--रांची का जगन्नाथ मंदिर की वास्तुशिल्पीय बनावट पुरी के जगन्नाथ मंदिर से मिलती-जुलती है।

-- मुख्य मंदिर से आधे किमी की दूरी पर मौसीबाड़ी का निर्माण किया गया है।

--प्रत्येक वर्ष यहां जून और जुलाई के महीने में पुरी की तरह ही रथयात्रा का आयोजन किया जाता है।

--तिथि के अनुसार आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि को प्रतिवर्ष रथयात्रा का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।

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रांची : रांची में रथयात्रा की परंपरा 326 सालों से चली आ रही है। उन दिनों छोटानागपुर में नागवंशी राजाओं का शासन था। राजधानी रांची के जगन्नाथपुर में बने भगवान जगन्नाथ के भव्य मंदिर से हर साल जुन-जुलाई के महीने में रथयात्रा का आयोजन किया जाता है। इस मंदिर का निर्माण बड़कागढ़ के महाराजा ठाकुर रामशाही के चौथे बेटे ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव ने 25 दिसंबर, 1691 में कराया था। मंदिर का जो वर्तमान स्वरूप दिखता है, वह 1991 में बना। मंदिर का लंबे समय बाद 1991 में जीर्णोद्धार किया गया था। उस समय करीब एक करोड़ रुपए खर्च हुए थे। वर्तमान मंदिर पुरी के जगन्नाथ मंदिर के स्थापत्य की तर्ज पर बनाया गया है। गर्भ गृह के आगे भोग गृह है। भोग गृह के पहले गरुड़ मंदिर हैं, जहां बीच में गरुड़जी विराजमान हैं। गरुड़ मंदिर के आगे चौकीदार मंदिर है। ये चारों मंदिर एक साथ बनाए गए थे।

सर्व धर्म समभाव का प्रतीक

जगन्नाथ मंदिर, रांची में रथयात्रा का इतिहास भी नागवंशी राजाओं से जुड़ा है। उन्होंने कई भव्य मंदिरों का निर्माण कराया तथा विग्रह स्थापित कर विशेष पूजा-अर्चना शुरू की थी। 326 साल पहले यहां हर जाति और धर्म के लोग मिल-जुलकर रथयात्रा का आयोजन करते थे। श्री जगन्नाथ को जहां घंसी जाति के लोग फूल मुहैया कराते थे, वहीं उरांव घंटी प्रदान करते थे। मंदिर की पहरेदारी मुस्लिम किया करते थे। राजवर जाति द्वारा विग्रहों को रथ पर सजाया जाता था। मिट्टी के बर्तन कुम्हार देते थे। बढ़ई और लोहार रथ का निर्माण करते थे। अब इस रथयात्रा का आयोजन ट्रस्ट के द्वारा कराया जाता है।

10 दिन मौसीबाड़ी में रहेंगे भगवान

अज्ञातवास के बाद शनिवार को भगवान का नेत्रदान हुआ। रविवार को रथयात्रा निकलेगी, जिसमें भगवान भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ मौसीबाड़ी जाएंगे। इसके बाद 10 दिन तक भगवान मौसीबाड़ी में रहेंगे और फिर मुख्य मंदिर में वापस आएंगे।

चार जुलाई को घुरती मेला

मौसीबाड़ी में भगवान चार जुलाई की दोपहर तक रहेंगे। इसके बाद भगवान मुख्य मंदिर लौट जाएंगे। उस दिन भी भगवान के रथ से मंदिर तक पहुंचाया जाएगा, जिसे घुरती रथयात्रा कहते हैं। इस बार 4 जुलाई को घुरती रथयात्रा निकलेगी।

रस्सी छूने की रहती है होड़

रथयात्रा के दौरान जयघोष के बीच भगवान मुकुट धारण किए जगन्नाथ, बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर सवार होकर मौसीबाड़ी जाते हैं। रथ से बंधी रस्सी को छूने की होड़ रहती है। भक्तों में आधा किलोमीटर की रथयात्रा का सफर डेढ़ घंटे में पूरा होता है। मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ के रथ की रस्सी को खिंचने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। ओडिशा शैली में निर्मित इस मंदिर में पूजा से लेकर भोग चढ़ाने का विधि-विधान भी पुरी जगन्नाथ मंदिर जैसा ही है।