इस खास रिसर्च प्रोजेक्ट पर जाने का न्योता दिया। बीएचयू में उनके सुपरवाइजर प्रो एके  मिश्रा, जिनके अंडर में रिसर्च वर्क चल रहा है, उन्होंने उत्साह बढ़ाया। 30 जुलाई को वाराणसी से जर्नी शुरू हुई। मुंबई, फ्रैंकफर्ट, ओस्लो होते हुए वह नार्वे पहुंचा। नार्वे से स्वेलबर्ड यानि रिसर्च डेस्टिनेशन तक पहुंचने के लिए तीन घंटे शिप की यात्रा करनी पड़ी।

सामने थी दूसरी दुनिया

स्वेलबर्ड पर पहुंचने पर उनके सामने दूसरी दुनिया का नजारा था। इस दुनिया को बयां कर पाना शायद संभव नहीं है। चारों तरफ बर्फ ही बर्फ। दूर-दूर तक कहीं और कुछ भी नहीं। रिसर्च टीम में 14 मेंबर्स थे। इसमें सिर्फ प्रशांत ही एशियन था, बाकी सारे युरोपियन कंट्रीज से थे। शुरू के कुछ दिन तक तो बहुत प्राब्लम्स हुईं लेकिन कुछ दिनों बाद धीरे-धीरे सब नॉर्मल हो गया। प्रशांत ने बताया कि हम लोगों को वहां तीन घंटे हट में रिलैक्स करने के लिए मिलते थे। रात होती नहीं थी, इसलिए सोने का कोई फिक्स शेड्यूल नहीं था। खाने पीने से लेकर हर चीज की दिक्कत थी।

32 दिनों तक रात नहीं देखी

हर कदम पर था खतरा

रिसर्च वर्क के लिए हमें बेस स्टेशन से दूर तक जाना होता था। प्रशांत ने बताया कि वहां से लौटना होगा कि नहीं, इस बात की कोई गारंटी नहीं थी। मुझे जर्नी शुरू करने से पहले ही बता दिया गया था कि जहां आप जहां जा रहे हैं, वहां से 'नो न्यूजÓ का मतलब 'गुड न्यूजÓ है। हर कदम पर खतरा था। क्लाइमेट तो खतरे का कारण बनता ही था। वहां पाये जाने वाले पोलर बियर भी हमारे सबसे बड़े दुश्मन थे। अगर पोलर बियर ने हमला कर दिया तो उनसे बच निकलना काफी मुश्किल था। बचाव के लिए हमें शूटिंग की स्पेशल टे्रनिंग दी गई थी। टीम के पांच सेलेक्टेड शूटर्स को राइफल दी गई थी। उसका इस्तेमाल वो किसी भी विपरीत परिस्थिति में कर सकते थे।

जब पोलर बियर से हुआ सामना

प्रशांत ने बताया कि हमारे वहां पहुंचने के करीब दस दिन बाद पहली बार हमारा सामना पोलर बियर से हुआ। समुद्र के तट पर एक व्हेल की लाश पड़ी थी। उसे खाने के लिए पोलर बियर आये थे। वह हमसे करीब 500 मीटर दूर था। पोलर बियर देखने की हमारे मन में बहुत उत्सुकता थी, लेकिन डर भी बहुत लग रहा था। वे दो की संख्या में थे। एक बड़ा और एक छोटा बियर था। सफेद बियर देखने में इतने खूबसूरत थे कि उन्हें देख कर इस बात का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता था कि वे इतने खतरनाक भी हो सकते हैं।

32 दिनों तक रात नहीं देखी

खाने में पसंद ना पसंद नहीं

स्वेलबर्ड बेस कैम्प में सबसे बड़ी दिक्कत खाने-पीने को लेकर थी। आपके पास वेज खाने के नाम पर कुछ भी नहीं था। जो भी था नॉनवेज ही था। वह भी सील बंद। बस डिब्बे को खोलिये, पानी में उबालिये और खा जाइये। कई बार तो यह भी पता नहीं चलता कि आप किस जानवर का मांस खा रहे हैं। बकौल प्रशांत, ठंड इतनी थी कि हर किसी को ड्रिंक करना जरूरी था। लेकिन मैं इस मामले में खुशकिस्मत थे, क्योंकि मैं हमेशा ड्रिंक से दूर ही रहा।

Sea diving का मिला मौका

प्रशांत ने बताया कि रिसर्च के लिए हमें सी डाइविंग का भी मौका मिला। डाइविंग सूट में हमने करीब 30 मिनट तक समुद्र के अंदर गुजारा। वहां की सुंदरता कुछ अलग ही थी। तरह-तरह की रंगीन मछलियां और उतने ही तरह की पौधे। लेकिन आपके पास खूबसूरती निहारने का अधिक मौका नहीं था। अगर आप अपने रास्ते से जरा भी चूके नहीं कि मौत आपके सामने

अगले साल फिर होगा जाना

प्रशांत ने रिसर्च से रिलेटेड बहुत से सैंपल वहां से कलेक्ट किये हैं। उन्होंने बताया कि ब्लू ग्रीन एल्गी पर रिसर्च करते हुए हमने पाया कि इसमें क्लाइमेट के अनुसार खुद को बदल लेने की गजब की क्षमता है। मेरा रिसर्च भी इसी टॉपिक पर बेस्ड है। फिलहाल अपना रिसर्च पूरा करूंगा। अगले साल फिर वहां रिसर्च पर जाने की संभावना है।