ऐसी है जानकारी
गौरतलब है कि सऊदी अरब में इस साल के अंत में निकाय चुनाव होने हैं। ऐसे में अब महिलाएं यहां ना सिर्फ वोट दे सकेंगी, बल्कि चुनावों में हिस्सा भी ले सकेंगी। इन चुनावों को लेकर आज और 30 अगस्त को यहां कैंडिडेट्स रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। सरकारी अधिकारियों के मुताबिक यह सहभागितापूर्ण समाज बनाने की दिशा में एक अहम पहल है। इसके बावजूद अभी भी इस देश में यहां की महिलाओं को बिना किसी पुरुष अभिभावक के पासपोर्ट लेने या बैंक अकाउंट खुलवाने की इजाजत नहीं है।
ऐसा कहते हैं एडम कूगल
इसके बाद भी महिलाओं के हित में उठने वाला ये कदम भी काफी सराहनीय है। इसको लेकर लंबे समय से कई मानवाधिकार संगठन और अन्य देश महिलाओं के दमन को लेकर आवाज उठाते आ रहे हैं। मानवाधिकार से संबंधित एडम कूगल ने बताया कि देश में महिलाओं के हक में उठाया गया ये कदम सऊदी समाज के सभी क्षेत्रों में जरूरी संदेश का निर्वहन करता है। इसके अनुसार समाज में अब ये संदेश जाएगा कि पुरुषों की तरह महिलाओं को भी हक है देश की सेवा करने का। गौरतलब है कि यहां महिलाओं को पहली बार वोट का अधिकार मिला है। अब महिलाएं देश में होने वाले म्युनिसिपल इलेक्शन में वोट दे सकेंगी। मक्का की सफीनाज अबु अल शामत और मदीना की जमाल अल सादी वोट का अधिकार पाने वाली पहली महिलाएं बन गई हैं। फिलहाल देश में महिलाओं को मतदाता सूची में रजिस्टर्ड करने का काम चल रहा है।
2011 में दी थी मंजूरी
बता दें कि साल 2011 में किंग अब्दुल्ला ने महिलाओं के चुनाव में शामिल लेने को मंजूरी दी थी। अब्दुल्ला ने कहा था कि शरिया के तहत जो भी संभव है, वह महिलाओं को अधिकार देना चाहते हैं, लेकिन चार साल बाद महिलाओं को मतदान का अधिकार मिल रहा है। वहीं वोटर्स के रजिस्ट्रेशन का काम 21 दिनों तक चलेगा।
अभी भी नहीं है ये अधिकार
यहां की लोकल मीडिया की मानें तो करीब 70 महिलाओं ने बतौर कैंडीडेट खुद को रजिस्टर्ड करवाया है। वहीं 80 महिलाओं ने खुद को कैंपेन मैनेजर के तौर पर रजिस्टर्ड करवाया है। इसके बावजूद अभी भी कई ऐसी जरूरी चीजें हैं, जिनके लिए महिलाओं के पास कोई हक नहीं है। जैसे महिलाओं को किसी पुरुष अभिभावक की अनुमति के बिना पासपोर्ट प्राप्त करने, शादी करने, उच्च शिक्षा पाने या यात्रा करने का अधिकारी नहीं है। ये पुरुष अभिभावक उनके पति या कोई रिश्तेदार भी हो सकते हैं। इतना ही नहीं यहां की महिलाएं ऐसे कपड़े तक नहीं पहन सकतीं, जिससे चेहरे समेत उनके किसी भी अंग की खूबसूरती या मेकअप झलके। सऊदी अरब की ओर से उनकी महिला एथलीट्स को पहली बार 2012 में लंदन में होने वाले ओलंपिक ख्ोलों में भेजा गया था। यहां दुखद ये रहा कि हार्ड लाइन मौलवियों ने 'वेश्याओं' के रूप में उनकी निंदा की। कूगल कहते हैं कि सऊदी अधिकारियों को पुरुष संरक्षकता के सिस्टम को पूरी तरह से खत्म कर देना चाहिए। इसके तहत ही यहां महिलाओं का शोषण किया जाता है।
Courtesy by Mail Online
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