एक पर्चे ने बदल दी हरिद्वार निवासी आबिद की जिंदगी

रुह नूर और अल्लाह ताला का दीदार पढ़ गुस्से में संत ज्ञानेश्वर से मिले

मिले तो बन गए शिष्य, 1987 से कर रहे हैं संगम तीरे कल्पवास

ALLAHABAD: एक छोटी सी घटना या बात इंसान के जीने के मायने बदल देती है। इसका जीता जागता उदाहरण तम्बुओं की नगरी में दिखा। मुस्लिम होकर सदानंद तत्वज्ञान परिषद के शिविर की जिम्मेदारी संभालने वाले 67 वर्षीय आबिद आलम खां का जीवन भी एक पर्चे ने पूरी तरह से बदल दिया। उनका जीवन इस कदर बदल चुका है कि संत ज्ञानेश्वर जी परमहंस के संपर्क में आकर माघ मेले में एक या दो नहीं बल्कि 20 वर्ष से कल्पवास कर रहे हैं। इस दौरान वे जप-तप व अनुष्ठान में बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं।

पूजा भी और नमाज भी

आबिद संगम अपर मार्ग पर स्थित परिषद के शिविर की जिम्मेदारी 1988 से संभाल रहे हैं। नियमित पूजा पाठ और एक वक्त का सात्विक भोजन सहित कल्पवास के नियमों का पूरी तरह से पालन भी करते हैं। कल्पवास के साथ वे अपने धर्म का भी बखूबी निवर्हन करते हैं। नमाज पढ़ते हैं और रोजा भी रखते हैं।

'रूह नूर और अल्लाह का दीदार'

यह बात 1987 की है। आबिद आलम खां पत्नी के संग हरिद्वार स्थित ऋषिकुल आयुर्वेदिक कालेज में रहते थे। एक दिन अचानक उनके मित्र ने संत ज्ञानेश्वर जी परमहंस का पर्चा दिया। उसकी दूसरी पंक्ति में रूह नूर और अल्लाह ताला का दीदार लिखा हुआ था। इसे देखकर आबिद चौंक गए।

लड़ने पहुंचा था, बन गया शिष्य

आबिद बताते हैं पर्चा पढ़ने के बाद वे गुस्से में आ गए और यह जानने के लिए संत ज्ञानेश्वर के आश्रम में पहुंचे कि ऐसा कौन शख्स है जो अल्लाह ताला का दीदार कराने का दावा कर रहा है। संत से आमने-सामने बात शुरू हुई तो प्रभावित हो गए और जब आश्रम से लौटे तो संत के शिष्य बन चुके थे। 1988 से माघ मेला आने का क्रम शुरू हुआ।