पटना में जीना 'हेडेक' बन गया

हजारों ऐसे लोग हैं, जिन्हें अच्छे से रहने के लिए घर तक नहीं मिलता है। यहां किराए के घर की किल्लत हो गई है। रेंट पर रहने वालों के लिए पटना में जीना 'हेडेक' बन गया है। कोई ढंग का रूम नहीं मिलता और अगर मिल भी गया, तो रेंट इतना महंगा कि उतने में महीने की आधी सैलरी ही चली जाए। रूम भी ऐसे नहीं मिलता। इसके लिए आपको ब्रोकर की जी-हुजूरी करनी पड़ती है। पहले उसकी 'दुकान' में आपको रजिस्ट्रेशन करवाना होगा, फिर वह रूम दिखाएगा। अगर पसंद आया, तो रेंट का आधा पैसा, उसकी झोली में। यही है पटना में रेंट गाथा, जिससे हर कोई परेशान है।

हर छह महीने में बढ़ रहा रेंट

यहां किराए के घर की कमी है। पूरे स्टेट सहित कैपिटल में चल रहे रेपिड डेवलपमेंट के साइड इफेक्ट के तौर पर उभर कर आ रहा है। स्टेट में विभिन्न सेक्टर में डेवलपमेंट के कारण जॉब ऑपरच्यूनिटी भी बढ़ी है, जिस कारण स्टेट भर से स्टूडेंट्स पटना आने लगे हैं। हालांकि उन्हें रहने के लिए एक अदद घर की तलाश में पसीने छूट रहे हैं। लोगों का मानना है कि पटना में घर की अपेक्षा जॉब की तलाश आसान है। भगवान की कृपा से घर मिल भी जाए, तो लैंड ओनर्स के मनमाने रवैये और रूल्स-रेगुलेशन्स को ठेंगा दिखाते हुए हर छ: महीने में किराए में वृद्धि से लोग परेशान हैं।

मेट्रो सिटी के समान है रेंट

औरंगाबाद से पटना आए रितेश झा का कहना है कि यहां अगर घर मिल भी जाए, तो किराए मेट्रो सिटी की तर्ज पर है, जिसे अफोर्ड करने में मिडिल क्लास के लोगों को दिन में तारे नजर आने लगते हैं।

दूसरे डेवलपिंग स्टेट्स की अपेक्षा ज्यादा किराया

छतीसगढ़ से जॉब के सिलसिले में पटना आईं नीता गुप्ता ने हैरानी जताते हुए कहा कि यहां पहले तो अच्छा-खासा घर ढंूढऩे में ही जद्दोजहद करनी पड़ती है। ठीक-ठाक घर मिल भी जाता है, तो उसका किराया सुनकर होश उड़ जाता है। वहीं, मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ जैसे डेवलप होते स्टेट्स में अपेक्षाकृत कम किराया है।

किराए के घर में रहना स्ट्रेसफुल

एक टेलीकॉम कम्पनी में कार्यरत आभा पांडे ने बताया कि यहां लैंड ओनर्स ज्यादा किराए के लालच में कभी भी घर खाली करने का फरमान जारी कर देते हैं। किराए के घर में रहना काफी स्ट्रेसफुल होता है, यह भी तब जब हम अपनी सैलरी का 30-40 प्रतिशत किराए में खर्च करते हैं।  

मनमाना बिजली बिल

विशाल पांडे का कहना है कि कुछ घरों में मकान मालिक सबमीटर लगाकर 5-7 रुपए प्रति यूनिट तक बिजली बिल वसूलते हैं। हमारी मजबूरी है कि हमें चुपचाप उनकी सारी बात माननी पड़ती है।