- पैथोलॉजी की भी जिम्मेदारी है डेंगू की रिपोर्टिग

- सीएमओ ने रोकथाम के लिए सभी को पहल करने को कहा

- मरीज के परिजन और पड़ोसी भी दे सकते हैं सूचना

GORAKHPUR: अस्पताल या पैथोलॉजी अगर रूल के अकॉर्डिग नोटिफिकेशन नहीं करें, उन्हें नोटिस दी जाएगी। टाइमली इसकी रिपोर्टिग न होने से लोगों को इसका नुकसान होता है और बीमारी के प्रसार का खतरा बढ़ जाता है। डेंगू के केसेज सामने आ रहे हैं, तो निरोधात्मक कार्यवाही भी हो रही है लेकिन अगर कोई भी चिकित्सा इकाई ऐसे मामलों को स्वास्थ्य विभाग से छिपा कर रखती है, तो बीमारी पर नियंत्रण में दिक्कत पेश आएगी जो ठीक नहीं है। उन्होंने एक बार फिर इस बात को दोहराया कि सिर्फ एनएस-वन टेस्ट या फिर रैपिड टेस्ट के बेसिस पर डेंगू घोषित कर किसी भी मरीज का इलाज करना और उसका एलाइजा टेस्ट न कराया जाना इंटरनेशनल हेल्थ रूल्स के खिलाफ है और ऐसा जनहित में ठीक नहीं है। समय से बीमारी का नोटिफिकेशन होने के बाद एलाइजा टेस्ट करा कर विभाग डेंगू कंफर्म करता है और सभी आवश्यक कदम उठाए जाते हैं। फिलहाल इस साल जिले में ऐसे सिर्फ 20 मामलों की पुष्टी हुई है।

स्वास्थ्य विभाग को उपलब्ध कराएं डीटेल

डेंगू मरीजों का नोटिफिकेशन सिर्फ अस्पताल या नर्सिग होम की ही जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि पैथोलॉजी सेंटर की इसमें अहम भूमिका है। अगर उनके यहां रैपिड जांच में किसी मरीज में डेंगू की पुष्टी होती है तो उन्हें उस मरीज का नाम, पता, मोबाइल नंबर और जिस अस्पताल से जांच आई है, उसकी डीटेल स्वास्थ्य विभाग को तत्काल उपलब्ध कराएं, जिससे कि विभाग त्वरित निरोधात्मक कार्यवाही कर सके। यह जानकारी देते हुए सीएमओ डॉ। एसके तिवारी ने बताया कि समुदाय स्तर पर बीमार मरीजों के नोटिफिकेशन की जिम्मेदारी आशा कार्यकर्ता और एएनएम को भी दी गई है। यही नहीं, जनहित में डेंगू मरीज के परिजन और पड़ोसी भी स्वास्थ्य विभाग को सूचना दे सकते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि सभी के समन्वित प्रयासों से ही डेंगू समेत सभी प्रकार के संचारी रोगों के नियंत्रण में मदद मिलेगी।

डॉक्टर्स के लिए भी है प्रोटोकॉल

जिला स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी ओपीजी राव ने बताया कि इसी साल 15 फरवरी को स्वयंसेवी संगठन विश फाउंडेशन की मदद से जनपद के सभी सरकारी स्वास्थ्य केंद्र और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की मदद से प्राइवेट डॉक्टर्स को भी डेंगू के प्रति सेंसेटाइज किया गया था। उन्हें खासतौर पर बताया गया था कि डेंगू का हमला होने पर मरीज में प्लेटलेट बाद में कम होता है सबसे पहले टीएलसी नीचे आता है। इस प्रोग्राम में डॉक्टर्स के लिए इलाज के कुछ प्रोटोकाल भी बताए गए थे, जिनका पालन जनहित में बहुत जरूरी है। उन्होंने प्रोटोकॉल्स के बारे में विस्तार से बिंदुवार जानकारी दी गई थी।

ये दी गई थी जानकारी

- बुखार का कोई भी केस आए, सीबीसी जांच अवश्य करवाएं।

- डेंगू के मरीज के पर्चे पर बरतने वाली सावधानियां जरूर लिखें।

- बुखार के चौथे से सातवें दिन में विशेष निगरानी व सावधानी रखें।

- बीपी, शुगर और गर्भवती महिलाओं के लिये मानक वैज्ञानिक पद्धति का इलाज दें।

- अगर मां को डेंगू है तो नवजात बच्चे को भी डेंगू हो सकता है, यह सूचना परिजनों को अवश्य दें।

- मरीज के इलाज के साथ उसके काउंसिलिंग पर ज्यादा ध्यान होना चाहिए।

- अनावश्यक एंटीबायोटिक का इस्तेमाल न करें।

- जब तक आवश्यक न हो तब तब आईवी फ्लूड का इस्तेमाल न हो।

- मायोकार्डिटीज की अवस्था में जान बचने की गुंजाइश कम होती है, यह अवश्य बता दें।

- मरीज किस ग्रुप के डेंगू से पीडि़त है उसके पर्चे पर लिख दें।

- सामान्यतया पैरासिटामाल और नार्मल सैलाइन का ही इलाज में इस्तेमाल हो।

- मरीजों का यह भ्रम खत्म करें कि डेंगू के हर मामले में प्लेटलेट्स चढ़ाने की आवश्यकता होती है।

ये लक्षण दिखे तो हो सकता है डेंगू

- त्वचा पर चकत्ते

- तेज सिर दर्द

- पीठ दर्द

- आंखों में दर्द

- तेज बुखार

- मसूड़ों से खून बहना

- नाक से खून बहना

- जोड़ों में दर्द

- उल्टी

- डायरिया

यह भी जानिए

डेंगू मादा एडिज मच्छर के काटने से होता है। इस मच्छर के काटने के 5 से 6 दिन बाद डेंगू के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। डेंगू के सबसे खतरनाक लक्षणों में हड्डियों का दर्द शामिल है। इसी वजह से डेंगू बुखार को 'हड्डीतोड़ बुखार' के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इससे पीडि़तों को इतना अधिक दर्द होता है कि जैसे उनकी हड्डियां टूट गई हों।