विकेटकीपर से करियर की शुरुआत

कोलकाता के मारवाड़ी परिवार में जन्में जगमोहन डालमिया ने स्कॉटिश चर्च कॉलेज से पढ़ाई शुरु की। वहीं कॉलेज क्रिकेट टीम में डालमिया ने विकेटकीपर के तौर पर कई मैच खेले। धीरे-धीरे वह क्लबों में भी खेलने लगे। जिसमें कि एक बार उन्होंने डबल सेंचुरी भी बनाई थी। बस यहीं से क्रिकेट के प्रति उनका प्यार देखा जाने लगा। हालांकि क्रिकेट करियर उनका ज्यादा लंबा नहीं चल पाया क्योंकि वह अपने पिता की कंपनी एमएल डालमिया एंड को के साथ जुड़ गए। लेकिन उनके अंदर क्रिकेट की प्रति दीवानगी अभी कम नहीं हुई थी।

BCCI का नया दौर शुरु

जगमोहन डालमिया ने 1979 में BCCI ज्वॉइन की थी। कुशल रणनीतिकार माने जाने वाले डालमिया ने 1987 में भारत की सह-मेजबानी में रिलायंस वर्ल्ड कप और 1996 में विल्स वर्ल्ड कप का सफलतापूर्वक आयोजन करवाकर काफी वाहवाही बटोरी। डालमिया ने अपने 35 साल के प्रशासनिक करियर की शुरुआत राजस्थान क्लब से बंगाल क्रिकेट संघ की कार्यकारी समिति का सदस्य बनकर की थी। वहीं बाद में वह कैब के कोषाध्यक्ष और सचिव भी बने। यही नहीं डालमिया ने एक समय अपने दोस्त रहे इंद्रजीत सिंह बिंद्रा के साथ मिलकर इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया को पछाड़कर भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका को 1996 वर्ल्ड कप की सहमेजबानी दिलवाई थी।

1990 के दशक से पैसों की शुरुआत

भारतीय क्रिकेट में पैसों की बरसात कराने का पूरा श्रेय जगमोहन डालमिया को ही जाता है। डालमिया ने इंडियन क्रिकेट को सबसे बड़ा तोहफा 1990 के दशक की शुरुआत में दिया। जब वर्ल्ड टेल के साथ लाखों डॉलर का टेलीविन करार किया था, जिसने BCCI को दुनिया में सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड बनाने में बड़ी भूमिका निभाई। इसके बाद 1997 में उन्हें सर्वसम्मति से इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (ICC) का अध्यक्ष चुना गया। वहीं 2001 में एसी मुथैया को हराकर वह BCCI अध्यक्ष भी बने।

बुरे वक्त के बाद वापसी

जैसा कि कहा जाता है कि किसी भी इंसान का एक जैसा समय नहीं रहता। ठीक उसी तरह डालमिया भी बुरे वक्त के घेरे में फंस गए। पवार, एन श्रीनिवासन, शशांक मनोहर और ललित मोदी की चौकड़ी ने डालमिया के लिए मुश्किलें खड़ी करनी शुरु कर दी थी। 2006 में उन्हें निलंबित कर दिया गया और उनके घरेलू संघ से भी उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। इन लोगों ने डालमिया के खिलाफ कई मामले खोले। हालांकि इसके लिए डालमिया ने कानून का सहारा लिया और काफी लंबी लड़ाई के बाद 2015 में उन्होंने BCCI अध्यक्ष के रूप में वापसी की।

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