- सिटी के प्राइवेट अस्पतालों में चल रहा एनआईसीयू के नाम पर वसूली का खेल

- 60 प्रतिशत नवजातों को जान का खतरा बता भर्ती करने का बनाया जाता दबाव

GORAKHPUR: नॉर्मल डिलीवरी में खतरा बता सिजेरियन का दबाब बनाना तो प्राइवेट अस्पतालों का पुराना हथकंडा है। लेकिन अब तो पैसों के लालच में ये संस्थान नन्हे मासूमों तक को नहीं छोड़ रहे। शहर के कई प्राइवेट अस्पतालों में स्वस्थ नवजात शिशु को सीरियस बताकर एनआईसीयू में भर्ती कर वसूली का खेल खेला जा रहा है। डिलीवरी के तुरंत बाद परिजनों को बताया जा रहा कि शिशु ने गर्भ में गंदा पानी पी लिया है जिसके चलते उसे पीलिया हो गया है। इस कारण उसे एनआईसीयू में रखना पड़ेगा। बच्चे की जान पर खतरा सुनते ही घबराए परिजन भी इन डॉक्टर्स की बातों में आ जा रहे हैं। ऐसे ज्यादातर केसेज में बच्चे को दो से तीन दिन एनआईसीयू में रखा जा रहा है जिसके एवज में प्राइवेट अस्पताल एक दिन के ही चार से पांच हजार रुपए वसूल ले रहे हैं।

60 प्रतिशत केसेज भेजे जाते एनआईसीयू

तमाम केसेज सामने आने के बाद दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने प्राइवेट अस्पतालों के इस खेल की पड़ताल की तो चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए। पता चला कि शहर के प्राइवेट अस्पतालों में जन्म लेने वाले करीब 60 फीसदी नवजात शिशुओं के गंदा पानी पीने की वजह बता ये अतिरिक्त फीस वसूली जाती है। मजबूरी में परिजन पैसा जमा कर देते हैं। स्वास्थ्य विभाग इन प्राइवेट अस्पतालों पर लगाम नहीं लगा पा रहा है। आलम यह है कि ज्यादा कमाई के चक्कर में डॉक्टर परिजनों को नवजात शिशु की हालत गंभीर बता देते हैं जिससे उनकी परेशानी बढ़ जाती है। इसी मजबूरी का फायदा उठाकर उनसे भारी रकम वसूल कर अपनी जेब भरी जाती है।

मानक तय नहीं, चल रही मनमानी

स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक शहर में कुल 306 प्राइवेट अस्पताल और नर्सिग होम संचालित हो रहे हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक इनमें कई जगहों पर नॉर्मल डिलीवरी की जगह सिजेरियन का ही दबाव डाला जाता है। वहीं, करीब 60 फीसदी स्वस्थ नवजात शिशुओं को कोई न कोई कारण बताकर एनआईसीयू में भर्ती कर दिया जाता है। जहां ऑक्सीजन, बेड, मॉनिटर चार्ज के अलावा डॉक्टर और आरएमओ का चार्ज लगाकर चार से पांच हजार रुपए एक दिन की फीस का बिल बना दिया जाता है। जबकि स्वास्थ्य विभाग के पास इसका कोई मानक नहीं फिक्स है। इसी का नतीजा है कि ये अस्पताल मनमाने तरीके से इलाज के नाम पर हजारों रुपए ले रहे हैं।

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स्वास्थ्य विभाग के पास नहीं है डिटेल

जिले के स्वास्थ्य विभाग के पास जिला महिला अस्पताल को छोड़ कर जिले के प्राइवेट अस्पतालों में नॉर्मल डिलीवरी, सिजेरियन और कितने नवजात शिशु जन्म लेते हैं इसका ब्योरा ही नहीं है। जबकि जिम्मेदारों का दावा है कि बार-बार विभाग द्वारा प्राइवेट अस्पतालों से डिटेल मांगी जाती है।

केस 1

देवरिया बाइपास तारामंडल स्थित एक प्राइवेट अस्पताल में जयदीप ने अपनी गर्भवती पत्‍‌नी सरिता को भर्ती करवाया। जहां उसे सिजेरियन से बच्ची हुई। जयदीप का कहना है कि नवजात शिशु की स्थिति ठीक थी मगर उसे पीलिया बताकर एनआईसीयू में भर्ती कर लिया गया। डिस्चार्ज होने पर लंबा बिल थमा दिया गया जिसे मजबूरी में जमा करना पड़ा।

केस 2

गोरखनाथ एरिया के एक निजी अस्पताल में देवरिया के रहने वाले दीपक ने गर्भवती पत्‍‌नी अंजू को भर्ती करवाया। उसकी डिलीवरी होनी थी। उसे तेज प्रसव पीड़ा हो रही थी। डॉक्टर ने सीरियस बताकर सिजेरियन करने की सलाह दी। सिजेरियन से बच्चे का जन्म हुआ। इसके बाद डॉक्टर ने परिजनों से बताया कि बच्चे ने गंदा पानी पी लिया है, उसे एनआईसीयू की जरूरत है। परिजनों तत्काल डॉक्टर से एनआईसीयू में भर्ती करने को कहा। चार दिन अस्पताल में रहने के बाद कुल 30 हजार रुपए बिल आया जिसे जमा करवाने के बाद ही जच्चा-बच्चा को छोड़ा गया।

फैक्ट फिगर

शहर में प्राइवेट हॉस्पिटल - 306

औसतन नॉर्मल डिलीवरी रोजाना - 50-60

सिजेरियन रोजाना - 150-200

नॉर्मल डिलीवरी चार्ज - 20000-22000

सिजेरियन चार्ज - 25000-30000

एनआईसीयू चार्ज - 4000-5000

24 घंटे का वार्मर चार्ज - 1500

एक माह में महिला अस्पताल में नॉर्मल डिलीवरी - 417

सिजेरियन - 159

महिला अस्पताल के एनआईसीयू में भर्ती नवजात - 14

वर्जन

प्राइवेट अस्पतालों से हर बाहर डेटा मांगा जाता है कि नॉर्मल डिलीवरी और सिजेरियन कितना हुआ है और कितने नवजात बच्चे जन्म लिए। मगर ब्यौरा उपलब्ध नहीं कराते हैं क्योंकि इस पर कोई नियम कानून नहीं है जिसकी वजह से वे बहाना बनाते हैं।

- डॉ। नंद कुमार, एसीएमओं

शिकायत अभी तक नहीं मिली है। अगर शिकायत मिलती है तो उसकी जांच करवाई जाएगी।

- डॉ। एनके पांडेय एसीएमओ

बारबार स्वास्थ्य विभाग को निजी अस्पतालों द्वारा ब्योरा उपलब्ध कराई जाती है। जहां तक इलाज के नाम पर अतिरिक्त फीस लेने की बात है तो गलत है।

- डॉ। राजेश कुमार गुप्ता, सचिव आईएमए