आक्रामकता और आतंकवाद को लेकर ईश्वर हमसे कैसे बर्ताव की अपेक्षा करते हैं।

ईश्वर ने हमें बनाया और उसके बाद हमें दया जैसी भावना दी, जिसके माध्यम से हम दूसरों के दर्द को कुछ ऐसे महसूस करते हैं जैसे कि वो अपना ही हो। इसके अलावा ईश्वर ने हमें रचनात्मकता, पहल करने की क्षमता और बुद्धिमत्ता जैसे गुणों से भी नवाजा है। इन सभीगुणों को ध्यान में रखते हुए एक बात तो साफ हो जाती है कि वही ईश्वर हमसे ये भी चाहता है कि हम सब उसके द्वारा दिए गए इन सभी उपहारों का सही और उचित इस्तेमाल भी करें। जब भी हम कभी अपने खुद के कौशल और दुनिया में प्राप्त शिक्षा को ईश्वर की दी हुई रचनात्मकता, पहल और बुद्धिमत्ता के साथ मिलाकर इस्तेमाल करते हैं तो हम बेशक आतंक के खिलाफ कुछ सकारात्मक तौर पर कर पाने में सक्षम हो पाते हैं।

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इसके इतर इस बात को भी हमें बहुत अच्छे से जानना होगा कि दूसरों को बांटने और हिंसा का हल सिर्फ एकता और शांति ही है। हम में से हर किसी के पास अलग-अलग तरह के अवसर, स्रोत और क्षमताएं होती हैं। इनका इस्तेमाल कर हम लोगों को एकता और शांति के असल मायने समझा सकते हैं। लेकिन आतंक के नाम पर हो रही हिंसा का हल सिर्फ इतने से ही नहीं निकलेगा, बल्कि इसको रोकने के लिए हमें ईश्वर प्रदत्त गुणों के साथ अपनी प्रतिभा, दुनिया से मिले तकनीकी ज्ञान और तप तीनों का उचित इस्तेमाल करके हर वो संभव प्रयास करने होंगे जो हम कर सकें।

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