जमकर हुई झड़प

यहां बीते 18 दिन से तहरीक ए इंसाफ पार्टी के अध्यक्ष इमरान खान और धर्मगुरु ताहिर उल कादरी की अगुवाई में प्रदर्शन चल रहा था. देखते ही देखते प्रदर्शन के दौरान लोगों और पुलिस में जमकर झड़प शुरू हो गई.

झड़प में गई तीन जानें

शनिवार देर रात शुरू हुई इस झड़प में अब तक तीन लोगों के मारे जाने की खबर आई है. 275 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं, इसमें 100 के करीब पुलिसवाले भी हैं. स्थिति को देखते हुए पाकिस्तान के आर्मी चीफ राहिल शरीफ ने सोमवार को सभी कोर कमांडरों की बैठक बुलाई. बैठक में सेना अपने अगले कदम का फैसला लेगी.

ऐसे शुरू हुआ बवाल

स्थानीय मीडिया के मुताबिक यहां करीब 25 हजार लोगों की भीड़ मौजूद थी. बवाल उस वक्त शुरू हुआ जब इमरान खान और ताहिर उल कादरी ने लोगों से प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के घर की तरफ चलने के लिए कहा. ये लोग नवाज के घर का घेराव करना चाहते थे. इमरान और कादरी के आह्वान के बाद लोगों की भीड़ प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के घर की तरफ बढ़ी. सुरक्षा बलों ने जब इन्हें रोकने की कोशिश की तो लोग भड़क गए. लोगों ने सुरक्षा बलों पर हमला बोल दिया। हाथों में लाठियां, पत्थर से लैस लोग सुरक्षाबलों से भिड़ गए. इनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे।

झड़प की चपेट में आई मीडिया भी

शनिवार रात शुरू हुई झड़प रविवार सुबह तक चलती रही. घायलों की संख्या भी बढ़ती रही. झड़प की चपेट में कई मीडियाकर्मी भी आए. जियो न्यूज के पत्रकार को सुरक्षा बलों ने जमकर पीटा जबकि एक न्यूज चैनल की ओबी वैन लोगों ने तोड़ दी. जियो न्यूज का आरोप है कि उसके दफ्तर पर भी इमरान खान की पार्टी पीटीआई के लोगों ने हमला किया. इसमें एक महिला रिपोर्टर घायल हो गई. लोगों ने कई जगह पर आगजनी भी की. हालात को नियंत्रण में करने के लिए इलाके में भारी संख्या में सुरक्षा बल को लगाना पड़ा, लेकिन लोगों की संख्या ज्यादा होने की वजह से स्थिति को संभालने में सुरक्षा बलों को काफी मुश्किल का सामना करना पड़ा.

स्िथति बिगड़ती देख नवाज शरीफ इस्लामाबाद छोड़ लाहौर पहुंचे

झड़प की स्थिति को बिगड़ता देख प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को इस्लामाबाद छोड़कर लाहौर अपने घर जाना पड़ गया, लेकिन लाहौर में भी कई इलाकों में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प की खबरें आई हैं. पंजाब सरकार के मुताबिक राज्य की सीमाएं सील कर दी गई हैं ताकि लाहौर में शांति बनी रहे.

ऐसी हैं इमरान-कादरी की मांगें

इमरान खान कुछ दिन पहले नवाज शरीफ से बातचीत करने के लिए भी तैयार हो गए थे, लेकिन बात को बनती न देख बाद में उन्होंने प्रदर्शन जारी रखने का फैसला किया. इमरान खान और ताहिर उल कादरी की मांगों की लंबी फेहरिस्त है. नवाज के लिए इन्हें मानना तकरीबन नामुमकिन है. इनकी मांग है कि प्रधानमंत्री नवाज शरीफ़ इस्तीफा दें. पाकिस्तान में नए सिरे से चुनाव कराए जाएं. सभी विधानसभाओं के लिए दोबारा चुनाव हों. सभी सियासी दलों की सलाह से निष्पक्ष नागरिक सरकार बने. सभी चुनाव कमिश्नरों से इस्तीफे लिए जाएं और चुनाव सुधार हों. 2013 के चुनाव में 'धांधली' में शामिल लोगों पर मुकद्दमा चले.

संदेह के साये में है सेना की भूमिका भी

पाकिस्तानी सेना इस मामले में फिलहाल ज्यादा खुलकर सामने नहीं आ रही है, लेकिन ताजा हालात देखते हुए सेना प्रमुख राहिल शरीफ ने अपने खासमखास अफसरों के साथ बैठक की. पिछले दिनों उन्होंने हालात सुलझाने के लिए नवाज शरीफ से भी मुलाकात की थी. सेना ने बयान जारी कर नेताओं को संयम बरतने की सलाह भी दी थी. राहिल शरीफ ने सोमवार को सभी कोर कमांडरों की बैठक बुलाई है. इस बैठक में सेना अपने अगले कदम का फैसला लेगी. कई लोग ऐसा मानते हैं कि सेना जब तक नवाज के साथ है, उन्हें कोई खतरा नहीं है, लेकिन कई ऐसे लोग भी हैं जिनका मानना है कि असल में पाकिस्तानी सेना इमरान और कादरी के साथ है. उन्हें आगे बढ़ाकर सेना एक बार फिर पाकिस्तान की सत्ता हथियाना चाहती है. जैसे-जैसे हालात बिगड़ेंगे सेना शासन-प्रशासन पर कब्जा करती जाएगी. फिलहाल तो प्रधानमंत्री नवाज लाहौर में हैं, लेकिन इस्लामाबाद में बढ़ी हिंसा पूरे देश में फैलने का खतरा है. शायद तब लाहौर में बैठै नवाज एक बार फिर सेना की धमक की आंच महसूस करें.

क्यों बढ़ा इमरान-कादरी को समर्थन

पाकिस्तान में भूख है, गरीबी है, बेरोजगारी है, आंतरिक आतंकवाद है, अलग-अलग फिरकों के बीच आपसी जंग है, अपराध है, और खस्ताहाल अर्थव्यवस्था है. पाकिस्तान की जनता ऐसे हालात में बदलाव चाहती है. पीटीआई के अध्यक्ष इमरान खान और पाकिस्तान अवामी तहरीक के मुखिया ताहिर उल कादरी ने लोगों को इस बदलाव के सपने दिखाए तो लोग उनके साथ हो लिए. हालांकि 18 दिन पहले जब उनके साथ प्रदर्शनकारी इस्लामाबाद के रेड जोन में पहुंचे तो उनकी संख्या ज्यादा नहीं थी. तकरीबन साठ हजार लोगों की तादाद बताई जा रही थी, लेकिन इसमें बड़ी संख्या में बच्चे और महिलाएं भी शामिल थे. इन्हें उम्मीद थी कि उनका आंदोलन पाकिस्तान में वो क्रांति ले आएगा, जिसका इंतजार उसे लंबे वक्त से है.

उठ रहे हैं कई सवाल

मगर, सवाल ये भी है कि पुराने सियासी नेताओं और पुरानी सियासी पार्टियों को छोड़कर लोगों ने दो ऐसे नेताओं की अगुवाई में जुटना क्यों पसंद किया जो बुनियादी रूप से नेता नहीं थे. इमरान खान पूर्व क्रिकेट स्टार हैं, जिन्होंने पाकिस्तान को विश्वकप जितवाया था. 1997 में उन्होंने अपनी सियासी पार्टी बनाई लेकिन जनसमर्थन उन्हें अब जा कर हासिल हुआ है.  2013 के चुनाव में वोट शेयर के मामले में उनकी पार्टी दूसरे नंबर पर थी, हालांकि सीटों के मामले पर वो तीसरे नंबर पर आई. खैबर पख्तूनख्वा में इमरान की पार्टी सरकार बनाने में भी कामयाब रही. वहीं सूफी मौलाना ताहिर-उल-कादरी भी पाकिस्तान में स्थापित सियासी नेता नहीं हैं. जनरल जिया उल हक के निधन के बाद ताहिर उल कादरी ने सियासत में कदम रखा था, लेकिन इसके बाद वो कनाडा में जा बसे. बीच-बीच में पाकिस्तान आते रहते हैं. चुनावों में उनकी पार्टी पाकिस्तान आवामी तहरीक नाकाम ही रही है, लेकिन 1981 में स्थापित कल्याणकारी संस्थाओं के जरिए उन्होंने अच्छा जनसमर्थन जुटा लिया. इस जनसमर्थन की बदौलत ही ताहिर-उल-कादरी ने पिछले साल भी समर्थकों की लंबी चौड़ी फौज के साथ इस्लामाबाद का घेराव किया था, लेकिन चुनाव सुधार और सियासी पारदर्शिता की शर्तों पर हुए एक समझौते के बाद उन्होंने घेराव खत्म कर दिया था.  हालांकि ये मानने वालों की भी कमी नहीं है कि 2013 में कादरी के लांग मार्च के पीछे सेना का मूक समर्थन था जो तत्कालीन सरकार का असर कम करना चाहती थी. तो क्या इस बार भी बदलाव के इस सपने को सेना ने ही हवा दी है, ताकि वो लोकतंत्र की जड़ों को एक बार फिर कमजोर कर सके।

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