उन्हें वकील बनाने की तैयारी उनकी किस्मत ने भी कर ली थी और खुद पृथ्वीराज ने भी. पेशावन में एडवड्र्स कॉलेज से बीए करने के बाद पृथ्वीराज लॉ का एक साल का कोर्स भी कर चुके थे जब उन्हें महसूस हुआ कि उन्हें थिएटर करना पसंद है. 1928 में उन्होंने अपनी आंटी से कुछ पैसे उधार लिए और बॉम्बे आ गए.

यूं तो फिल्मों में उनकी शुरुआत 1929 में एक एक्स्ट्रा के तौर पर ही हो गई थी और जल्दी ही वह लीड रोल में भी दिखे, लेकिन नौ साइलेंट फिल्में करने के बाद भी पृथ्वीराज को पहचाना गया हिंदुस्तान की पहली बोलती फिल्म आलम आरा में किए गए एक साइड रोल से. 1937 में फिल्म विद्यापति ने पृथ्वीराज के एक्टिंग टैलेंट को दुनिया के सामने उभारा.

इंडिया की पहली थिएटर पर्सनालिटी: पृथ्वी थिएटर (जिसे पृथ्वीराज ने 1944 में शुरू किया था) में करीब 2,662 प्ले किए और इन सबमें लीड रोल किया पृथ्वीराज ने. 1971 में हिंदी सिनेमा में अपने योगदान के लिए 1971 में उन्हें दादा साहब फाल्के, अवार्ड से सम्मानित किया गया. 29 मई 1972 को जब इस सितारे ने आखिरी सांस ली तो इसके साथ ही एक युग का भी अंत हो गया युग जिसमें भारतीय सिनेमा ने अपनी अलग पहचान बनाई.