गोरखपुर (सैयद सायम रऊफ): साक्षी ने बताया, कॅरियर की शुरुआत में उन्हें हर पहलू पर स्ट्रगल करना पड़ा. स्कूल तो थे ही, साथ ही ट्यूशंस थे इसके अलावा दो वक्त ट्रेनिंग. सुबह 4 बजे से ही रूटीन शुरू हो जाता. 7 किमी साइकिल चलाकर स्कूल जाती थी. शाम को फिर 3 घंटे की ट्रेनिंग. यह मेहनत तो थी ही. वहीं, एक स्ट्रगल समाज के साथ करना पड़ा. आसपास के लोगों ने सपोर्ट नहीं किया. पेरेंट्स को बातें सुनाईं. कहा कि लड़के जैसी हो जाएगी. इसकी बॉडी खराब हो जाएगी, यह कौन से गेम में डाल दिया है. इसका तो फेस बदल जाएगा, कौन इससे शादी करेगा. उस दौरान मेरे पेरेंट्स ने यह बातें अपने तक रखीं. मैं डिमोरलाइज न हो जाऊं, इसलिए मुझे हमेशा सपोर्ट करते रहे. मोटीवेटेड रखा. जब मैंने मेडल लाने शुरू किए तो सबके मुंह बंद हो गए.

फर्क करना छोड़ दें पेरेंट्स

साक्षी ने कहा, पेरेंट्स को चाहिए कि वह बेटा-बेटी में फर्क करना छोड़ दें, जैसा मेरे माता-पिता ने मेरे और मेरे भाई में फर्क नहीं किया और रिजल्ट आप देख ही रहे हो. पेरेंट्स को सजेशन देते हुए उन्होंने कहा कि बेटी का सपोर्ट करो, वह चाहे जिस भी फील्ड में जाना चाहे, उसे भेज दो. उसे सपोर्ट मिलेगा, तो वह मेहनत, लगन और ईमानदारी से करेगी और इसका रिजल्ट भी जरूर मिलेगा.

हवाई जहाज में बैठने का देखा था सपना

बचपन में शुरू से ही खेल में इंटरेस्ट था. जो भी एक्टिविटी होती थी, उसमें हिस्सा लेती थी. बस मुझे यह था कि मुझे वह गेम चुनना है कि जिसमें मैं अपना नाम रोशन कर सकूं. वहां मुझे पता चला कि अगर मैं जीत जाउंगी, फस्र्ट आउंगी तो हवाई जहाज में बैठूंगी. बस मैंने तय कर लिया कि हवाई जहाज में बैठना है. उसी के हिसाब से मैंने मेहनत शुरू कर दी. वहां पता चला कि ओलंपिक देश के हर एथलीट्स का सपना होता है. वह वहां जाए और देश के लिए ओलंपिक मेडल जीते, बस मैंने वहीं से वह सपना देखना शुरू कर दिया और वह मैंने साकार भी करके दिखाया. रेसलिंग चुनने की वजह बताते हुए साक्षी ने बताया कि पापा से सुना था दादा ने पहलवानी की है. इसलिए मैंने भी सोचा कि मैं भी कुश्ती में ही अपना कॅरियर बनाउंगी. उसके बाद उसी दिशा में मेहनत शुरू कर दी.

चेंज होती रहती है वेट कैटेगरी

साक्षी ने बताया कि हर चार से पांच साल में वेट कैटेगरी में बदलाव किया जाता है. पहले दो-दो मिनट के तीन राउंड होते थे, अब तीन-तीन मिनट के दो राउंड हो रहे हैं. वेट कैटेगरी भी लगातार चेंज होती रही है. इस वक्त मैं 62 किलो में लड़ रही हूं. जबकि ओलंपिक मेडल मैंने 58 किग्रा वेट कैटेगरी में जीता था. आमतौर पर रेसलर्स का वजन वेट कैटेगरी से चार-पांच किलो ज्यादा रहता है. जिस वेट कैटेगरी में पार्टिसिपेट करना है, इवेंट से पहले उस पर मेहनत होती है. उसी के अकॉर्डिंग डाइट चार्ट बनता है. बॉडी उसी के हिसाब से ढल जाती है.

मोटीवेट करता है रेलवे

रेलवे में फैसिलिटी काफी अच्छी है. उसमें खिलाडिय़ों को लगातार मोटिवेट किया जाता है. कॉमन वेल्थ गेम्स में मेडल जीतने पर 2014 में मुझे जॉब मिली थी. इसके बाद ओलंपिक मेडल जीतने पर मुझे ओएसडी बना दिया गया. ऐसे ही रेलवे लगातार खिलाडिय़ों को मोटीवेट करता रहता है.

गांव में देनी होगी फैसिलिटी

साक्षी ने कहा, मेरे घर के पास स्टेडियम है, मुझे तो दिक्कत नहीं हुई, लेकिन अगर ग्रास रूट पर काम किया जाए, गांव-गांव में कुछ दूरी पर स्टेडियम बना दिया जाए, वहां कुछ गेम्स निर्धारित कर दिए जाएं और उसके कोच तैनात कर दिए जाएं, तो बच्चे निकलने शुरू हो जाएंगे. मेडल आने लगेंगे. इनकी संख्या बढ़ जाएगी. अभी खिलाडिय़ों को गांव से शहर आने में प्रॉब्लम होती है. बेटी को प्रॉब्लम ज्यादा है. इसलिए वह शहरों का रुख नहीं करतीं और टैलेंट होने के बाद भी वह आगे नहीं बढ़ पाती हैं. उन्होंने बताया कि खेलो इंडिया का काफी फर्क पड़ रहा है. हमारे समय में फैसिलिटी नहीं थी. इंटरनेशनल लेवल पर जाकर फैसलिटीज मिल पाती थीं. मगर अब खेल में काफी बदलाव आया है. यूथ और नए बच्चों को फैसिलिटीज मिल रही है.

किसी को न हो कमी

भगवान का शुक्र अदा करती हूं कि उन्होंने ओलंपिक मेडल से सम्मानित किया. मैं चाह कर भी खेल और कुश्ती को नहीं छोड़ सकती. खेल से जुड़े रहना चाहती हूं. फादर इन लॉ का अखाड़ा है. जो कमी मुझे हुई है, वह आने वाले बच्चों को न हो, इसके लिए वहां को सभी सुविधाओं से लैस करूंगी. बच्चों को सारी सुविधाएं मिले. मुझे नॉलेज हो गई है कि कैसे इक्विपमेंट चाहिए और कैसे ट्रेनिंग करें. इसे मैं अपने अखाड़े में जरूर आजमाऊंगी.

प्रो रेसलिंग लीग काफी फायदेमंद

प्रो-रेसलिंग को फायदेमंद बताते हुए साक्षी मलिक ने बताया कि इसने कॉन्फिडेंस बहुत बढ़ाया है. 2015 के एंड में लीग शुरू हुए. विदेशों से रेसलर आए और हमने उनके साथ ट्रेनिंग की. हमने उनके साथ कुश्तियां खेलीं, उनसे हमारा कॉन्फिडेंस और बढ़ा. हमारा होम ग्राउंड, हमारा ऑडियंस तो हमें दबाव बनाने में भी मौका मिला. लीग में हमने मेडलिस्ट लड़के-लड़कियों को हराया. लीग से फायदा मिला है और साथ ही एक्सपीरियंस भी मिला है. जिसका मुझे ओलंपिक में भी फायदा मिला. उन्होंने पहली बार गोरखपुर आई हूं यहां आकर अच्छा लगा. सभी का धन्यवाद करना चाहूंगी कि यहां आकर बहुत ही प्यार और सम्मान मिला. इसके लिए सभी की आभारी हूं.

National News inextlive from India News Desk