- गगहा में स्टेट बैंक मझगांवा शाखा में तीन दिन से लौट रहे कंज्यूमर्स

GAGHA/MAJHGAWA: भारतीय स्टेट बैंक मझगावां में कंज्यूमर्स पहुंच तो रहे हैं लेन-देन संबंधी काम के लिए, लेकिन उन्हें बैरंग ही लौटना पड़ रहा है। स्थिति यह है कि तीन दिन से सर्वर ठप की बात कहते हुए कंज्यूमर्स को लौटाया जा रहा है। बैंक में नगदी जमा निकासी, एफडी, पेंशन, सूखा राहत की राशि आदि कोई भी काम नहीं हो पा रहा है। इस ब्रांच से 25000 से अधिक कंज्यूमर्स जुड़े हैं।

अक्सर ठप रहता है सर्वर

बैंक का सर्वर ठप पड़ने से शाखा से जुड़े सैकड़ों खाताधारक परेशान हैं। कंज्यूमर्स रोज बैंक का चक्कर लगाकर लौट रहे हैं। मजुरी निवासी पूर्व प्रधानाध्यापक वैद्यनाथ सिंह ने बताया कि वह 10 किमी। दूरी से साइकिल चलाकर जाते हैं, पैसा नहीं मिलने पर घर लौट जाते हैं। आने-जाने में वे इतना थक जाते हैं कि उस दिन और कुछ नहीं कर पाते। बैंक कर्मियों को कंज्यूमर्स की परेशानी से कोई मतलब नहीं है।

रकहट शाखा में भी प्राब्लम

कुछ यही हाल भारतीय स्टेट बैंक रकहट का भी है। वहां सर्वर कभी चल रहा है तो कभी बन्द हो जा रहा है। कंज्यूमर्स भलुवान निवासी संदीप, गगहा निवासी दिलीप, मजुरी निवासी कमलेश, पवन कुमार, बबिता, परमेश्वरी, चन्द्रप्रभा आदि तीन दिन से इस उम्मीद में बैंक जा रहे हैं कि आज शायद सर्वर सही रहे लेकिन रोज उन्हें सर्वर काम नहीं करने की बात कहते हुए लौटा दिया जा रहा है।

आए दिन होती मुश्किल

कंज्यूमर्स का कहना है कि बैंक प्रबंधन उनकी परेशानी समझना नहीं चाहता। अक्सर इस तरह की प्राब्लम आती है लेकिन इसके बाद भी इसका स्थायी निदान नहीं ढूंढा जा रहा है। सिटी स्थित बैंक में यदि प्राब्लम होती है तो तुरंत दूर कर लिया जाता है लेकिन रूरल एरिया में प्राब्लम हो तो कोई नहीं सुनता। कई दिन तक दौड़ना पड़ता है तब भी यही कहा जाता है कि अगले दिन आइए। सिटी हो या रूरल एरिया, कंज्यूमर्स के साथ भेदभाव तो नहीं करना चाहिए।

वर्जन

सर्वर मे कुछ तकनीकी खराबी आ गई है। उसे ठीक करने के लिए गोरखपुर से टीम आ गयी है। जल्द ही दुरुस्त कर लिया जाएगा।

- शैलेन्द्र कुमार सिंह, प्रबंधक

-----------

तीन दिन से बैंक से रुपए नहीं मिल रहे। स्कूल का ऑडिट हो रहा है लेकिन सर्वर डाउन होने के कारण पासबुक तक अपडेट नहीं हो पा रहा।

- डॉ। स्मृति मल्ल

खाते में कर्मचारियों का मानदेय आया है। वे दबाव बना रहे हैं। तीन दिन से मैं बैंक का चक्कर काट रहा है। रोज निराश होकर लौट रहा हूं।

- धर्मेन्द्र सिंह, प्रधानाध्यापक

तीन दिन से बैंक का चक्कर लगा रही हूं। एक बच्चा बीमार है, उसकी दवा करानी है। स्कूल की फीस भी जमा करनी है।

- आशा देवी