दाम नीचे आएं

आने वाले महीनों में दालों में महंगाई और भड़कने की आशंका को देखते हुए सरकार इनकी कीमतों पर अंकुश लगाने में जुट गई है। इसी कोशिश में केंद्र ने राज्य सरकारों से कहा है कि वे दालों पर लगने वाले वैट और मंडी फीस जैसे स्थानीय टैक्स न लगाएं। इसके साथ ही राज्य जमाखोरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें ताकि बाजार में दालों की आपूर्ति बढ़े और दाम नीचे आएं। केंद्र के स्तर पर दालों का बफर स्टॉक बढ़ाने की भी तैयारी है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अरहर और उड़द दालों की खुदरा कीमतें 170 से 200 रुपये के बीच चल रही हैं।

स्थानीय करों में छूट

केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने शनिवार को आवश्यक जिंसों की कीमतों को लेकर राज्यों के खाद्य मंत्रियों की बैठक बुलाई थी। इस बैठक के बाद पासवान ने राज्यों से कहा कि वे दालों पर स्थानीय करों में छूट दें। अकेले इसी कदम से ही दाल की कीमतें सात फीसद तक घट सकती हैं। इसके अलावा अपने स्तर पर भी प्राइस स्टैबिलाइजेशन फंड (पीएसएफ) बनाएं। इसका इस्तेमाल वे दालों और अन्य आवश्यक जिंसों की कीमतों को काबू में रखने के लिए कर सकते हैं। केंद्र ने 900 करोड़ रुपये का पीएसएफ पहले ही बना रखा है।

नौ लाख टन करने पर

राम विलास पासवान के मुताबिक, सरकार दाल के बफर स्टॉक की सीमा को डेढ़ लाख टन से बढ़ाकर नौ लाख टन करने पर विचार किया जा रहा है। केंद्रीय खाद्य मंत्रालय की एक समिति ने बफर स्टॉक बढ़ाने की सिफारिश की है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकारें दाल आयातकों, मिलों, व्यापारियों और उत्पादकों के लिए अलग-अलग स्टॉक लिमिट तय करें, ताकि उचित कीमतों पर पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित हो सके।

जिंसों के दाम नियंत्रण में

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि दालों के अलावा खाद्य तेल, चीनी, आलू व अन्य आवश्यक जिंसों के दाम नियंत्रण में हैं। जहां तक दालों की ऊंची कीमतों का सवाल है, तो यह मांग और आपूर्ति में बढ़ते अंतर की वजह से है। देश में दालों का उत्पादन करीब 170 लाख टन रहने का अनुमान है, जबकि खपत 236 लाख टन की है। वर्ष 2015-16 के दौरान भारत में 55 लाख टन दालों का आयात किया गया। इसके बावजूद 10 लाख टन की कमी रह गई। बैठक में दाल के आयातकों के खिलाफ कार्रवाई के सुझाव आए हैं।

लिमिट नहीं लगाई जाती

दलहन जैसे खाद्य पदार्थो के दाम व्यापारियों की जमाखोरी और कार्टेल बनाने से यकायक बढ़ जाती हैं। ऐसा उन राज्यों में अक्सर होता है, जहां उन पर कोई स्टॉक लिमिट नहीं लगाई जाती है। इसलिए जरूरी है कि सभी राज्य भंडारण सीमा लगाएं और इसे कड़ाई से लागू करें। यही नहीं, सरकार दलहन उत्पादन, मांग व कीमतों में बढ़ोतरी का अनुमान लगाने के लिए एक निजी एजेंसी की सेवा लेने पर भी गंभीरता से विचार कर रही है।

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