- छोटी-छोटी बातों के कारण हो रहे हैं रोडवेज बसों के एक्सीडेंट

- कंडक्टर और ड्राइवर्स की सुविधाओं का भी नहीं रखा जाता ध्यान

- ज्यादा काम और नींद न पूरी होने के कारण ड्राइवर्स हो रहे हैं मानसिक रोगी

MEERUT@inext.cop.in

Meerut : ट्रेन में अक्सर रिजर्वेशन की प्रॉब्लम सामने आने की वजह से लोग बस से जर्नी करते हैं। खासकर अगर उत्तर प्रदेश के किसी कोने में जाना हो तो फिर बिना किसी हिचक के लोग रोडवेज बसों का ही सहारा लेते हैं, लेकिन पैसेंजर्स की सिक्योरिटी को लेकर रोडवेज कितना लापरवाह है इसका अंदाजा आए दिन होने वाले एक्सीडेंट से लगाया जा सकता है। एनसीआरबी के आंकड़े बता रहे हैं कि पिछले एक साल में मेरठ और आसपास के हाईवे में होने वाले एक्सीडेंट्स में म्0 से 70 फीसदी रोडवेज बसों के हैं। इन हादसों में तीन दर्जन से ज्यादा लोग काल के गाल में समा चुके हैं। रोडवेज बसों के एक्सीडेंट्स के 90 फीसदी मामलों में बस ड्राइवर और बसों की खस्ताहाल हालत जिम्मेदार है।

झपकी पहुंचा सकती है यमलोक

रोडवेज की बसों में ट्रैवल करते समय आप हर वक्त एक अंजान खतरे के बीच घिरे रहते हैं। कई बार ड्राइवर्स नींद में होने से हादसों को अंजाम दे देते हैं। ऐसे में आपके आई नेक्स्ट ने सफर के दौरान ड्राइवरों को नींद आने के मामले की पड़ताल करने के लिए उनकी दिनचर्या और जीवन शैली जानने की कोशिश की, जिसमें खुलासा हुआ कि आखिर क्यों लंबी दूरी के सफर में ड्राइवरों को झपकी आ जाती है। किस तरह से ड्राइवर बिना रेस्ट लिए ही सैकड़ों किलोमीटर बस चलाते हैं। सूबे में एक भी रेस्ट रूम नहीं है, जिसमें ड्राइवर व कंडक्टर जाकर आराम कर सकें। सभी डिपो और बस स्टेशन पर यही हाल है, जिसका नतीजा ये होता है कि जैसे-तैसे मौका पाकर ड्राइवर बस के नीचे या फिर खुले आसमान के नीचे ही कुछ पल की नींद पूरी करने की कोशिश करता है।

ख्00 की जगह भ्00 किमी

कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष जवर सिंह कहते हैं कि रोडवेज विभाग के बस ड्राइवर रोज ब्00 से भ्00 किलोमीटर चलते हैं। दिल्ली-देहरादून रूट पर चलने वाले ड्राइवर राम कुमार शर्मा बताते हैं कि एक दिन में औसतन भ्00 किलोमीटर तो चलना ही पड़ता है। रोडवेज विभाग का टूर ही कुछ ऐसा होता है। कभी-कभी तो भ्भ्0 किलोमीटर तक हो जाता है। जबकि नियम के अनुसार एक ड्राइवर को एक दिन में अधिकतम ख्00 किलोमीटर तक ही बस चलाना है।

बन जाते हैं मानसिक रोगी

रोडवेज विभाग के ड्राइवर व कंडक्टर बिगड़ी हुई दिनचर्या की वजह से मानसिक रोगी बन जाते हैं। मानसिक रोग विशेषज्ञ ने बताया कि ऐसे रोगी आते हैं, जो नींद न पूरी होने के चलते मानसिक रोग के शिकार हो जाते हैं। जिनमें ड्राइविंग के पेशे वालों की संख्या ज्यादा होती है। इनमें सरकारी और जनरल ड्राइवर भी होते हैं। अगर ड्राइवर को प्रॉपर रेस्ट न मिले तो गाड़ी चलाते वक्त हादसे की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

--------

मेंटेनेंस की हकीकत भी जान लीजिए

रोडवेज को लगातार हो रहे घाटे से स्थिति ये हो गई है कि कर्मचारियों, खासकर संविदा कर्मियों को समय पर वेतन नहीं मिल रहा है और न ही बसों का उचित मेंटेनेंस हो रही है। ऐसे में स्थिति आप खुद समझ सकते हैं। मैकेनिकल इंजीनियर नावेद खान के मुताबिक बस का मेंटेनेंस समय-समय पर होना चाहिए। अगर मेंटेनेंस या सर्विस समय पर नहीं होती है तो फिर प्रॉब्लम जरूर आएगी।

ब्रेक ऑयल और ब्रेक शू

मैकेनिकल इंजीनियर नावेद के मुताबिक अगर ब्रेक ऑयल गाड़ी में नहीं है तो फिर गाड़ी का ब्रेक फेल हो जाएगा। इसके लिए क्0,000 किलोमीटर की यात्रा के बाद इसको चेक कराना जरूरी है। अगर चेक नहीं कराया और लीकेज की वजह से ऑयल कम होना शुरू हुआ तो फिर धीरे-धीरे ब्रेक कम लगेगी और लापरवाही से बड़ा हादसा हो सकता है। ब्रेक शू भी अगर अच्छी कंपनी का है तो दस हजार से बीस हजार के बीच घिस जाते हैं। नाम न पब्लिश करने की रिक्वेस्ट पर रोडवेज डिपो के कर्मचारी ने बताया कि क्0 हजार तो छोडि़ए भ्0 हजार किलोमीटर की यात्रा के बाद भी कभी ब्रेक ऑयल चेक नहीं होता है। कर्मचारी के मुताबिक ब्रेक शू रोडवेज की बसों में बहुत अच्छी कंपनी के नहीं लगते हैं और भ्0 हजार किलोमीटर के बाद ब्रेक ऑयल और ब्रेक शू भी कोई चेक नहीं करता है। ब्रेक शू और ब्रेक ऑयल की उचित मॉनिटरिंग न होने के बाद ब्रेक फेल होगा तो फिर एक्सीडेंट से भगवान ही बचा सकता है।

मोबिल ऑयल बदलना भी जरूरी

मैकेनिकल इंजीनियर वसी उल्ला के मुताबिक मोबिल ऑयल अगर समय पर नहीं बदला जाता है तो फिर ल्यूब्रिकेशन कम हो जाता है, जिसके कम होने की वजह से इंजन में अचानक किसी भी तरह की गड़बड़ी आ सकती है। जब चलती गाड़ी के इंजन में गड़बड़ी आएगी तो फिर कोई भी हादसा हो सकता है। रोडवेज वर्कशॉप कर्मचारी के मुताबिक रोडवेज बसों में मोबिल ऑयल एक साल में भी चेंज नहीं होता है। जबकि बसें लगातार रोड पर दौड़ती रहती हैं। ऐसे में आप समझ सकते हैं कि आपकी जर्नी कितनी सुरक्षित है।

स्टेयरिंग का मेंटेनेंस जरुरी

मैकेनिकल इंजीनियर वसी उल्ला के मुताबिक स्टेयरिंग क ा मेंटेनेंस भी समय-समय पर बहुत जरूरी है। खासकर जब बस लांग रूट पर चलती हो। स्टेयरिंग दो तरह के अमूमन होते हैं एक पॉवर और दूसरा मैनुअल। इनका अलग-अलग रखरखाव होता है। इसके न होने पर अचानक स्टेयरिंग फ्री हो जाता है तो गाड़ी बहकेगी और फिर एक्सीडेंट की संभावना काफी बढ़ जाती है। वहीं रोडवेज के कर्मचारी खुद मानते हैं कि स्टेयरिंग की समय पर कभी जांच नहीं होती है। जब तक किसी तरह गड़बड़ी स्टेयरिंग में नहीं आती है। तब तक मेंटेनेंस की बात ही नहीं आती है। ऐसे में कई बार स्टेयरिंग रास्ते में प्रॉब्लम करती है। ड्राइवर की मुस्तैदी से हादसे कभी-कभी बच जाते हैं और कभी-कभी फिर वो भी नहीं बचा पाते हैं।

इसके अलावा भी बहुत कुछ

मैकेनिकल इंजीनियर्स के मुताबिक बसों को मेंटेनेंस की सबसे ज्यादा जरूरत है। इसके पीछे वजह है कि बसों में पैसेंजर्स सफर करते हैं। क्00 पैसेंजर्स तक बस में एक समय में सफर करते हैं। ऐसे में समय-समय पर बस की वायरिंग, टायर, क्लच और दूसरी इलेक्ट्रानिक चीजों की मेंटेनेंस काफी जरूरी है। इनको अगर समय-समय पर मेंटेंन नहीं किया गया तो फिर छोटी सी प्रॉब्लम बड़ी दिक्कत पैदा कर सकती है। रोडवेज कर्मचारी कहते हैं कि जब पैसा ही नहीं रहता है तो फिर बड़ा या हो या छोटा कोई मेंटेनेंस नहीं हो पाता है।

लेट हुए तो भी मुश्किल

कंडक्टर अशोक कुमार बताते हैं बताते हैं कि एक डिपो से दूसरे डिपो गाड़ी ले जाने के बाद दोबारा वहां से चलने में थोड़ा वक्त लगता है। गाड़ी के आने, रुकने व चलने का समय फिक्स होता है। जिस वक्त गाड़ी डिपो में खड़ी होती है। सिर्फ वही वक्त होता है जब आराम करने का मौका मिलता है। अगर रास्ते में गाड़ी कहीं पर फंस जाए या किसी सिटी में जाम मिल जाए तो गाड़ी पहुंचने में देर हो जाती है। जिसका नतीजा ये होता है कि आराम करने का वो समय भी चला जाता है। क्योंकि रास्ते में लेट होने के समय को काउंट नहीं किया जाता है।

नशा जरुरत नहीं, मजबूरी है

कंडक्टर्स बताते हैं कि नींद के चलते ही ड्राइवर व कंडक्टर नशे के लती हो जाते हैं। जब ड्राइवर लगातार एक या दो रातों के जगे होते हैं और इसके बाद भी सफर करना पड़ता है तो ऐसे में नींद से बचने के लिए नशे का सहारा लेना पड़ता है। अगर रास्ते में भ् मिनट रुक कर भी चाय पीने लगें तो पैसेंजर्स शोर मचाने लगते हैं। ऐसी स्थिति में मसाला व सिगरेट लेकर चलते हैं। कई बार तो चरस आदि का नशा भी लोग करने लगते हैं। कई बार तो नींद आने पर दांतों से होंठ व जीभ काटनी पड़ती है, जिससे नींद न आए।

रेस्ट रूम के लिए कई बार शासन को लिखा जा चुका है, लेकिन अभी तक इस पर कोई काम नहीं हो सका है। अगर रेस्ट रूम बन जाता है तो ड्राइवर्स और कंडक्टर्स को काफी आराम मिलेगा।

- अशोक कुमार, आरएम

वैसे तो ख्00 किलोमीटर तक सफर करने का प्रावधान है, लेकिन जो रूट मुझे मिला हुआ है वो डेली भ्00 किलोमीटर तक ले जाता है।

- ओमकार, ड्राइवर्स

ड्राइवर्स को थकान क्यों नहीं होगी। हर ड्राइवर ओवर काम कर रहा है। आराम करने तक का वक्त नहीं है। सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं।

- संजय कुमार, ड्राइवर्स

कई किलोमीटर चलने के बाद भी आराम की कोई व्यवस्था नहीं है। बस की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी हमारे ऊपर ही है। अगर कोई नुकसान हो जाए तो हमारी जेब से जाता है।

- मनवीर, ड्राइवर्स

दिन रात गाड़ी चलाकर तो सेहत और नींद पर असर पड़ता ही है। इस बात की कोई अधिकारी परवाह नहीं करता है। ऊपर से खतरा भी बढ़ता है।

- किशनपाल, ड्राइवर्स

नींद पूरी न होने के कारण डॉक्टर के पास भी जाना पड़ा। ड्राइविंग करते वक्त नींद न आए इसका भी इंतजाम रखना पड़ता है।

- श्याम, ड्राइवर्स

कई सौ किलोमीटर गाड़ी चलाना आसान नहीं होता है। मुश्किलें और बढ़ जाती है जब सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं दिया जाता है।

- इकबाल हुसैन जैदी, ड्राइवर्स

लगातार भ्00-म्00 किलोमीटर का सफर बिल्कुल भी आसान नहीं होता है। काफी बड़ा रिस्क भी होता है। अगर कोई नुकसान हो जाए तो हमारी जेबों में से जाता है।

- शिवपाल, कंडक्टर्स

नींद पूरी न होने से कई बार थकान काफी हो जाती है। जिससे ड्राइविंग काफी मुश्किल हो जाती है। नींद न आए काफी अलर्ट रहने की जरुरत होती है।

- रामकुमार शर्मा, ड्राइवर्स

किसी भी डिपो में चले जाओ कहीं भी रेस्ट रूम की व्यवस्था नहीं है। बसों के अंदर सो कर गुजारा करना पड़ता है।

- अशोक कुमार, कंडक्टर्स

रोजाना भ्00 किलोमीटर का सफर बहुत मुश्किल होता है। हर कोई अपनी कैपेसिटी से ज्यादा काम करने के बावजूद अधिकारियों की उपेक्षा झेल रहा है।

- राजेंद्र प्रसाद, कंडक्टर्स