RANCHI : गुरुवार की शाम छोटानागपुर के इतिहास के 1950 साल पुराने एक अध्याय का अंत हो गया। नागवंशी राजघराने के 62वें और आखिरी महाराजा लाल चिंतामणि शरण नाथ शाहदेव का निधन हो गया। रातू महाराजा के नाम से जाने जानेवाले 82 वर्षीय महाराजा लाल चिंतामणि शरण नाथ शाहदेव ने गुरुवार की शाम पांच बजे अपनी जिंदगी की आखिरी सांस ली।

अपोलो ले जाते वक्त रास्ते में तोड़ा दम

गुरुवार को महाराजा लाल चिंतामणि शरण नाथ शाहदेव की तबीयत अचानक बहुत ज्यादा बिगड़ गई। उनकी तबीयत बिगड़ती देख रातू पैलेस में रह रहे उनके परिजन उन्हें अपोलो हॉस्पिटल ले जाने लगे। लेकिन, अपोलो हॉस्पिटल पहुंचने से पहले ही रास्ते में शाम पांच बजे महाराजा लाल चिंतामणि नाथ शाहदेव ने दम तोड़ दिया।

बेटी करती थी देखभाल

महाराजा लाल चिंतामणि नाथ शाहदेव के पिता का नाम महाराजा काली शरण नाथ शाहदेव था। उनका निधन उस वक्त हो गया था, जब लाल चिंतामणि नाथ शाहदेव छोटे थे। महाराजा के दादा का नाम प्रताप उदय नाथ शाहदेव था, जो इस नागवंशी राजघराने के 61वें महाराजा थे। महाराजा लाल चिंतामणि शरण नाथ शाहदेव की शादी ओडि़शा के राजनंद गांव के बनई दामड़ा में हुई। पत्नी प्रेम मंजरी देवी शाहदेव का पहले ही निधन हो चुका है। महाराजा की चार बेटियां और एक बेटा था। बड़ी बेटी माधुरी ही महाराजा के रातू स्थित किले में रहती थीं और उनकी देखभाल करती थीं।

रांची को बहुत कुछ दिया इस फैमिली ने

महाराजा लाल चिंतामणि शरण नाथ शाहदेव की फैमिली ने रांची को बहुत कुछ दिया है। इसी राजघराने ने रांची क्लब, जीईएल चर्च, गोस्सनर कॉलेज, रांची यूनिवर्सिटी आदि के लिए जमीन दान में दी थी। महाराजा लाल चिंतामणि शरण नाथ शाहदेव ने एक बार कहा था- सोसाइटी के प्रति जिम्मेदारियां बहुत हैं। कई प्रोजेक्ट पर मैं काम कर रहा हूं। इससे सोसाइटी को बहुत कुछ मिलेगा। वह कहते थे कि राजा होने के फायदे हैं, तो कई नुकसान भी।

सभी का आदर करते थे

रातू इलाके के जितने गांव हैं, वहां रहनेवाले हर किसी के साथ महाराजा लाल चिंतामणि शरण नाथ शाहदेव का आत्मीय लगाव था। वह लोगों से काफी प्यार से मिलते थे, उनका आदर करते थे। इलाके में कोई घर ऐसा नहीं है, जिसकी बेटी की शादी के लिए या कोई अन्य काम के लिए उन्होंने आर्थिक मदद न दी हो। जरूरत के हिसाब से वह गरीबों की हमेशा मदद करते थे।

1957 में थे एमएलसी

पहली बार राजघराने से निकलकर चिंतामणि नाथ शाहदेव राजनीति में आए थे। वह 1957 में रांची के पहले एमएलसी बने थे। मौजूदा समय में इस राजपरिवार का कोई सदस्य राजनीति में एक्टिव नहीं है। पर, यह भी सच है कि महाराजा लाल चिंतामणि शरण नाथ शाहदेव के इकलौते बेटे और हटिया विधायक गोपाल शरण नाथ शाहदेव की मौत के बाद भी रातू पैलेस में कई पॉलिटिकल पार्टीज हाजिरी लगाती रही हैं।

चार फरवरी को पूरे हुए थे नागवंशीय

शासन की स्थापना के 1950 साल

इसी साल चार फरवरी को वसंत पंचमी के दिन नागवंशीय शासन की स्थापना के 1950 साल पूरे होने पर रातू पैलेस में एक सादे समारोह का आयोजन किया गया था। एक तरफ जहां लोग महाराजा को अपना भगवान समझते थे, वहीं महाराजा जनता को अपना बड़ा भाई मानते थे। हिस्टोरियन्स का कहना है कि यह रॉयल फैमिली दुनिया में सबसे ज्यादा लंबे समय तक शासन करनेवाली फैमिलीज में शामिल है। नागवंशीय शासन की स्थापना के 1950 साल पूरे होने के मौके पर महाराजा लाल चिंतामणि शरण नाथ शाहदेव ने छोटानागपुर के सभी लोगों का आभार व्यक्त कर हुए बधाई और शुभकामना भी दी थी।

64 एडी में शुरू हुआ था नागवंशीय शासन

64 एडी में आज के पिठौरिया के पास स्थित सुतीयांबे गढ़ में नागवंशीय शासन की शुरुआत हुई थी। हिस्टोरियन्स का कहना है कि उस समय इस गढ़ में आदिवासी राजा मुदरा मुंडा का शासन था। कहा जाता है कि एक दिन राजा मुदरा मुंडा एक नदी के किनारे से गुजर रहे थे, उसी समय उन्होंने देखा कि नदी के पास एक नवजात बच्चा पड़ा है। एक फणधारी कोबरा उस बच्चे की रक्षा कर रहा है। राजा मुदरा मुंडा ने उस बच्चे को अपने घर लाकर अपने बच्चे की तरह पालन-पोषण किया। जब राजा के वारिस के रूप में महाराज के चुनाव की बारी आई, तो राजा ने एक मुकाबले का आयोजन करवाया। उस मुकाबले में राजा के अपने बेटों के साथ ही उस अडॉप्टेड बेटे के बीच सभी राज कलाओं का प्रदर्शन हुआ। इसके जज उस समय के सभी कलाओं के ज्ञानी लोग थे। ऐसे में महाराज के उस अडॉप्टेड बेटे को बेस्ट पाते हुए विनर चुना गया और राजा ने उसे अपना वारिस चुना। राजा का वह अडॉप्टेड बेटा महाराजा फणि मुकुट राय थे। इन्हीं से नागवंशीय शासन की शुरुआत हुई और यह नागवंश के पहले महाराजा थे। चूंकि नाग ने इनकी रक्षा की थी, इसलिए इस राजवंश ने अपना नामकरण नागवंशी किया। हिस्टोरियन्स के मुताबिक, व‌र्ल्ड हिस्ट्री की यह पहली घटना थी, जब किसी ट्राइबल राजा ने किसी गैर ट्राइबल को अपने वारिस के रूप में महाराजा चुना।

103 कमरे हैं रातू पैलेस में

नावंशीय शासन की राजधानी आज से लगभग डेढ़ सौ साल पहले पालकोट से रातू शिफ्ट की गई। आज का जो मौजूदा रातू पैलेस है, वह साल 1899 में बनना शुरू हुआ था। इसे कलकत्ता के ब्रिटिश आर्किटेक्ट्स की देखरेख में बनाया गया। 1901 में रातू पैलेस बनकर तैयार हुआ। 22 एकड़ में फैले इस दो मंजिला पैलेस में 103 कमरे हैं। आज भी दूर-दूर से लोग इसको देखने आते हैं। ब्रिटेन की महारानी के महल बकिंघम महल आर्किटेक्चर के कुछ पा‌र्ट्स की झलक रातू पैलेस में भी मिलती है।

फकीरी गद्दी नाम से जाना जाता है यह राजघराना

नागवंशीय राजघराना दुनिया का ऐसा पहला राजघराना है, जिसने कभी जनता से लगान नहीं लिया। इस राजघराने ने कभी भी अपनी परमानेंट आर्मी नहीं बनाई। छोटानागपुर के मुंडा सामंत और यहां के लोग ही वार के समय राजा की तरफ से लड़ते थे। चूंकि ये अपनी प्रजा से कोई लगान नहीं लेते थे, इसलिए यहां की प्रजा उनको उनका खर्च चलाने के लिए फेस्टिवल्स और खास मौकों पर अपनी मर्जी से सामान दिया करती थी। हिस्टोरियन्स के मुताबिक, इस राजघराने के राजा राजगद्दी पर ताजपोशी न करवाकर गद्दी खाली रखते थे, छोटानागपुर के मुंडाओं को अपना बड़ा भाई मानते थे। इसी लिए इस राजघराने को फकीरी गद्दी के नाम से भी जाना जाता है। यह सिस्टम साल 1822 तक लागू रहा। हिस्टोरियन्स का कहना है कि इसका कन्फर्मेशन 1773 से लेकर 1809 तक ब्रिटिश ऑफिसर्स के कॉरस्पॉन्डेंस देखने पर भी होता है।

सीएनटी एक्ट पास कराने में थी अहम भूमिका

ब्रिटिश ऑफिसर्स ने अपने कॉरस्पॉन्डेंस में लिखा है कि नागवंशीय राजा अपनी जनता से टैक्स नहीं लेते, इसलिए यह काफी पॉपुलर हैं। 1832-33 में जो कोल विद्रोह हुआ, उसके लिए इनडायरेक्टली अंग्रेजों ने महाराजा को जिम्मेदार ठहराया। ऐसे में महाराज की मौजूदगी में ही 1835 में कैप्टन विलकिंसन ने मुंडाओं को लीगल राइट्स देने पर समझौता किया और मुंडा, मानकी और उरांव की रक्षा के लिए छोटनागपुर टेनेंसी एक्ट, यानी सीएनटी एक्ट पास हुआ। भगवान बिरसा मुंडा ने भी अपने उलगुलान के दौरान नागवंशीय के दोयसागढ़ का पवित्र जल लोगों पर छिड़ककर इस वंश के प्रति अपना विश्वास और आस्था जाहिर की थी।