कर्म और धर्म में क्या अंतर है?

दोनों कॉन्सेप्ट एक-दूसरे से बड़ी गहराई के साथ जुड़े हुए हैं। ये सवाल बिल्कुल वैसा ही है, जैसे जीवन के लिए श्वांस और खून में क्या अंतर है? हम यहां ये कह सकते हैं कि श्वांस किसके लिए काम करती है और खून किसके लिए काम करता है? फिलहाल सच्चाई ये है कि दोनों का काम एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। दोनों साथ में मिलकर काम करते हैं और साथ में काम करके हमको जीवित रखते हैं।

अलग-अलग कर्म से पूरे होते हैं संयुक्त कार्य

आप खून से सांस नहीं खींच सकते और न ही सांस लेकर खून बना सकते हैं। दोनों के अपने अलग-अलग काम हैं, लेकिन जब दोनों मिलकर काम करते हैं, तभी हम जीवित रहते हैं। दोनों आपस में बेहद गंभीरता से जुड़े हैं। कर्म एक क्रिया है, उदाहरण के तौर पर योग करना। यह क्रिया के माध्यम से उस दिव्य मिलन को प्राप्त करने का मार्ग है, जिसकी आशा हर कोई करता है। हमें ये सोचना चाहिए कि मैं कर्म करने में व्यस्त हूं और मुझे कर्म से ही कर्म मिला है, जिसने मुझे व्यस्त किया है। ये जो कुछ मैं कर रहा हूं, वह सब कर्म है, लेकिन धर्म का कॉन्सेप्ट थोड़ा जटिल है।

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कर्म और धर्म के बीच रखें इस बात का ध्यान

इसको सिर्फ सही राह पर चलने से समझा जा सकता है, लेकिन इसका महत्व उससे भी कहीं ज्यादा गहरा है। हमें इस कर्म और धर्म के बीच सिर्फ इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हमारे कर्म ऐसे हों, जो हमारे धर्म को सही राह दिखा सकें। पूज्य स्वामी जी ने मुझे बहुत अच्छी सीख दी थी, जब मैं आश्रम में रहने के लिए आई थी। उन्होंने कहा था कि ब्रह्म की जागरूकता के साथ, धर्म की छाया के अंतर्गत खुद के कर्म में संलग्न हो। अब मैं धर्म के इस संरक्षण में और ब्रह्म की जागरूकता संग ही कर्म कर रही हूं। ऐसा करके मुझे लगता है कि मेरा हर कर्म ईश्वर द्वारा ही कराया जा रहा है।

- साध्वी भगवती सरस्वती

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