स्टूडेंट्स के साथ बहुत कुछ शेयर किए
बीआईटी में स्टूडेंट्स के साथ इंटरैक्शन के एक प्रोग्राम में राकेश ओमप्रकाश मेहरा शुक्रवार को पटना में थे। फिल्मों से लेकर फिलॉस्फी तक, उन्होंने स्टूडेंट्स के साथ बहुत कुछ शेयर किया। अपकमिंग मूवी 'भाग मिल्खा भाग' के बारे में बताया तो 'अक्स', 'रंग दे बसंती' और 'दिल्ली 6' की बात भी नहीं भूले। वहीं दिल्ली रेप केस पर भी चर्चा की और इसके लिए खुद के साथ पूरी सोसाइटी को भी जिम्मेदार बताया। इस दौरान उन्होंने आई नेक्स्ट के साथ भी अपनी बातें शेयर कीं और नई जेनरेशन को कई मुद्दों पर झकझोरा भी।

'रंग दे बसंती', 'दिल्ली 6' हो या 'भाग मिल्खा भाग' दिल्ली इनमें कहीं ना कहीं आ ही जाता है?
पुरानी दिल्ली में पैदा हुआ तो कई बार दिल्ली से कनेक्टिविटी ज्यादा होती है। यह को-इंसीडेंट रहा कि सबका कनेक्शन दिल्ली से था। लेकिन हर फिल्म के बनने के पीछे की वजह में इंस्टिंक्ट रही है, जो सभी में अलग अलग है।

'रंग दे बसंती' में तो कोई भी यूथ पार्ट ले सकता था?
जब इस मूवी का इनिशियल प्लॉट मुंबई में पचास स्टूडेंट्स को बताया तो सबने इसे बकवास कहा। फिर हम दिल्ली आए और सौ स्टूडेंट्स को बताया तो भी सेम रिजल्ट रहा। तब हमें स्क्रिप्ट को रीराइट करनी पड़ी। इसमें जो एक्सपीरिएंसेज हैं, उनमें कुछ मैंने कॉलेज लाइफ में जिए हैं।

तो 'रंग दे बसंती' आपकी लाइफ का पार्ट है?
इस फिल्म के लिए कहीं ना कहीं मेरी लाइफ, मेरे कॉलेज के दिनों ने मुझे इंस्पायर किया। कॉलेज में यह बातें कॉमन होती हैं कि सारी बुराइयों का दोष पॉलिटिशियन पर डालकर उन्हें हटाने की बात करते हैं। कॉलेज के बाद सबकुछ खत्म। लेकिन मैं यंग गन्स के लिए एक फिल्म बनाने की कोशिश में था जो 'रंग दे बसंती' के जरिए पूरी हुई।

इनिशियल रिस्पांस कैसे रहे थे?
बहुत बुरे। कइयों ने यहां तक कहा कि पहले लगता था कि तुम पागल हो, इस स्टोरी के बाद पागलपन कंफर्म हो गया। फंड की कमी थी, लेकिन इस फिल्म पर मेरे अलावा आमिर को भरोसा था। बाद में और लोग भी जुड़े तब फिल्म रही। बॉलीवुड का पैटर्न फॉलो नहीं हो रहा था, इसलिए इंडस्ट्री में इनिशियली यह स्टोरी नकारी ही गई थी। क्योंकि इसमें स्विट्जरलैंड का रोमांस भी नहीं था और जो थोड़ा बहुत था वह कैरेक्टर जल्दी मर जाता है।

आज की जेनरेशन की राह पर कई सवाल उठ रहे हैं। आपने अपनी मूवीज के जरिए एक अलग यूथ की परिकल्पना दी है?
आज की जेनरेशन को थोड़ा सोचना होगा। सबको बदलने की जरूरत नहीं है। बस खुद को बदलना है। यूथ का फोकस रिजल्ट पर है। लेकिन आज जरूरत है कि एफर्ट पर ध्यान दिया जाए, इसी से चीजें बेहतर होंगी। 'रंग दे बसंती' का यूथ भी कॉमन था लेकिन उनमें कुछ बदलने का जज्बा था और उन्होंने किया भी। आज भी यूथ को कोशिश करना होगा।

आज दिल्ली रेप पर जो मूवमेंट हुआ, उसमें यूथ का रोल पॉजिटिव रहा?
दिल्ली रेप जैसी घटनाओं के लिए मैं खुद को नकारा और दोषी महसूस करता हूं। ऐसी घटना हो गई और हम कुछ ना कर सके। अब वक्त है कि हर एक्स्प्लॉयट लेडी को देवी मान लिया जाए। क्योंकि जिस एक्सप्लायटेशन से वो गुजरी है, वो उसके साथ नहीं होती तो किसी और के साथ होती। इंसानियत से विश्वास हटाने की भी जरूरत नहीं क्योंकि अभी भी लाखों ऐसे लोग हैं जो बहुत काम कर रहे हैं और अच्छा कर रहे हैं।

'भाग मिल्खा भाग' में खास?
बेसिकली यह उनके लिए फिल्म है जिनके पास किसी काम को ना करने का बहाना होता है। इस फिल्म का कैरेक्टर बिना जूतों के ही एथलेटिक्स का किंग बनता है। यह फिल्म ना रेस पर बेस्ड है और ना ही एथेलेटिक्स पर, बल्कि यह एक आम इंसान के खास बनने की फिल्म है।

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