माघ मेले में इस बार भूले भटके शिविर से नहीं सुनाई पड़ी राजाराम तिवारी की आवाज

70 साल से संगम की रेती पर लगने वाले हर मेले लगाते थे शिविर, बेटे ने संभाली कमान

ALLAHABAD: इलाहाबाद में सामाजिक सरोकार की बात हो और राजाराम तिवारी का नाम सबसे आगे ना हो, ऐसा नहीं हो सकता। संगम की रेती पर कुंभ हो अ‌र्द्धकुंभ या माघ मेला, 70 साल तक लगातार भूले भटकों को परिजनों से मिलाने वाले राजाराम तिवारी की आवाज सुनने के लिए अभी भी लोग उनके शिविर भारत सेवा दल में पहुंचते हैं। लेकिन अफसोस की अब वे दुनिया में नहीं रहे। यह पहला माघ मेला है जिसमें राजाराम तिवारी की आवाज नहीं सुनाई दे रही।

टीन के भोंपू से की शुरुआत

भारत सेवा दल के मुखिया राजाराम तिवारी ने 1948 के माघ मेले से शिविर लगाना शुरू किया। तब वे टीन का भोंपू बनाकर उसी से दिनभर भूले भटकों को परिजनों से मिलाते थे। पहली बार उन्होंने मेला क्षेत्र में 870 बिछड़े लोगों को मिलाया था। उन्होंने 70 साल के सामाजिक सरोकार के जरिए 14 लाख महिलाओं व पुरुषों को परिजनों से मिलाया। 20 हजार नन्हें-मुन्नों को उनके माता-पिता से मिलाया था।

छोटे बेटे ने संभाली कमान

हालांकि इस बार भी भारत सेवा दल का शिविर संगम नोज के पास लगा है। राजाराम के निधन के बाद उनके सबसे छोटे बेटे उमेश चंद्र तिवारी शिविर का संचालन कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि पौष पूर्णिमा और मकर संक्रान्ति के स्नान पर दर्जनों लोग शिविर में पहुंचे। सभी का एक ही सवाल था कि बाबूजी कहां गए। यह कहते हुए उनकी आंखें भर आई। बोले, पिताजी ने 70 साल तक काम ही ऐसा किया है कि हर कोई उनके बारे में जानकारी लेना चाहता है।

2016 में दुनिया छोड़ गए

उमेश चंद्र तिवारी ने बताया कि यूं तो पिताजी को दर्जनों सम्मान मिले, लेकिन 2016 में उनके कार्य से प्रभावित होकर महानायक अमिताभ बच्चन ने मुम्बई में सम्मानित किया। इसके कुछ दिन बाद 88 वर्ष की उम्र में पिताजी का निधन हुआ।