RANCHI:15 फरवरी को पलामू टाइगर रिजर्व क्षेत्र में एक बाघिन मृत पायी गयी थी। पलामू टाइगर रिजर्व के अधिकारियों का कहना था कि बाघिन की मौत भैंसों के झुंड के हमले की वजह से हुई है। मामले को लेकर पूर्व मंत्री सह विधायक सरयू राय अपने जाने-माने अंदाज में सवाल उठा रहे हैं। उन्होंने 12 ऐसे सवाल उठाये हैं, जिससे सारा मामला अब संदिग्ध लग रहा है। विधायक सरयू राय का कहना है कि पलामू टाइगर रिजर्व में बाघिन की मौत की उच्चस्तरीय जांच मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन करायें। साथ ही मौत को गौर नामक जानवर के झुंड का हमला बताकर मामले को रफादफा करने की कोशिश करने वाले वन विभाग के अधिकारियों पर कानूनी कार्रवाई की जाए। सरयू राय का कहना है कि इस मामले में वन विभाग के अधिकारियों ने अक्षम्य लापरवाही बरती है। नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी के प्रावधानों के अनुरूप काम नहीं किया गया है।

सरयू राय के सवाल

-विभाग के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन ने आज तक घटनास्थल का दौरा कर मामले का खुद पर्यवेक्षण क्यों नहीं किया।

-वन विभाग के अधिकारी मौत का कारण गौर का हमला बता रहे हैं। क्या वे बतायेंगे कि वन्यजीव इतिहास में कोई दूसरा उदाहरण है जिसमें गौर ने हमला कर बाघ या बाघिन को मार डाला हो।

-जहां पर बाघिन मरी है वहां खून का एक कतरा भी नहीं है। गौर के हमले में ऐसा संभव नहीं।

-वे बता रहे हैं कि बाघिन बूढ़ी हो गयी थी। उसके नाखून झड़ गये थे। मृत बाघिन का फोटो देखने से स्पष्ट है कि उसके सभी पैरों के नाखून यथावत हैं, वे झड़े नहीं हैं।

-फोटो में बाघिन की नाक का रंग गुलाबी दिख रहा है। यह उसके जवान होने का लक्षण है। कारण कि बूढ़ी बाघिन के नाक का रंग काला हो जाता है।

-वन विभाग कह रहा है कि घाव पेट में लगा है जबकि फोटो में वह पीठ के भाग में लगा दिख रहा है, जो कि गौर के हमले में संभव नहीं है।

-एनटीसीए के प्रावधान के मुताबिक, बाघ या बाघिन की ऐसी मौत की जांच यह मान कर शुरू की जाती है कि यह मौत शिकारी की गोली से हुई है। जब यह सिद्ध हो जाये कि मौत शिकारी की गोली से नहीं हुई है तब मौत के अन्य कारणों की जांच होती है, पर इस मामले में ऐसा नहीं हुआ।

-एनटीसीए का एक प्रावधान यह भी है कि शिड्यूलस के वन्यजीवों के मामले में मौत के बाद पोस्टमार्टम के समय एनटीसीए का एक प्रतिनिधि मौजूद रहे। एनटीसीए के एक प्रतिनिधि डॉ डीएस श्रीवास्तव पलामू में रहते हैं, पर उन्हें बुलाया नहीं गया। उन्होंने बातचीत में मुझे बताया कि इस मामले में उन्हें नहीं बुलाया गया। सूचना मिलने पर वे गये तो देखा कि चिता जलाने का उपक्रम हो रहा है।

-बाघिन का शव जलाने की इतनी अफरातफरी वन विभाग को क्यों थी। शव को डीप फ्रीज में रखना चाहिए था ताकि एनटीसीए के अधिकारी आकर जांच करें।

यह एक सुनियोजित साजिश है

वन विभाग के अधिकारी बाघिन की मौत का सबूत मिटाने के दोषी हैं। ये एनटीसीए के प्रोटोकॉल की धच्जी उड़ाने के भी दोषी हैं। मुझे यह एक सुनियोजित साजि़श का हिस्सा लगता है। इसकी उच्चस्तरीय जांच जरूरी है। जांच की अवधि में दोषी अधिकारियों को इनके पदों से हटाना जरूरी है।

एनटीसीए के हाइजीन पर नहीं चल रहा पीटीआर

पूर्ववर्ती सरकार में मैं लातेहार जिला का प्रभारी मंत्री था जिसमें पीटीआर अवस्थित है। इस नाते मैंने यहां का कई बार दौरा किया। बेतला में चार उच्चस्तरीय बैठकें की, जिसमें वन सचिव भी शामिल हुए। पीटीआर एनटीसीए के हाइजीन पर नहीं चल रहा था। उसे विधिसम्मत रास्ते पर लाया। वहां पर इस तरह से नियमों की धच्जी वन विभाग के शीर्ष अधिकारी उड़ा रहे हैं, यह देख कर दुख हो रहा है। मुख्यमंत्री को इसका संज्ञान लेकर कठोर कार्रवाई करनी चाहिए।