दिल्ली असेबली इलेक्शन में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के शानदार परफार्मेंस के चलते मुंह के बल गिरी बीजेपी में अब हार के कारणों पर माथापच्ची के बीच एक दूसरे को कटघरे में खड़ा करने का सिलसिला चालू है. इन दिनों मेन टारगेट पार्टी की मुख्यामंत्री पद का चेहरा किरण बेदी बन गयी हैं. कई लोगों का मानना है कि किरण बेदी के आने से फायदे की जगह नुकसान हुआ. अब ऐसा कहने वाले लोगों में बीजेपी की बेस ऑग्रेनाइजेशन राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ भी शामिल हो गयी है.

अपने अखबार पांचजन्य के लेटेस्ट इश्यू में आरएसएस ने बीजेपी की हार के कारणों का एनेलेसिस किया है. संघ ने किरण के सीएम कैंडिडेट बनाए जाने को बीजेपी की बड़ी भूल माना है, उसने पार्टी वर्कस को इग्नोएर किए जाने को भी पार्टी की हार की एक बड़ी वजह माना है. अपने न्यूज पेपर में "आकांक्षाओं की उड़ान" टाइटल से कवर स्टोरी में संघ ने बीजेपी से सवाल  किया है क्या वे जानते हैं कि पार्टी क्यों हारी और क्या बेदी को सीएम कैंडिडेट बनाना सही था? पेपर का कहना है कि अगर हर्षवर्द्धन या दिल्ली बीजेपी के दूसरे लीडर्स के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया होता तो रिजल्ट डिफरेंट होता.

इस आर्टिकल में सवाल उठाए गए हैं कि क्या बीजेपी नरेंद्र मोदी सरकार की अचीवमेंटस को जनता तक पहुंचाने में नाकाम रही, क्या पार्टी पूरी तरह मोदी लहर पर ही डिपेंड थी? उन्होंने पूछा है कि बीजेपी पार्टी में यूनिटी, प्लानिंग और वर्कस को इंर्पोटेंस ना देने के कारण तो नहीं हारी है. अपने आर्टिकल के एंड में पाचजन्य ने रूलिंग पार्टी को एडवाइज भी दे डाली है और कहा कि बीजेपी लीडर्स को इस बात का जवाब खोजना होगा कि उनके पास संघ की आइडियालॉजी और पार्टी वर्कस के अलावा कोई और एसेट हैं भी या नहीं, और अगर नहीं हैं तो इन्हें नजरअंदाज काने से उन्हें  बचना चाहिए.  

 

मैं चुनावी परीक्षा में फेल हो गई : किरण बेदी

इससे पहले दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की करारी हार पर किरण बेदी ने पहली बार यह स्वीकार किया है कि राजनीति की परीक्षा में वह असफल रही हैं. हालाकि उन्होंने यह दावा भी किया कि चुनाव जीतने के लिए उन्होंने जमकर मेहनत की. किरण ने अपने ब्लॉग पर लिखा है कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि मैं असफल रही हूं और मैं इसकी पूरी जिम्मेदारी भी लेती हूं. उन्होंने यह इशारा भी किया है कि चुनाव जीतने के लिए उन्हें जितना वक्त चाहिए था वह नहीं मिला और शायद यही वजह रही कि अपनी पूरी ऊर्जा और अनुभव का इस्तेमाल करने के बावजदू सफलता नहीं मिली. बेदी के मुताबिक, वह इस अपराध बोध के साथ नहीं मरना चाहती थीं कि सिवाय टिप्पणियां करने के मैंने खुद कभी चुनावी मैदान में किस्मत नहीं आजमाई.

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