-पॉल्यूशन व मौसम में बढ़ी नमी से अस्थमा के मरीजों की फूलने लगी सांस

-सामान्य लोगों में भी बढ़ी सांस संबंधी समस्याएं, अस्पतालों में जांच के लिए पहुंचने लगे मरीज

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सिटी में सड़कों पर उड़ रही धूल से पॉल्यूशन का लेवल उफान पर तो है ही, अब सर्दी के दस्तक ने भी अस्थमा के मरीजों की बेचैनी बढ़ा दी है। सुबह-रात सर्दी जैसा मौसम और दिन भर उड़ रही धूल के कणों से ऐसे मरीजों की सांसें फूलने लगी हैं। मंडलीय व जिला अस्पताल में रोजाना सैकड़ों मरीज सांस की शिकायत लेकर इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। डॉक्टर्स की मानें तो अब सिर्फ दमा के मरीजों में ही नहीं, सामान्य लोगों में भी सांस संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं। इसमें बच्चे भी शामिल हैं। मंडलीय अस्पताल में इधर दो दिन में करीब 100 मरीज इलाज के लिए पहुंचे हैं। सेम हाल प्राइवेट अस्पतालों में भी है। अलग-अलग अस्पतालों में हर रोज ऐसे 15 से 20 मरीज इलाज के लिए पहुंच रहे हैं।

ठीक नहीं लापरवाही

डॉक्टर्स की मानें तो सर्दी की सुगबुगाहट से सांस के मरीजों में अस्थमा के शुरुआती लक्षण पाए जा रहे हैं, इन्हें समय रहते ठीक किया जा सकता है। जरा भी लापरवाही की गई तो यह पूरी तरह अस्थमा में बदल जाएगा, जिससे मरीज को उम्र भर मेडिसिन पर ही निर्भर रहना पड़ सकता है। अगर इसी तरह मौसम में नमी होती गयी तो दमा के मरीजों में यह समस्या बढ़ सकती है।

क्या होती है दिक्कत?

अस्थमा के मरीजों को धूल, धुआं से और सर्दी में सबसे अधिक परेशानी होती है। ऐसे में शहर की जहरीली हवा अस्थमा के मरीजों की संख्या बढ़ा रही है। अलसुबह और रात में नमी रहने के समय ऐसे मरीजों को सांस लेने में परेशानी हो रही है। जिला अस्पताल के मेडिसिन ओपीडी में डेली सांस की समस्या के 35 से 40 मरीज पहुंच रहे हैं।

टीन एज में भी समस्या

नम और जहरीली हवाओं का असर सिर्फ ओल्ड एज में ही नहीं, टीन एज यानी बच्चों पर भी पड़ रहा है। चाइल्ड ओपीडी में डेली पहुंच रहे 20 से 25 बच्चों में अस्थमा के शुरुआती लक्षण और सांस की समस्या देखी जा रही है। चिकित्सकों का कहना है कि समय रहते पॉल्यूशन पर कंट्रोल नहीं पाया गया तो आने वाले दिनों में बच्चों में अस्थमा का अटैक बढ़ सकता है।

क्या है अस्थमा?

अस्थमा एक गंभीर बीमारी है, जो सांस की नलियों को प्रभावित करती है। ये नलियां फेफड़े से हवा को अंदर-बाहर करती हैं। अस्थमा होने पर इन नलियों की भीतरी दीवार पर सूजन आ जाती है। जो नलियों को बेहद संवेदनशील बना देती है। जब नलियां प्रतिक्रिया करती हैं, तो यह सिकुड़ने लगती हैं। ऐसी स्थिति में फेफड़े में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है, जिससे पीडि़तों में लगातार खांसी, सांस लेने में तकलीफ, नाक बजना, चेस्ट का कड़ा होना आदि लक्षण विकसित होने लगते हैं।

अस्थमा के कारण

-प्रदूषित हवा

-ठंड और स्मॉग

-सुगंधित सौंदर्य प्रसाधन

-सर्दी, फ्लू, ब्रोंकाइटिस और साइनसाइटिस का संक्रमण।

-स्मोकिंग

-महिलाओं में हार्मोनल चेंजेज

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अस्थमा के लक्षण

-सांस लेने में दिक्कत

-खांसी, छींक

-सीने में जकड़न जैसा महसूस होना

- बेचैनी महसूस होना

अस्थमा से बचने के उपाय

-अर्ली मॉर्निग वॉक करने से परहेज

-मुंह पर कपड़ा या मास्क होना -स्मोकिंग से दूरी बनाएं

-ठंड में शरीर को पूरी तरह से ढक कर रखें, खासकर बच्चों को

-ऐसे मरीज इनहेलर अपने पास रखें।

वर्जन--

मौसम में बदलाव से जहां लोग फीवर की समस्या से परेशान हैं, वहीं अब सर्दी की आहट से दमा पेशेंट में सांस की समस्या बढ़ रही है। आने वाले दिनों में ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ सकती है।

डॉ। एके सिंह, फिजिशियन, मंडलीय हॉस्पिटल