असली नुकसान इससे हुआ

निष्कासित किए गए प्लेयर्स एबीएससी स्थित बैडमिंटन हॉस्टल के हैं। इनमें गौरव, आलोक, अकरम, अजय, सतेन्द्र समेत कुल 10 खिलाड़ी शामिल हैं। बता दें कि इस हॉस्टल में कुल 15 सीट हैं। ये प्लेयर्स खुद को निर्दोष बता रहे हैं। इनका कहना है कि ऑफिसर्स की मनमानी का विरोध करना ही उन्हें महंगा पड़ा है। उधर ऑफिसर्स उन्हें नॉनपरफॉर्मर और इनडिसिप्लिंड बता रहे हैं। दोनों पक्षों के अपने-अपने तर्क हैं। वैसे जानकारों का कहना है कि प्लेयर्स का असली नुकसान ऑफिसर्स और कोचेज के बीच हुई खींचतान की वजह से हुआ। जाने-अनजाने में वे कब इसका शिकार हो गए, उन्हें पता ही नहीं चला।

नहीं जीत पाए मेडल

प्लेयर्स राजनीति का शिकार हुए, नतीजतन चार सालों में उनके खाते में कोई बड़ी उपलब्धि दर्ज नहीं हो सकी। जूनियर लेवल की प्रतियोगिताओं के लिए उन्होंने सेलेक्शन तो जरूर पाया। लेकिन, न तो वे अपेक्षा के अनुरूप प्रदर्शन कर पाए और न ही मेडल अपने नाम कर सके। उन्हें हॉस्टल से बाहर किए जाने की वजह ऑफिसर्स यही नॉन परफॉर्मेंस बता रहे हैं।

 

ऑफिसर्स ये कहते हैं

ऑफिसर्स कहते हैं अनुशासनहीनता पर किसी भी प्लेयर के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। वैसे भी नियमों के मुताबिक हॉस्टलर को साल में दो बार फेल होने, तीन साल के भीतर मेडल न जीत पाने और लगातार इंजर्ड रहने की दशा में बाहर का रास्ता दिखाने का प्रावधान है। फिर भी ये कार्रवाई डायरेक्ट नहीं होती। इसके लिए लखनऊ से संबंधित ऑफिसर व कोच की एक मूल्यांकन कमेटी बनाई जाती है। इसी कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की जाती है।

अब सुनिए प्लेयर्स का पक्ष

उधर, प्लेयर्स अपने निष्कासन की कुछ और ही वजह बता रहे हैं। उनका कहना है कि सिस्टम के झोल के खिलाफ आवाज उठना उन्हें महंगा पड़ा। उनकी मानें तो हॉस्टल में करप्शन है। प्लेयर्स को मिलने वाली डाइट की क्वालिटी मानक के अनुरूप नहीं, उससे नीचे है। इसी के चलते उन्होंने आवाज उठाई जो ऑफिसर्स को नागवार गुजरी। पहले तो हॉस्टल बंद किया गया, फिर उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया।

नया नहीं है विवादों से नाता

वैसे एबीएससी स्पोट्र्स हॉस्टल का विवादों से नाता नया नहीं है। डेढ़ साल पहले भी हंगामा हुआ था। तब आरोप लगा था कि हॉस्टल में विवाद होने पर बच्चों ने रोटियां फेंकी। दिसंबर में डाइट को लेकर फिर प्लेयर्स ने हंगामा बरपा। आरोप था कि डाइट की क्वालिटी बहुत खराब है। उछलने पर मामले की जांच शुरू हुई और बाद में तत्कालीन प्रभारी आनंद बिहारी को हटा दिया गया। साथ ही उनके खिलाफ जांच के आदेश दिए गए।

हॉस्टल कर दिया गया बंद

आनंद बिहारी के जाने के बाद दिसंबर में ही हॉस्टल बंद कर दिया गया। पांच बच्चे इलाहाबाद से ही बिलांग करते हैं। उन्हें छोड़कर बाकी सभी घर लौट गए। डिस्ट्रिक्ट से बिलांग करने वाले प्लेयर्स में कुछ ने रेंट पर रूम लेकर प्रैक्टिस जारी रखी है। लेकिन, उनका प्रदर्शन भी कुछ खास नहीं रहा। उधर, दिसंबर से लेकर अब तक ऑफिसर्स ने एक बार भी हॉस्टल को व्यवस्थित तरीके से चलाने की कोशिश नहीं की। जिन प्लेयर्स को बाहर किया गया। उनमें से कुछ के घर निष्कासन लेटर भी पहुंच चुका है।

कैसे होता है चयन

बैडमिंटन प्लेयर्स को हॉस्टल कई चरणों में खुद को साबित करने के बाद मिलता है। पहले डिस्ट्रिक्ट और फिर मंडल स्तर पर प्लेयर्स का सेलेक्शन होता है। अंतिम चयन स्टेट लेवल पर लखनऊ में होता है। बैडमिंटन के प्लेयर्स के लिए 15 सीटें हैं। लास्ट सेलेक्शन में केवल 12 प्लेयर्स ही सेलेक्ट हो कर यहां आए थे।

पांच साल पहले शुरू हुआ था सेशन

अमिताभ बच्चन स्पोट्र्स कॉम्पलेक्स की स्थापना 1974-75 में हुई। यहां वालीबॉल और बैडमिंटन कोर्ट हैं। पहले वालीबॉल प्लेयर्स का हॉस्टल बना। फिर बैडमिंटन हॉस्टल का निर्माण हुआ। कुछ समय बाद अपरिहार्य कारणों से इसे बंद कर दिया गया था। पांच साल पहले इसे बैडमिंटन प्लेयर्स के लिए फिर से खोला गया।

मूल्यांकन हर वर्ष निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। साल में दो बार मूल्यांकन होता है जो प्रदेश स्तरीय मूल्यांकन समिति करती है। इसका गठन निदेशालय स्तर से शासन की संस्तुति पर होता है। इसी की रिपोर्ट के आधार पर निष्कासन की संस्तुति निदेशालय भेजी जाती है। निदेशालय इस रिपोर्ट को क्रॉस चेक करता है। सही पाने पर वह सीधे कार्रवाई करता है। इसी क्रम में म्योहाल के दस प्लेयर्स के खिलाफ अनुशासनहीनता का आरोप लगा था। समिति ने अपनी रिपोर्ट भेजी थी, जिस पर निदेशालय ने अपनी मुहर लगा दी।

रुस्तम खान डिप्टी स्पोट्र्स ऑफिसर