- पुलिस लाइन में रहने वाले 925 परिवारों का दर्द-ए-हाल

- खौफ के साए में रहने को मजबूर पुलिस कर्मियों का परिवार

- कभी हो सकता है बड़ा हादसा, पहले भी हो चुके हैं हादसे

- 925 आवास

- 08 बैरक

- 04 बैरक कंडम घोषित

- 10 से 30 लाख वार्षिक बजट

LUCKNOW : जनता की सुरक्षा के लिए दिन और रात एक करने वाले पुलिसकर्मी खुद खतरे के साए में जीने को मजबूर हैं। वहीं पुलिस लाइन में रहने वाला उनका परिवार हर दिन खतरे से रूबरू होता है। अनुशासन के चलते ना तो वह और ना ही उनका परिवार शिकायत करने की हिम्मत करता है। यहां रहने वाले पुलिसकर्मियों का दर्द महकमे के हर अधिकारी जानते हैं, लेकिन उन्हें इससे उबारने की फिक्र किसी को नहीं है। विभाग की ओर से हर वर्ष रंग रोगन और मरम्मत के लिए बजट जारी कर खानापूर्ति की जा रही है जबकि जमीनी हकीकत यह है कॉलोनी के कुछ हिस्से कभी जमींदोज हो सकते हैं।

जर्जर हो चुकी कॉलोनी की कई बिल्डिंग

लखनऊ पुलिस लाइन में करीब 925 सरकारी आवास हैं। लाइन में 8 बैरक भी हैं। सरकारी आवास में दारोगा से लेकर कांस्टेबल और फालोवर परिवार समेत रहते हैं। बैरक में कई सिपाहियों ने अपना 'रैन बसेरा' बना रखा है। करीब साढ़े तीन हजार से ज्यादा परिवार पुलिस लाइन के सरकारी क्वार्टर में रहते हैं। अफसरों के क्वार्टर छोड़ दें तो दारोगा, कांस्टेबल और फालोवर के आवासों की हालत बिल्कुल जर्जर हो चुकी है। कहीं छज्जा लटका हुआ है तो कहीं छत का प्लास्टर टूट रहा है। इतना ही नहीं बारिश के दिनों में छत से पानी टपकने से पूरी गृहस्थी तक खराब हो रही है।

टीवी फ्रिज तक खराब हो गए

यहां बारिश के दिनों में छत से पानी टपकने से लोगों के टीवी और फ्रिज तक खराब हो गए। जब पुलिस कर्मी रात में गश्त करते हैं तब उनका परिवार बारिश में अपनी गृहस्थी को एक कमरे में सुरक्षित समेट कर बचाने में जुटा रहता है। कई मकानों में गेट तक नहीं हैं। जर्जर होने के चलते यह टूट गए हैं या फिर सुरक्षा के लिहाज से लोगों ने निकाल कर उसे किनारे रख दिया है।

डीजीपी ने किया था निरीक्षण, दिया था आश्वासन

तत्कालीन डीजीपी सुलखान सिंह और वर्तमान डीजीपी ओपी सिंह ने पुलिस कॉलोनी का निरीक्षण कर वहां की साफ सफाई और कंडम घोषित हो चुकी बैरक के निर्माण का निर्देश दिया था। पुलिस लाइन के चार बैरक को कंडम घोषित कर दिया, लेकिन अभी तक नए बैरक के लिए प्रस्ताव तक बनाकर नहीं दिया गया। कॉलोनी की जर्जर बिल्डिंग की मरम्मत तो दूर उसके साफ सफाई तक नहीं कराई गई।

मरम्मत के नाम पर हर वर्ष आता है बजट

पुलिस लाइन की कॉलोनी के नाम पर हर वर्ष मरम्मत और रंग रोगन के नाम पर 10 से 30 लाख रुपये वार्षिक आता है। हालांकि इतने बजट में एक-एक कॉलोनी की मरम्मत कराई जाए तो भी पांच साल में मरम्मत कार्य पूरा किया जा सकता है। आरआई लाइन का कहना है कि नए बैरक और कॉलोनी को बनाने के लिए बड़ा बजट लगता है। इसके लिए शासन से प्रस्ताव तैयार किया जाता है।

बातचीत

पुलिस लाइन के सरकारी आवास की हालत जर्जर है। कहीं पर दरवाजा नहीं है तो कहीं दीवार जर्जर है। कभी भी कोई हादसा हो सकता है। पहले भी एक सिपाही और पुलिस परिवार के साथ रहने वाली एक युवती हादसे में घायल हो चुके है। हर तरफ गंदगी और अव्यवस्था का आलम खुद नजर आता है।

- सुशील कुमार सिंह

बारिश के दिनों में घर में पानी टपकने के चलते इलेक्ट्रानिक्स सामान खराब हो गया है। कई बार शिकायत की गई, लेकिन न तो मरम्मत कराया गया और न ही समस्या का हल निकाला जा सका। ठंडी और बारिश में मुश्किल बढ़ जाती है। विभाग का मामला होने के चलते ज्यादा विरोध भी नहीं किया जा सकता।

- संगीता सिंह

जर्जर बिल्डिंग होने के चलते दीवार के गिरने का हमेशा डर लगा रहता है। कॉलोनी में दूसरे मंजिल की बालकनी कई बार गिर चुकी है। कमरों के छत का प्लास्टर भी अक्सर गिरता है। दरवाजे पूरी तरह से गल चुके हैं, बावजूद उसे विभाग की तरफ से कभी बदला नहीं गया।

- राधा मिश्रा

पुलिस लाइन की ज्यादातर कॉलोनी जर्जर हो चुकी है। यहां रहने लायक नहीं हैं, लेकिन मजबूरी है कि सरकारी आवास और कहीं मिल नहीं रहे। नालियां बजबजा रही हैं और चारों तरफ गंदगी का आलम है। अफसरों ने निरीक्षण भी किया, लेकिन हालात फिर भी नहीं बदले।

- शमला देवी

कॉलोनी की मरम्मत के लिए हर साल बजट आता है। कई जगह मरम्मत का काम कराया गया, लेकिन उसकी हकीकत परखने का समय किसी के पास नहीं है। ऊपर से प्लास्टर करके रंग रोगन कर दिया जाता है। जबकि अंदर स्थिति जर्जर है। पुलिस लाइन के कॉलोनी में कभी कोई बड़ा हादसा हो सकता है।

माया देवी

कोट

पुलिस लाइन के सरकारी आवास की मरम्मत और रंग रोगन के लिए जो बजट आता है, उसे मरम्मत कार्य में लगाया जाता है। नई बैरक और कॉलोनी के लिए स्थानीय स्तर पर कोई बजट नहीं होता है।

राम लखन, आरआई लाइन सेकेंड