हर कोई पिंड छुड़ा रहा

ऑडिट रिपोर्ट में लेखा विभाग द्वारा आपत्ति जताने के प्रकरण में यूनिवर्सिटी का हर आला अधिकारी अपना पिंड छुड़ाने में जुट गया है। वीसी प्रो। मुशाहिद हुसैन से जब इस संबंध में उनसे इंफॉर्मेशन जानी तो उन्होंने इसे वित्त का प्रकरण बता कर फाइनेंस ऑफिसर से बात करने को कहा। फाइनेंस ऑफिसर एसपी श्रीवास्तव ने यह कहकर टाल दिया कि यह तो रुटीन प्रोसेस है, इसमें कुछ भी नया नहीं। इसके रूल्स एंड रेगुलेशंस की डिटेल रजिस्ट्रार को प्रशासन को देनी है। वहीं रजिस्ट्रार केएन पांडेय इसकी जवाबदेही के लिए अधिकारी को निर्देश देने की बात कह रहे हैं। उन्होंने बताया कि जो भी लीगल मैटर्स हैं उनका जवाब असिस्टेंट रजिस्ट्रार वीके मौर्या तैयार करेंगे। बाकी जितने भी प्रशासनिक मामले हैं उनका जवाब डिप्टी रजिस्ट्रार महेश कुमार तैयार करेंगे।

नहीं ली थी परमीशन

यूनिवर्सिटी के आला अधिकारी इस प्रकरण पर चुप्पी साधे हुए हैं। लेकिन इशारों-इशारों में गड़बड़ी की बात भी मान रहे हैं। इस पूरे प्रकरण पर रजिस्ट्रार केएन पांडेय ने साफ कहा कि  जिन भी मदों में पेमेंट किया गया है वे यूनिवर्सिटी की फाइनेंस कमेटी में अप्रूव कराने के बाद ही किया गया। लेकिन उन्होंने इस बात से भी इंकार नहीं किया कि इन सभी पेमेंट के लिए शासन से कोई अनुमति नहीं मिली है। वहीं लेखा विभाग ने भी इसी बात पर आपत्ति जताते हुए यूनिवर्सिटी से पूछा कि शासन के किस नियम व जीओ के तहत इनका पेमेंट किया गया।

बिजली का भुगतान भी गलत

बातों-बातों में यूनिवर्सिटी अधिकारी ने यह स्वीकार किया कि कर्मचारियों, शिक्षकों व अधिकारियों के आवासों के बिजली बिल का भुगतान यूनिवर्सिटी खाते से करना गलत था। इंडायरेक्टली इसे स्वीकार करते हुए यूनिवर्सिटी अब इसकी भरपाई में लग गई है। यूनिवर्सिटी ने इस मद में 44,85,194 रुपए का बिजली बिल का भुगतान किया था। नियमानुसार बिल आवास में रहने वालों को ही पे करना

होता है।

डाटा इंट्री का मानदेय भी गलत

यूनिवर्सिटी के आला अधिकारियों ने डाटा इंट्री के लिए कर्मचारियों को किए गए पेमेंट को दबी जुबान में गलत ठहराया है। रजिस्ट्रार केएन पांडेय ने खुद ही कहा कि इस तरह के काम के लिए शासन की तरफ से किसी भी प्रकार का मानदेय देने का प्रावधान नहीं है। डाटा इंट्री के लिए 13 लोगों की नियुक्ति कर लाखों का भुगतान किया गया। वहीं कर्मचारियों को उनका ही काम करने के लिए पेमेंट की गई। मार्कशीट पर सिग्नेचर करने के लिए भी मानदेय भुगतना किया गया। जबकि यह उनकी ड्यूटी का हिस्सा है।

होगा टैरिफ लागू

ऑडिट रिपोर्ट पर उंगली उठने के बाद यूनिवर्सिटी अब अपनी गलती सुधारने में भी जुट गया है। खासकर बिजली बिल के भुगतान के मामले में तो नए सिरे से समीक्षा करने में जुट गया है। रजिस्ट्रार केएन पांडेय ने बताया कि किसी भी आवास में बिजली के मीटर नहीं है। पहले मीटर लगाए जाने की कवायद की जाएगी। इसके बाद बिजली के बिल की वसूली के लिए टैरिफ भी लागू किया जाएगा। वहीं जो भुगतान हो चुका है उसकी रिकवरी करने के बारे में भी यूनिवर्सिटी सोच रही है।