ज़मीन से जुड़ा, अपनी हरकतों और रोज़ की घटनाओं से लोगों को हंसाने वाला निरा गंवार 'गजोधर' अब राजनेता बन गया है और 2014 के लोकसभा चुनाव में अपनी क़िस्मत आज़माने को तैयार है बशर्ते उनकी ताज़ा पार्टी (भारतीय जनता पार्टी) उन्हें टिकट दे तो.

1988 में कानपुर से आए राजू श्रीवास्तव ने 'गजोधर' से 'नेता' तक के इस सफ़र की अपनी यादें साझा कीं बीबीसी के साथ एक ख़ास मुलाक़ात में.

संघर्ष का दौर

1998 की एक आम दोपहर, बच्चे स्कूल से आकर धूप ढलने का इंतज़ार कर रहे होते थे. मांएं आराम कर रही होतीं थीं और बाहर मोहल्ले की गलियों में शांति पसरी होती थी और तब दोपहर 3.30 बजे टेलीविज़न पर शुरू होता था 'टी-टाइम मनोरंजन'.

मज़ाक-मज़ाक में राजनीति में आ गए 'गजोधर भैय्या'!

दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले इस कार्यक्रम का उल्लेख यहां करना मैंने इसलिए ज़रूरी समझा क्योंकि ये स्टैंड-अप कॉमेडी शोज़ का पहला प्रारूप था और यही वह मंच था जहां सुरेश मेनन, ब्रजेश हीरजी जैसे हास्य कलाकारों के बीच अपनी पहचान बनाने की कोशिश करते नज़र आते थे राजू श्रीवास्तव.

राजू ने बताया कि बचपन से ही हास्य कलाकार बनने का उन्हें शौक़ था और 80-90 के दशक में यह ख़्वाब पूरा करने जब वो मुंबई आए, तो पता लगा कि यह ख़्वाब इतना आसान नहीं.

"मैं जब मुंबई आया तो लोग हास्य कलाकार को कोई बड़ा कलाकार नहीं मानते थे. हास्य बस जॉनी वाकर से शुरू होकर जॉनी लीवर पर ख़त्म हो जाता था. स्टैंड अप कॉमेडी की तब जगह नहीं थी सो मुझे भी जगह नहीं मिली."

बने ऑटो चालक

मुंबई बड़ा शहर था और ख़र्चे के लिए घर से भेजे पैसे कम पड़ जाते थे ऐसे में ख़र्चे के लिए परेशान राजू ने ऑटो भी चलाया.

"मैंने ऑटो चलाना शुरू कर दिया. सवारी को हंसाता था, टिप मिल जाती थी, कभी-कभी शो भी मिल जाते थे और फिर ऐसे ही एक सवारी के रेफ़रेंस से ब्रेक मिला."

राजू ने बताया कि काफ़ी साल स्ट्रगल करने के बाद जब शो मिलने शुरू हुए, तो 50 रुपए मेहनताने पर भी उन्होंने कॉमेडी की.

"हालात ऐसे थे कि फ़िल्म में काम मिलता, कभी नहीं मिलता. ऐसे में बर्थ डे पार्टी में जाकर 50 रुपयों के लिए भी कॉमेडी किया करता था. अगर लॉफ़्टर चैलेंज से पहचान न मिली होती, तो आज कहानी कुछ और ही होती."

राजनीति का चस्का

मज़ाक-मज़ाक में राजनीति में आ गए 'गजोधर भैय्या'!

सही भी है क्योंकि आज राजू श्रीवास्तव की पहचान इस स्तर पर है कि अब वो कॉमेडी से राजनीति के मैदान में कूद पड़े हैं और 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं.

इसके लिए उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता भी ले ली है.

राजनीति का चस्का उन्हें कैसे लगा इस पर राजू गंभीर हो गए.

"मैंने ज़िंदगी में बहुत दर्द देखा है. जिसे अपनी कॉमेडी में मैंने इस्तेमाल भी किया है. दहेज न मिलने पर बहन की शादी टूटते देखी है, रिश्वत न देने पर भाई की नौकरी छूटते देखी है. आज लोगों के प्यार से मेरे पास इतना है कि रसोई में खाना है और बच्चों की फ़ीस भर पाता हूं तो सोचता हूं कि लोगों की मदद कर सकूं."

दलबदल की राजनीति

लेकिन जितनी रोचक राजू की कॉमेडी है उतनी ही रोचक उनकी राजनीति में एंट्री भी रही.

राजू ने बीजेपी की सदस्यता लेने से पहले कानपुर सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी. फिर अचानक से दल कैसे बदल लिया?

"समाजवादी पार्टी की कानपुर इकाई में अनुशासन की भारी कमी है. अपने लिए वहां हर आदमी नेता है. मुलायम जी जो आदेश देते हैं वहां कार्यकर्ता उसका उलट ही करते हैं. वहां के कुछ लोगों ने ऐसा माहौल बना दिया था कि मुझे लगने लगा था कि पहले चुनाव मुझे अपनी पार्टी से ही लड़ना होगा."

मज़ाक-मज़ाक में राजनीति में आ गए 'गजोधर भैय्या'!

क्या इसपर कभी शिकायत नहीं की? हमारे इस सवाल पर राजू हंसते हुए बोले, "अखिलेश से लेकर मुलायम तक सभी से शिकायत की लेकिन किसी ने कोई कार्रवाई नहीं की. वो ज़्यादा बिज़ी थे तो मुझे लगा मेरी अनदेखी हो रही है. इसीलिए टिकट समेत पार्टी की सदस्यता लौटा दी."

'मोदीमय' हुए राजू

राजू ने समाजवादी पार्टी से निकलने के बाद बीजेपी को चुना और इसका कारण थे नरेंद्र मोदी. वो नरेंद्र मोदी से इस क़दर प्रभावित हैं कि पूरी तरह से 'मोदीमय' हो चुके हैं.

"इस देश को तुरंत फ़ैसले ले सकने वाले नेताओं की ज़रूरत है और यह काम बस मोदी के बस में हैं. अरविंद अभी नए हैं और कांग्रेस से जनता क्षुब्ध है इसलिए विकल्प बस एक है."

राजू ने भले ही नेताओं की तरह अचकन पहननी शुरू कर दी हो और वो बातें भी विकास और देश की करने लगे हों लेकिन जब तब उनके अंदर का हास्य कलाकार निकलकर सामने आ जाता है.

इस मुलाक़ात के दौरान राजू ने न सिर्फ़ विरोधी पार्टियों के नेताओं जैसे राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल की अपने अंदाज़ में खिंचाई की, वहीं अपनी पार्टी के आला नेताओं को भी नहीं बख़्शा. नरेंद्र मोदी के 56 इंच के सीने से लेकर अरविंद के मफ़लर तक राजू ने सबकी क्लास ली.

राजू श्रीवास्तव से इस मुलाक़ात से यह बात तो साफ़ हो गई कि भले ही वो लोकसभा चुनाव में खड़े होने की तैयारी में हों लेकिन कानपुर के गजोधर भैय्या पर अभी राजनीति का रंग पूरी तरह नहीं चढ़ा है.

राजू की भाषा में कहें तो 'मज़ाक़ मज़ाक़ में गजोधर भैय्या, सच में राजनीति में आ गए.'

International News inextlive from World News Desk