-आवास विकास और एमडीए की विवादित स्कीमों पर होगा वर्क

-डंप पड़ी योजनाओं को किया जाएगा पुनर्जीवित, ताकि बढ़े रजिस्ट्री

आई एक्सक्लूसिव

मेरठ: लगातार घट रहे रजिस्ट्री विभाग के टारगेट को पूरा करने के लिए शासन स्तर पर भागीरथ प्रयास किए जा रहे हैं। इसी क्रम में सरकार ने सभी जनपद मुख्यालयों को ऐसे सरकारी हाउसिंग प्रोजेक्ट को गति देने के निर्देश दिए हैं जो विवादित हैं। शासन का मानना है कि डंप पड़ी स्कीमों से जुड़े विवाद हटेंगे तो खरीद-फरोख्त शुरू होगी।

विवाद निपटे तो बने बात

रेवेन्यू कलेक्शन में मेरठ समेत सूबे के ज्यादातर रजिस्ट्री विभाग पिछड़े हैं। गत वर्षो के आंकड़ों को उठाकर देखें तो कलेक्शन लक्ष्य का 50-60 फीसदी ही रहा है। ऐसे में सरकार लगातार रजिस्ट्री विभाग का रेवन्यू बढ़ाने के लिए कवायद कर रहा है। हाल ही में हुई मीटिंग्स के बाद शासन ने सभी जनपदों के डीएम को निर्देश दिए हैं कि वे अपने जनपदों में डंप पड़े हाउसिंग और कामर्शियल प्रोजेक्ट को री-एक्टिव करें। विवादों को निपटाया जाए जिससे जमीनों और मकानों की खरीद-फरोख्त आरंभ हो सके।

अब तक महज 35 फीसदी

आंकड़ों पर गौर करें तो मेरठ में रजिस्ट्री विभाग द्वारा सत्र 2017-18 में सितंबर माह तक टारगेट का महज 35 फीसदी रेवेन्यू हासिल किया जा सका है। सितंबर माह में टारगेट का करीब 61 फीसदी एचीव किया है। एआईजी स्टाम्प संजय श्रीवास्तव ने बताया कि रजिस्ट्री विभाग का रेवेन्यू बढ़ाने के लिए शासन स्तर पर बड़े पैमाने पर प्रयास चल रहे हैं। मेरठ की शताब्दीनगर एवं आवासीय योजना से जुड़े विवादों का निपटारा हो तो खरीद-फरोख्त बढ़े। बता दें कि वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए रजिस्ट्री विभाग का टारगेट 597.77 करोड़ रुपये है।

मेरठ के विभिन्न आवासीय प्रोजेक्ट पर किसानों के साथ विवाद समाप्त हो तो प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त बढ़े। रजिस्ट्री विभाग का रेवेन्यू बढाने के लिए सरकार की ओर से प्रयास किए जा रहे हैं।

संजय श्रीवास्तव, एआईजी स्टाम्प, मेरठ

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किसानों से विवाद

मेरठ में एमडीए के अधीन करीब 12 आवासीय योजनाएं लांच की गई हैं जिसमें से शताब्दीनगर, गंगानगर, वेदव्यासपुरी की ज्यादातर आवासीय प्रोजेक्ट किसानों के साथ विवाद के चलते डंप पड़े हैं।

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और भी हो रहे प्रयास

मेरठ जनपद में कानून को तोड़-मरोड़कर सैकड़ों किसानों ने रजिस्ट्री फीस में रियायत हासिल कर ली है। गत दिनों एडीएम फाइनेंस और एआईजी स्टाम्प द्वारा 204 ऐसे मुकदमे दर्ज कराए गए हैं। 6 करोड़ रुपये के स्टाम्प का फटका इन किसानों ने विभाग को लगाया है। बता दें कि एनएचएआई की योजनाओं में लाभ ले चुके किसान 2011 के एक शासनादेश को ढाल बनाकर विभाग को करोड़ों रुपये का नुकसान दे चुके हैं। इस प्रकरण में शासन स्तर पर एनएचएआई से रजिस्ट्री फीस का भुगतान कराने की दिशा में कवायद की जा रही है।

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