आगरा। किसी के पास बेटी थी तो किसी के पास बेटा पर कोई भी मां अपने बच्चे को इस नर्क में नहीं रखना चाहती है। ऐसे माहौल मैं रहते हुए भी सभी अपने बच्चों को अच्छी परवरिश देना चाहती है। महिला थाने मे बैठी वह सभी महिलाएं जो कश्मीरी बाजार से पकड़ी गई थीं वह अपने-अपने बच्चों के लिए काफी सतर्क दिखाई दी। बेशक हर एक की अपनी कहानी थी। बेशक समाज उन्हें कुछ भी कहें पर कहीं न कहीं उनके अंदर एक चीज आज भी जीवित दिखी, वह थी ममता।

पति ने ही बिठा दिया गंदगी में

फीरोजाबाद निवासी पूनम जिसकी उम्र मात्र 20 ने पांच साल पहले लव मैरिज की थी। उसे नहीं पता था कि जिसके सहारे उसने अपने परिवार को त्याग दिया वह उसे इस नर्क में ही धकेल देगा। आज उसके पास दो माह की बच्ची है। जब उससे पूछा गया कि वह क्या अपनी बच्ची को इस नर्क में ही रखेगी तो उसके मुंह से एकदम एक चीख निकली नहीं किसने कहा मैं इसे इसमें रखूंगी? मैं इसे इस काबिल बनाऊंगी कि वह कहीं अच्छी जगह सैटल हो जाए।

यही कहानी नेपाल निवासी 30 वर्षीय संतो की है। पति ने धोखा दिया। दारू के नशे मे इस नर्क में धकेल गया। आज आठ साल की बच्ची को अपने साथ रखकर पढ़ाना और लिखाना चाहती है। पर किसी कीमत पर इस लाइन में नहीं लाना है।

मैं तो पैदा ही नहीं करूंगी बच्चा

खुद के जख्मों से इतना आहत हुई कि उसने अपना बच्चा करने से ही इंकार कर दिया। यह कहानी है पूना निवासी आरती की। आरती का कहना है कि वह इस नर्क को अच्छे से देख चुकी है अब वह किसी कीमत पर नहीं चाहती कि वह किसी मासूम को जन्म दे और उसे भी इस नर्क का मोहताज बनना पड़े इसलिए उसने निर्णय लिया है कि वह किसी कीमत पर इस जीवन में किसी भी प्रकार इस नर्क अपने बच्चे को जन्म ही नहीं देगी।

विरासत में मिला यह काम

पूना निवासी 20 वर्षीय हिना का कहना था कि उसका जन्म बेडि़या जाति में हुआ है। उसे यह काम विरासत में मिला है। उसकी नानी मां अब वह सब यही काम करते आए हैं। अब वह भला किस तरह से खुद को बचाए? जब उसे पूछा कि कोई और काम भी तो कर सकती हो। तो वह तमक कर बोली सब कहते हैं पर कोई काम नहीं दिलाता आप ही दिला दें मैं कर लूंगी अच्छे काम।

यही कंडीशन नेपाल की उमा का है उसने भी दो बच्चों को अपनी मां के हवाले किया हुआ है। गरीबी के कारण उसे यह काम करना पड़ रहा है। पति ने छोड़ दिया है।

नेपाल निवासी 26 वर्षीय कांक्षी ने भी अपने बेटे को मम्मी के पास छोड़ रखा है ताकि वह इस नर्क से दूर रहें।

सुमित्रा के पास भी सात साल की बेटी है एक एक्सीडेंट मे उसके पति की मृत्यु हो गई थी। किसी भी रिश्तेदार ने उसका साथ नहीं दिया। मजबूरन उसे इस काम को करना पड़ा।

हर किसी की कहानी थी पर हर एक की एक कहानी एक सी नजर आई कि वह अपने किसी भी परिजन या अपने बच्चों को इस लाइन में किसी कीमत पर नहीं लाना चाहती हैं। वहीं इन सभी के अंदर कहीं न कहीं प्रशासन और शासन को लेकर भी एक प्रकार का रोष था। उनका कहना था कि आप क्या समझती हो यह खाकी वाले अच्छे है या ये सफेद वर्दी वाले। सब हमारे पास आते हैं आज भले ही यह अपने को साफ और पाक मानें