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RANCHI: मिलेनियल्स की नजरों में झारखंड का एजुकेशन सीनेरियो काफी खस्ता हालत में है। चुनाव के पहले जनप्रतिनिधि दावे तो खूब करते हैं लेकिन चुनाव के बाद 18 सालों में खास बदलाव नजर नहीं आए। अब दावे नहीं, शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन के लिए क्रांति की जरूरत है। बेसिक शिक्षा से लेकर हायर स्टडीज रिसर्च और प्रोफेशनल एजुकेशन तक के लिए देश में काफी परिवर्तन लाना चाहिए। थर्ड आई डिजिटल स्टूडियो में मिलेनियल्स के साथ राजनी-टी। आगामी चुनाव में शिक्षा के क्षेत्र की चुनौतियां, उसकी अपेक्षाएं और उपेक्षाएं बड़ा गंभीर मुद्दा बनकर उभरने जा रहे हैं। मिलेनियल्स का कहना है कि शिक्षा के क्षेत्र में जबरदस्त विकास के लिए क्रांति की जरूरत है। बच्चे हायर स्टडीज के लिए राज्य और देश से बाहर चले जा रहे हैं। उन्हें स्थानीय स्तर पर संतोषजनक पढ़ाई उपलब्ध नहीं हो पाती है। केवल झारखंड की बात करें तो करीब 72 परसेंट स्टूडेंट्स पढ़ाई के लिए घर-बार छोड़कर राज्य से बाहर जा रहे हैं।

हर बच्चे को यहां पढ़ाई का मौका नहीं मिल पाता

राज्य में पढ़ाई के भी बेहतर विकल्प हैं लेकिन सीट के सीमित होने के कारण हर बच्चे को यहां पढ़ाई का मौका नहीं मिल पाता है। निजी स्कूलों की बात छोड़ दें तो प्राइमरी सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता, सुविधाएं, शिक्षकों की लगातार बढ़ रही रिक्तियां, प्राध्यापकों की कमी, व्यवस्था का लचर होना जैसी कई समस्याएं हैं जिसका सीधा खामियाजा देश के बच्चों को उठाना पड़ रहा है। पढ़ाई के लिए बच्चों और खासतौर पर उनके पैरेंट्स को आकर्षित करने के लिए मिड डे मील, नि:शुल्क किताबों का वितरण जैसी कई योजनाएं चालू हैं लेकिन इसके बावजूद शिक्षा के स्तर में सुधार के लिए भारी प्रयास करने की जरूरत है। हायर स्टडीज के लिए राजधानी में जब यूनिवर्सिटी की संख्या काफी कम हैं तो अन्य जिलों का अंदाजा लगाया जा सकता है।

कड़क मुद्दा
ग्राम शिक्षा समिति का सदस्य उन्हीं लोगों को बनाया जाता है जिनके बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ाई करते हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि डीसी से लेकर तमाम शिक्षा विभाग के पदाधिकारियों के बच्चों को भी सरकारी स्कूलों में पढ़ाने का नियम बनाया जाए। जब खुद के बच्चे पढ़ेंगे तभी समझ में आएगा कि निजी स्कूलों और सरकारी स्कूलों की पढ़ाई के बीच क्या फर्क है। राज्य में निजी स्कूलों की मनमानी और सरकारी स्कूलों की उदासीनता के कारण मिडिल क्लास फैमिली के गार्जियन अधमरी स्थिति में रहते हैं कि बच्चे को कम शुल्क में बेहतर पढ़ाई कैसे मुहैया कराएं.
संजय बोस

मेरी बात
मुझे ऐसा लगता है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों और निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की समय समय पर कंबाइंड एक्टिविटी करायी जाए। इससे दोनों समूहों के बीच की खाई को भी काफी हद तक भरा जा सकता है। साथ ही बड़ी शैक्षणिक संस्थान जैसे आईआईटी, आईआईएम, एक्सआईएसएस आदि नामी गिरामी संस्थानो के शिक्षकों या वहां के छात्रों के द्वारा भी स्कूलों में मेंटरशीप करायी जाए। इससे विचारों का आदान प्रदान तो बढ़ेगा ही साथ ही बच्चों की मानसिक क्षमता भी काफी संक्रिय होगी। बच्चों को रटंत विद्या के स्थान पर क्रियेटिव सोच देना जरुरी है।
अखिलेश उपाध्याय

स्कूलों को प्रशासनिक दबाव से मुक्त करना होगा। स्कूलों को टीचर्स और पैरेंट्स की कमिटी बनाकर उनके मार्गदर्शन और जरूरतों के अनुसार संचालन किया जाना चाहिए। आज राज्य के 50 प्रतिशत से अधिक स्कूलों में हेडमास्टर नहीं हैं लेकिन उनके बिना भी पढ़ाई कराई जा सकती है। उच्च शिक्षा में प्रोफेशनल स्टडीज और रिसर्च करने वालों के लिए बिल्कुल अलग व्यवस्था की जानी चाहिए। सबसे ज्यादा जरूरी है कि शिक्षा विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार और कुव्यवस्था का निवारण किया जाना चाहिए।
आलोक तिवारी

आज अगर हम बात करें शिक्षा की तो सच में अभी के स्टूडेंट्स में अच्छी शिक्षा का बहुत अभाव है। अभी के समय में अधिकतर स्टूडेंट्स के मन में एक विचार बना हुआ है कि किसी तरह से डिग्री प्राप्त हो जाए। इसलिए हमारे मन में ये सवाल नहीं आना चाहिए कि हमें सिर्फ डिग्री प्राप्त करनी है। क्योंकि बेहतर शिक्षा ही हमारे भविष्य को संवारती है। और एक अच्छे मान-सम्मान प्रतिष्ठा के साथ कहीं खड़े हो पाते हैं। इसलिए अच्छी शिक्षा जीवन में बहुत बड़ा योगदान रखती है। अच्छी शिक्षा से ही अच्छे विचार मन में आते हैं, जो हमें इसका मजबूत आधार पेश करेगा, हमारा वोट उसे ही जाएगा।
चंद्रिका रविदास

इस देश में आलू-प्याज व पेट्रोल की कीमत बढ़ने पर सरकार गिरा दी जाती है, परन्तु आजतक कभी ऐसा नहीं हुआ जब शिक्षा व्यवस्था में सुधार को लेकर सरकार गिरी हो। इस मामले में मतदाताओं को विशेष ध्यान देना चाहिए, चुनाव में पार्टियों के घोषणापत्र तो देखिए परन्तु यह भी देखिए कि उसमें शिक्षा के लिए क्या है? अपने-अपने क्षेत्र के उम्मीदवारों से भी सवाल पूछें कि शिक्षा में सुधार के लिए क्या योजना है आपके पास.? मतलब कि जनता को आगे आना चाहिए, शिक्षा को चुनावी मुद्दा बनाना चाहिए.
विवेकानंद सिंह

शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक सुधार के लिए कई योजनाओं की घोषणाएं की गई। बुनियादी स्तर पर ही बात करें तो स्कूलों में बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए पौष्टिक आहार देना सुनिश्चित हुआ। मिड डे मील के रूप में उन्हें भोजन दिया जा रहा है लेकिन उसमें भी काफी अनियमितताएं हैं। मात्र 4 रुपया 10 पैसे में अंडा देने की बात है जो संभव ही नहीं है। इसलिए अब वादे नहीं चलेंगे जो कहा जाएगा उसका आधार भी देना होगा।
शशिभूषण

शिक्षकों की योग्यता की जांच काफी जरूरी है। वह भी समय-समय पर उनकी योग्यता आंकी जानी चाहिए कि आखिरकार वह बच्चों को बढ़ा पाने में सक्षम भी हैं या नहीं। आम तौर पर देखा जाता है कि कई स्कूलों के शिक्षक नौकरी के साथ साथ अपना व्यवसाय तक चला रहे हैं। स्कूल से नदारद रहते हैं और केवल वेतन उठाते हैं। इसलिए अब नेताओं को विजन क्लियर करना होगा और योग्य शिक्षकों का ही चुनाव करना होगा चाहे वह प्राइमरी स्कूल के हों अथवा हायर स्टडीज के।
रत्ना राय

निजी स्कूलों की मनमानी चरम पर है। और सरकारी स्कूलों में मिलने वाली सुविधाएं बुनियादी भी नहीं हैं। स्कूलों में न तो लाइब्रेरी है न ही बेहतर तरीके का प्रैक्टिकल रूम ही है जहां बैठकर बच्चे विज्ञान के क्षेत्र में होने वाले बदलावों की जानकारी ले सकें। केवल औपचारिकता के लिए पढ़ाई की जा रही है। सरकारी किसी की भी बने लेकिन उन्हें यह जरुर बताना होगा कि पढ़ाई के लिए आकर्षण के रास्ते तलाशने के स्थान पर बुनियादी और ठोस शिक्षा कैसे प्रदान करें.
सुधीर मिश्रा

शिक्षा के क्षेत्र की स्थिति का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि फरवरी में मैट्रिक की परीक्षा चल रही है जबकि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को निशुल्क किताबें दिसम्बर माह में मिली हैं। ऐसे में रिजल्ट का स्तर क्या रहेगा। हर साल पास होने वाले बच्चों की प्रतिशत घटता ही जा रहा है। उच्च शिक्षा में भी सेश लेट से लेकर शिक्षकों की रिक्तियों तक से स्टूडेंट्स जूझ रहे हैं।
उज्जवल

प्राइमरी शिक्षा के साथ इलाके के बुद्धिजीवियों को जोड़ा जाना चाहिए। उनके सहयोग से ही विकास संभव है। उन्हें इलाकों की जानकारी होती है और स्टूडेट्स की जरूरतों के अनुसार सुविधाओं का चयन किया जा सकता है। उच्च शिक्षा की क्या बात करें जब आईआईएम के लिए भूमि अध्रिग्रहण नहीं किया जा सका तो अन्य मामलों का अंदाजा लगाया जा सकता है। राज्य में विश्वविद्यालयों की भी भारी कमी है। नये यूनिवर्सिटी खोले जाने चाहिए।
मनोज गोराई