- यूनिवर्सिटी के पास नहीं मौजूद हैं वैकेंट सीट के रिकॉर्ड

- पांच साल से नहीं ऑर्गनाइज हो सका है रिसर्च एलिजिबिल्टी टेस्ट

- नए अध्यादेश पर शासन ने रेट ऑर्गनाइज करने के दिए हैं निर्देश

GORAKHPUR: गोरखपुर यूनिवर्सिटी से रिसर्च करने की तैयारी कर रहे कैंडिडेट्स को यहां से नई-नई खोज करने के लिए अभी थोड़ा और इंतजार करना पड़ेगा। डिफरेंट स्ट्रीम में रिसर्च की परमिशन मिलने के बाद भी अब इसमें सीट का रोड़ा अटका हुआ है। किस विभाग में कितनी सीट खाली है और कितने रिसर्च गाइड मौजूद हैं, इसकी अब तक यूनिवर्सिटी के जिम्मेदारों के पास कोई डीटेल नहीं है। इसकी वजह से अब लोगों ने यह ब्यौरा जुटाना शुरू कर दिया है। इसके आने के बाद ही रेट की कार्रवाई आगे बढ़ेगी और लोगों को यूनिवर्सिटी में एडमिशन का मौका मिलेगा।

फरवरी से पहले कोई चांस नहीं

यूनिवर्सिटी में रिसर्च एलिजिबिल्टी टेस्ट का फरवरी से पहले कोई आसार नहीं नजर आ रहा है। क्योंकि अब जिम्मेदारों ने सभी डिपार्टमेंट्स और पीजी कराने वाले कॉलेजेज से रिसर्च गाइड की संख्या और उनके सापेक्ष स्टूडेंट्स का डाटा मांगा है। यह डाटा मिलने के बाद यूनिवर्सिटी इसे एडवर्टाइज करेगी, जिसके बाद फॉर्म भरने का सिलसिला शुरू हो सकेगा। सोर्सेज की मानें तो इसमें कम से कम एक माह से ज्यादा का वक्त लग सकता है। फॉर्म भरने में कम से कम तीन हफ्ते देने ही होंगे, जिसे मिला-जुलाकर यूनिवर्सिटी फरवरी में ही रेट कंडक्ट करा पाएगी।

अगस्त में होना था रेट

गोरखपुर यूनिवर्सिटी में 2013 के बाद से स्टूडेंट्स को रेट का इंतजार है। यूनिवर्सिटी ने अगस्त 2018 में रेट कराने की तैयारी की थी, लेकिन शासन से उन्हें हरी झंडी नहीं मिली। इसके लिए यूनिवर्सिटी के जिम्मेदारों ने सभी विभाग को भी तैयारियां करने के निर्देश पहले ही दे दिए थे, वहीं एडमिनिस्ट्रेटिव लेवल पर भी इसकी तैयारियां तेज कर दी गई थीं। अब राज्यपाल के अनुमोदन के बाद इसने रफ्तार तो पकड़ी, लेकिन जरूरी डाटा न होने की वजह से पीएचडी में दाखिले की कवायद नहीं शुरू हो सकी।

अटका हुआ था प्रपोजल

यूजीसी गाइडलांइस के बाद यूनिवर्सिटी लेवल पर पीएचडी का नया अध्यादेश बीते साल ही तैयार हो चुका है। कार्यपरिषद की मंजूरी के बाद इसे कुलाधिपति से मंजूरी लेने के लिए भेजा गया था। नए रूल में फीस निर्धारण न होने की वजह से कुलाधिपति ने इस पर आपत्ति लगा दी थी। जिसकी वजह से चल रही प्रॉसेस को एक बार फिर ब्रेक लग गया। यूनिवर्सिटी ने फीस निर्धारित करने बाद प्रपोजल को शासन के पास दोबारा भेजा, लेकिन राज्यपाल से हरी झंडी न मिल पाने की वजह से रिसर्च एलिजिबिल्टी टेस्ट अब भी अटका था। ग्रीन सिग्नल मिला, लेकिन इसके बाद फिर से रोड़ा अटक गया।