मनोरंजक है फिल्म
बद्रीनाथ की दुल्हनिया कोई क्रांतिकारी फिल्म नहीं है जो सिनेमा का रुख मोड़ दे पर ये एक बेहद मनोरंजक फिल्म है। इस फिल्म को देखने का एक कारण ये भी है की मैं वापस से अपने स्कूल के वक़्त पहुँच गया, जब मैं स्कूल बंक करके फिल्में देखने जाता था। वो भी फर्स्ट डे फर्स्ट शो, कहो न प्यार है शायद वो आखरी फिल्म याद आती है जो मैंने स्कूल बंक करके देखी थी। मैं जब ये फिल्म देखने के लिए जा रहा था तो सोचा नहीं था की 90 के दशक में जैसे यूथ स्कूल कॉलेज बंक करके जाते थे वो समय फिर से देखूंगा। आज सालों बाद सुबह के शो में वही नज़ारा देखने को मिला।
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फिल्म: बद्रीनाथ की दुल्हनिया

लेखक और निर्देशक: शशांक खेतान

बैनर: धर्मा

कास्ट: वरुण धवन, अलिया भट्ट, साहिल वैद, गिरीश कर्नाड, गौहर खान, श्वेता प्रसाद

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कहानी
बद्री (वरुण धवन)अपने परिवार के साथ झांसी में रहता है। एक शादी में उसकी मुलाक़ात वैदेही (आलिया भट्ट) से होती है। उसे एक नज़र में वैदेही से प्यार हो जाता है। कोटा में रहने वाली, आज की लड़की, पढ़ी लिखी वैदेही, बद्री को शादी के लिए सिरे से मना कर देती है। अब बद्री का एक मात्र मकसद है, अपनी पसंद की लड़की को शादी के लिए मानना ताकि उसकी शादी भी उसके बड़े भाई की तरह मर्ज़ी के खिलाफ न कर दी जाए और वो वैदेही को अपनी दुल्हनिया बना सके।

कथा पटकथा और निर्देशन
कहानी तो देखिये कुछ ख़ास नहीं है, ऐसी कई कहानियां हमने देखी हैं, पर फिर भी बद्रीनाथ की दुल्हनिया की राइटिंग इसे एक बढ़िया एंटरटेनिंग फिल्म बना देती है। किरदार बिलकुल हमारे आपके घरों जैसे हैं, उनकी परेशानियां, उनकी उलझनें भी हमारी आपकी जैसी ही हैं। बस फर्क इतना है की इस कहानी पर धर्मा कैंप की ग्लॉसी सिनेमाई पॉलिश चढ़ी हुई है, जो की इसका ट्रेडमार्क है। यूँ समझ लीजिये की आप साठ के दशक की पड़ोसन देख रहे हैं, बद्री वही भोला है और वैदेही उस भोला की शादी का सपना। फिल्म की कॉमिक टाइमिंग काफी अच्छी है। इस साल काफी प्रेमकहानियां आ चुकी हैं, बद्रीनाथ की दुल्हनिया उन सब में से अब तक की सबसे मनोरंजक फिल्म है। आप बोर नहीं होंगे। एक स्पेशल मेंशन फिल्म के संवादों को ज़रूर देना चाहिए जिन्होंने इस फिल्म की साधारण कहानी को काफी अपलिफ्ट किया है। फिल्म की सिनेमेटोग्राफी काफी अच्छी है पर फिल्म की सेटिंग के हिसाब से फिल्म का लुक एंड फील थोडा फेक है। (कुछ एक शॉट्स के अलावा झांसी, झांसी नहीं लगता, भारत भारत नहीं लगता ), पर ये फिल्म का माइनस पॉइंट नहीं है, कहानी भले ही झांसी की हो पर ये फिल्म झांसी दर्शन कराने के लिए थोड़े ही बनाई गई है। कहानी का में मुद्दा है दहेज़ प्रथा, जिसपर ये फिल्म तीखा वार करती है अपने मनोरंजक अंदाज़ में। यूँ कहें हो हिंदी भाषी भारत में दहेज़ की बेड़ियों के साथ साथ उससे जुडी सामाजिक कुरीतियों को ये फिल्म एक मीठी छुरी की तरह काटने की कोशिश करती है, कोशिश बुरी नहीं है, बल्कि मजेदार है।
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अदाकारी
वरुण और अलिया ने अपना एक मार्किट क्रिएट कर लिया है, आज बद्रीनाथ की दुल्हनिया को देख कर ये बात साबित हो गई है। गोविंदा और सलमान ने नब्बे के दशक में जिस तरह के अभिनय से दर्शकों को सीट से बांध के रखा हुआ था, बद्रीनाथ की दुल्हनिया में वही काम वरुण ने बखूबी किया है। हालांकि की उनका किरदार हम्प्टी शर्मा से काफी मिलता जुलता है पर फिर भी वरुण इस फिल्म की जान हैं। उनकी शरारती, बचकानी और चुलबुली हरकतें इस फिल्म का हाईपॉइंट हैं। अगर वरुण ने अपना काम ठीक से नहीं किया होता तो, ये किरदार ‘छिछोरा’ दिख सकता था, पर ऐसा नहीं हो पाता। वरुण के लिए खुद लडकियां ही तीलियाँ सीटियाँ मरेंगी। अलिया के बारे में क्या कहा जाए, ऐसी कोई फिल्म नहीं है जिसमें उनका काम खराब हो। इस फिल्म में वो एक कॉंफिडेंट, स्मार्ट पर छोटे शहर की लड़की के किरदार में एक दम फिट बैठी हैं। आलिया को फुल मार्क्स। अब आ जाते हैं इस फिल्म के तीसरे सरप्राइज पैकेज पर, जो हैं साहिल वैद। साहिल का किरदार सोमदेव मिश्र(पुराने ज़माने के पंडितों पर एक मॉडर्न ट्विस्ट) इस फिल्म में ‘रनिंग शादी’ की तरह ‘चुटकी में शादी’ कराने के लिए बद्री की मदद करता है। ये एक बेहद मनोरंजक हिस्सा है फिल्म का। साहिल और वरुण की आपसी केमिस्ट्री ‘तोडू’ है।  ये किरदार बद्री के लिए वैसा ही है जैसे मुन्नाभाई के लिए सर्किट था। साहिल अब तक के साल के सबसे बेहतरीन सपोर्टिंग किरदारों में से एक हैं, इसके लिए उनको काफी सराहना मिलेगी। बाकी सभी किरदार भी उतने ही बढ़िया हैं, जितने में लीड। मुकेश छाबडा की ओवरआल कास्टिंग शानदार है।

 


संगीत
पॉप्युलर है, ब्रीजी है और फिल्म के सुर ताल के साथ मेल खाता है। पिछले काफी समय से देखते चले आ रहे हैं की पुराने गानों को फिल्म में इस्तेमाल किया जा रहा है, पर इस फिल्म में तम्मा तम्मा जंचता है। ठूंसा हुआ नहीं लगता।

 

कुल मिलाकर
वैसे तो ये फिल्म एक टिपिकल बॉलीवुड मसाला फिल्म है पर ये एक मजेदार मसाला फिल्म है। सारे मसाले सही तरीके से भूने गए हैं, और सही मात्रा में डाले गए हैं। ये फिल्म रेगुलर होने के बावजूद आपको बोर नहीं करेगी। एक और बात, बड़े दिनों बाद एक ऐसी फिल्म आई है जहां आपको अपने पूरे परिवार के साथ फिल्म को देखने में शर्म नहीं आएगी। आपकी दादी भी फिल्म में उतना ही आनंद उठाएंगी जितना की आप खुद। होली की छुट्टियों की मस्ती से इस फिल्म की फील मैच करती है और फिल्म की टाइमिंग बिलकुल सही है। फिल्म को तीन दिन की छुट्टियों से बूस्ट मिल सकता है। इस हफ्ते आप अगर वक़्त और बद्रीनाथ की दुल्हैया के टिकट पा जाएँ तो मिस मत करियेगा। बुक कीजिये अपने टिकट और मिल कर आइये बद्रीनाथ की दुल्हनिया से।
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बॉक्स ऑफिस प्रेडिक्शन: छोटे शहरों में इस फिल्म के चलने के काफी अच्छे आसार हैं, वरुण और अलिया का अर्बन मार्किट तो पहले ही सेट है। फिल्म अपने पूरे रन में 60-70 करोड़ तक कमा सकती है। अगर बोर्ड एग्जाम ख़त्म होने तक ये फिल्म हाल में टिक गई तो हो सकता है ये फिल्म 100 करोड़ भी कर जाए।

Review by: Yohaann Bhaargava
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