लोग सोचते हैं कि कुछ करने के लिए उन्हें आत्मविश्वास की जरूरत होती है, लेकिन आत्मविश्वास से भरे हुए आप बेवकूफी भरी चीजें भी कर

सकते हैं। कुछ करने के लिए आपको आत्मविश्वास की जरूरत नहीं है, आपको बस जरूरत है, समझदारी की। उचित तो यह होगा कि आप पहले उस काम को तौलें। अगर आप कर सकते हैं, तो आप उसे करेंगे, अगर नहीं कर सकते, तो नहीं करेंगे। तो आपको बस अपनी काबिलियत के मुताबिक काम करना चाहिए, न कि आत्मविश्वास की वजह से या उसकी कमी की वजह से।

सिर्फ एक अहं को ही आत्मविश्वास या उसकी कमी महसूस होती है। सबसे पहले गौर करें कि आखिर यह अहं है क्या? आपमे अहं इसलिए नहीं आया, क्योंकि आपने कोई काम बहुत शानदार तरीके से किया या आप अमीर बन गए या आप खूबसूरत हो गए या आपने अपने शरीर को बहुत ताकतवर बना लिया। जब आप पहली बार अपनी मां के पेट में लात चलाने लगे थे, तभी अहं का जन्म हो गया था। अपने स्थूल शरीर से खुद की पहचान बनाने की सबसे पहली गलती का मतलब है-अहं का जन्म।

अहं एक रक्षात्मक प्रतिक्रिया है। इस नन्हे से शरीर से आपकी पहचान बना दी गई। इस छोटे से प्राणी को अपना वजूद बनाए रखना है, इस विशाल जगत में, जिसकी आपको इतनी भी समझ नहीं है कि यह कहां शुरू होता है और कहां खत्म? खुद को बस सुरक्षित बनाए रखने के लिए आपको खुद को एक बड़े इंसान की तरह दिखाना पड़ता है। इसलिए अहं पैदा हुआ है। यह एक झूठी हकीकत है। आप जिसे आत्मविश्वास कहते हैं, वह बस एक झूठी पहचान है, जो आपने बनाई है, अपने वजूद को कायम रखने के लिए। अहं आपकी परछाई की तरह है। जैसे ही आपके पास स्थूल शरीर होता है, आपके पास परछाई भी होती है। परछाई खुद में न अच्छी है और न बुरी। अगर सूरज ऊपर आसमान में है, तो आपकी परछाई छोटी है। अगर सूरज नीचे आ गया है, तो आपकी मील भर लंबी परछाई होगी। तो बाहरी हालातों के जैसे भी तकाजे हों, आपकी परछाई भी उसी तरह की हो जाती है। आपका अहं भी उसी तरह का होना चाहिए।

अपने जीवन में तरह-तरह के हालातों से निपटने के लिए हमें विभिन्न तरह की पहचान की जरूरत होती है। अगर आप इस मामले में लचीले हैं, तो आप एक पहचान को सुंदरता से दूसरे में बदल सकते हैं। तब आप अपना किरदार भरपूर निभा सकते हैं और आपको कोई दिक्कत नहीं होगी, लेकिन अभी समस्या यह है कि आपने इससे इतनी गहरी पहचान बना ली है कि आप विश्वास करने लगे हैं कि आप बस वह पहचान ही हैं। एक बार जब आप विश्वास करने लगते हैं कि ,मैं परछाई हूं, तो आप क्या करेंगे? तब आप धरती पर बस रेंगेंगे। तब आपकी जिंदगी कैसी होगी? अगर फर्श पर कालीन बिछा हो, यानी बाहरी हालात मुलायम घास जैसे हों, तो आप आराम से रेंगेंगे, लेकिन आनंद में नहीं। मान लीजिए कि राह में कंकड़-पत्थर और कांटे आ जाएं, तो आप रोने लगेंगे। अभी आपके जीवन का सारा-का-सारा अनुभव बस भौतिक तक ही सीमित है।

वह सब कुछ, जो आप अपनी पांच इंद्रियों के जरिए से जानते हैं, सिर्फ भौतिक है। और भौतिक का खुद का कोई उद्देश्य नहीं होता, क्योंकि यह बस फल के छिलके की तरह है। फल के सिर्फ एक सुरक्षा-खोल की तरह इसका थोड़ा सा मतलब है। यह शरीर इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके भीतर कुछ और भी है। आपने उस ,कुछ और, को कभी अनुभव नहीं किया। अगर वह ,कुछ और, कल सुबह शरीर से निकल जाए, तो इस शरीर को कोई छूना भी नहीं चाहेगा, जो एक लाश बन गया होगा, तो आज जब वह शरीर में है, हमें उसका ध्यान र१ना होता है। वही सब कुछ है। अगर हम भौतिक की सीमाओं के परे नहीं जाते, अगर हम भौतिक के सीमित वजूद के परे नहीं जाते, तो हम बस एक संघर्ष बनकर रह जाते हैं, कभी आत्मविश्वास और कभी संकोच।

भविष्य की योजनाओं से पहले वर्तमान को जीना सीखें : सद्गुरु जग्गी वासुदेव

किसी भी क्षण बदल सकता है जीवन

आप हमेशा से जानते ही हैं, जो भी हालात ठीक चल रहे हों, किसी भी पल, वे बिगड ̧ सकते हैं। यह सिर्फ हालात बिगड ̧ने की बात नहीं, जीवन किसी भी क्षण कैसा ही मोड़ ले सकता है। किसी भी क्षण चीजें वैसी हो सकती हैं, जो आपको नापसंद हैं। अगर दुनिया में सब कुछ आपके १िलाफ चल रहा है और आप अपने भीतर शांति, उल्लास से अछूते, बिना प्रभावित हुए जीवन चला पाते हैं, तभी आप जीवन को जान पाते हैं कि वह कैसा है। वरना तो आप भौतिक के बस एक गुलाम होते हैं।

-सद्गुरू जग्गी वासुदेव

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