- पासपोर्ट वेरीफिकेशन के नाम पर थाने बुलाए जाते हैं आवेदक

- जिले में पहले भी हो चुका है फर्जीवाड़ा, नहीं मिल रहे सबूत

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GORAKHPUR: पासपोर्ट आवेदन की जांच के नाम पर होने वाले खेल में लगाम कसने पर लखनऊ की व्यवस्था रोल मॉडल बन सकती है। लखनऊ पुलिस में पासपोर्ट आवेदकों को थाने पर बुलाने से राहत दे दी गई है। पासपोर्ट एप्लीकेंट के घर पर पुलिस कर्मचारी दस्तक देने भी नहीं जाएंगे। आवेदकों से बिना संपर्क साधे पुलिस की रिपोर्ट लगाई जा सकती है। इस आधार पर नई व्यवस्था शुरू की गई थी। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि पासपोर्ट वेरीफिकेशन के नाम पर धनउगाही की शिकायतें सामने आती हैं। नई व्यवस्था से पासपोर्ट धारकों को राहत मिलने पर पूरे प्रदेश में पुलिस ये व्यवस्था लागू कर सकती है। हालांकि इस व्यवस्था के कई नुकसान भी गिनाए जा रहे हैं। गोरखपुर में रोजाना होने वाले आवेदन की फाइलें लेकर सिपाही दौड़भाग में जुटे रहते हैं। एसएसपी ने बताया कि पासपोर्ट वेरीफिकेशन के नाम पर वसूली से संबंधित कोई शिकायत अभी तक हमारे सामने नहीं आई है। कोई मामला सामने आने पर संबंधित पुलिस कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

हर माह लाखों की कमाई का जरिया
पासपोर्ट आवेदकों की जांच पड़ताल थाना पुलिस और एलआईयू करती है। आवेदन प्राप्त होने के 21 दिन के भीतर सभी प्रक्रिया पूरी करके पासपोर्ट ऑफिस को पूरी सूचना देती है। इसके आधार पर पासपोर्ट कार्यालय आवेदक को पासपोर्ट जारी कर देता है। पासपोर्ट के वेरीफिकेशन में काफी खेल होता है। जरूरत और आवेदन की स्थिति के आधार पर पुलिस कर्मचारी वसूली करते हैं। पासपोर्ट आवेदन कर चुके लोगों का कहना है कि थानों से लेकर एलआईयू दफ्तर तक 1500 से 2500 रुपए खर्च हो जाते हैं। थानों पर वेरीफिकेशन के नाम पर 1500 से दो हजार रुपए की डिमांड होती है। अगर किसी के खिलाफ कोई छोटी-मोटी शिकायत हुई है तो उसके मामले में विशेष डिमांड की जाती है। जिले में रोजाना करीब 90 से 100 पासपोर्ट आवेदन को विभिन्न थानों पर भेजा जाता है। इनमें औसतन एक हजार रुपए का खर्च थानों पर तैनात पुलिस कर्मचारी किसी न किसी बहाने वसूल लेते हैं। इस हिसाब से हर माह कम से कम 30-40 लाख रुपए की कमाई होती है। पासपोर्ट का काम देखने के लिए थानों पर अलग से मुंशी तैनात होते हैं जो सिर्फ थानेदार को रिपोर्ट करते हैं। इसके अलावा आवेदक के घर जाकर सूचना देने वाले सिपाही भी 200 से पांच रुपए मांगते हैं। जिले में पासपोर्ट आवेदन में पुलिस वेरीफिकेशन के नाम पर लोगों की जेब से कम से कम दो हजार रुपए बेवजह वसूल लिए जाते हैं। हालांकि हाल के दिनों में कोई शिकायत एसएसपी तक नहीं पहुंची है। एसएसपी का कहना है कि किसी तरह की वसूली की शिकायत मिली तो संबंधित लोगों के खिलाफ कार्रवाई में कोताही नहीं बरती जाएगी।

गड़बड़ी का डर दिखा वसूल लेते रुपए
पुराने पासपोर्ट के रिन्युअल, नए पासपोर्ट के आवेदन पर पुलिस और एलआईयू की रिपोर्ट महत्वपूर्ण होती है। दोनों विभागों में आवेदक की जांच का प्राविधान भी बना हुआ है। आवेदक को सूचना देने के बहाने थाने बुलाया जाता है। इसके बाद उनसे सौदेबाजी शुरू कर दी जाती है। आवेदक की स्थिति, पासपोर्ट की जरूरत और उसके जुगाड़ के आधार पर रेट शुरू होता है। इस दौरान तरह-तरह का डर दिखाया जाता है। ताकि आवेदक आसानी से जेब ढीली कर सकें। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि जांच में पुलिस की ओर से न तो आवेदक की फोटो प्रमाणित की जाती है। न ही उसके किसी सिग्नेचर की जरूरत होती है। थानों पर मौजूद रजिस्टर को खंगालकर आवेदक के संबंध में रिपोर्ट लगाने की जिम्मेदारी पुलिस की है। पुलिस इस बात की आख्या देती है कि आवेदक के खिलाफ पहले से कोई मुकदमा है या नहीं। उसके खिलाफ कभी कोई निरोधात्मक कार्रवाई की गई थी या नहीं। इसी बहाने पर पुलिस कर्मचारी पासपोर्ट आवेदकों को चूना लगाते हैं। पार्षद, प्रधान से फोटो लगे सर्टिफिकेट सहित आवेदक को थाने बुलाया जाता है। अगर आवेदक घर पर मौजूद नहीं है तो उसके रिश्तेदारों से डबल रकम मांगी जाती है। इसकी शिकायत सामने आने पर कई बार कार्रवाई हो चुकी है।

फैक्ट फिगर

जिले में पासपोर्ट आवेदन की स्थिति रोजाना औसतन - 90 से 100

पुलिस वेरीफिकेशन के नाम पर होने वाली वसूली औसतन - 1500-2000

हर माह होने वाली अवैध कमाई औसतन रुपए - 4000000 से 4500000

थानों पर रोजाना पहुंचने वाली जांच औसतन - 4 से 6

पासपोर्ट की जांच प्रक्रिया पूरी करने का समय- 21 दिन

आवेदन पर क्या करती है पुलिस

- जिले भर में वेरीफिकेशन के लिए पुलिस ऑफिस में पासपोर्ट ऑफिस बना है।

- आवेदन होने पर फाइलों को एसपी ऑफिस से थानों पर भेज दिया जाता है।

- थाना के पासपोर्ट मुंशी संबंधित हल्का सिपाहियों को जानकारी देकर आवेदक को बुलाते हैं।

- आवेदक को सूचना देने वाले सिपाही चाय-पानी के नाम पर खर्च मांगते हैं।

- लोकल पार्षद, प्रधान से प्रमाणित फोटो लगे सर्टिफिकेट और फोटो सहित थाने पर बुलाया जाता है।

- थाना के रजिस्टर नंबर आठ में आवेदक से संबंधित मुकदमों की फेहरिस्त खंगालकर रिपोर्ट लगाने का नियम है।

क्या हैं लूप होल, क्या होती गड़बड़ी

- पुलिस से जुड़े लोगों का कहना है कि आवेदक कितने साल से मोहल्ले में रह रहा है। बिना मोहल्ले में गए इसकी तस्दीक नहीं हो पाती। इसलिए पार्षद से वेरीफाई कराया जाता है।

- कम से कम पांच साल तक निवास करने से संबंधित सूचना अपडेट करने की जिम्मेदारी भी होती है। कई बार ऐसा होता है कि आवेदक के खिलाफ पूर्व में कहीं पर कोई मामला दर्ज होता है। लेकिन बाद में जब वह दूसरी जगह पर जाकर बस जाते हैं तो वहां रिकॉर्ड नहीं मिलता। ऐसे में गलत तरीके से आवेदक अपना पासपोर्ट बनवाने में कामयाब हो जाते हैं। इस लूप होल का फायदा उठाते हुए पुलिस कर्मचारी लोगों को थाने पर बुला लिया करते हैं।

 

बॉक्स

फर्जीवाड़ा नहीं खोज पाई पुलिस

जिले में फर्जी तरीके से पासपोर्ट बनवाने का मामला सामने आया था। शाहपुर और कैंट थाना क्षेत्र में निवास करने का प्रमाण पत्र देकर नेपाली नागरिकों के पासपोर्ट बन गए थे। इस मामले की जांच पड़ताल 2015 से चल रही है। शिकायत में कहा गया था कि 91 नागरिकों के पासपोर्ट फर्जी तरीके से बनाए गए थे। नौ साल पूर्व शिकायत में मानव तस्करी की आशंका जताई गई थी। 25 जुलाई 2015 को मुकदमा दर्ज करके पुलिस ने जांच की तो 29 लोगों का फर्जीवाड़ा सामने आया। इस मामले में जांच जारी होने के बावजूद कोई रिजल्ट सामने नहीं आ सका।

 

वर्जन

पासपोर्ट वेरीफिकेशन के नाम पर रुपए वसूलने से संबंधित कोई शिकायत मुझे नहीं मिली है। हमने पहले ही लोगों को वार्न कर दिया है। अगर किसी दरोगा, सिपाही या मुंशी के खिलाफ मामला सामने आया तो अपनी करनी के लिए वह खुद जिम्मेदार होगा। पासपोर्ट वेरीफिकेशन के नाम पर अगर कहीं कोई वसूली करता या फिर कोई उत्पीड़न होता है तो बेहिचक मुझसे शिकायत दर्ज करा सकते हैं। ऐसे लोग कतई बख्शे नहीं जाएंगे।

- डॉ। सुनील गुप्ता, एसएसपी