कानपुर। रक्षाबन्धन का पर्व रक्षा और स्नेह का प्रतीक होता है, जो व्यक्ति रक्षा सूत्र बंधवाता है, वह यह प्रण लेता है कि बांधने वाले की वह सदैव रक्षा करेगा। पुरानी मान्यताओं में भविष्य पुराण के अनुसार रक्षा बन्धन का त्यौहार बृहस्पति के निर्देश में इंद्राणी द्वारा तैयार किये गये रक्षा सूत्र को ब्राह्मणों द्वारा इन्द्र की कलाई में बांधने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि बारह वर्ष तक चले देवासुर संग्राम में इन्द्र की भीषण पराजय के बाद इन्द्र को इन्द्र लोक छोड़कर जाना पड़ा, तब देवगुरू बृहस्पति ने इन्द्र को श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को रक्षा विधान करने का परामर्श दिया। इस पर इन्द्राणी ने एक रक्षा सूत्र तैयार किया और उसे ब्राह्मणों द्वारा इन्द्र की कलाई पर बंधवा दिया। इस रक्षा सूत्र के कारण इन्द्र की सेवासुर संग्राम में अनन्त: विजय हुई।

रक्षा बंधन की है यह कहानी
"रक्षाबन्धन" शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है - "रक्षा" और "बन्धन" अर्थात् ऐसा बन्धन जो रक्षा के उद्देश्य से किया जाये। द्वापर युग में भी द्रोपदी ने भगवान श्रीकृष्ण की कलाई में अपनी साड़ी का पल्लू बांधा था। इसे रक्षा सूत्र मानकर भगवान श्री कृष्ण ने कौरवों की सभा में द्रोपदी की लाज बचाकर उसकी रक्षा की थी। इस पर्व पर वृक्षारोपण भी किया जाता है जिसका विशेष फल प्राप्त होता है वृक्ष परोपकार के प्रतीक है, जो बिना माँगे फल, लकड़ी, छाया और औषधि प्रदान करने के साथ जीवनदायी प्राणवायु देते है। वृक्षो से वर्षा होती है और प्रदूषण नियंत्रित होता है। वृक्षारोपण जैसा पुण्य कार्य एवं वृक्षपूजन इस पर्व की विशेषता है। इन प्रेरणाओ के साथ श्रावणी पर्व मनाना अति श्रेष्ठ रहता है।

ज्योतिषाचार्य पं राजीव शर्मा
बालाजी ज्योतिष संस्थान,बरेली