पं राजीव शर्मा (ज्योतिषाचार्य)। Sawan 2021: सावन माह के मंगलवार को मंगला गाैरी का व्रत व पूजन किया जाता है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि जिन अविवाहित कन्याओं के विवाह में बिलंब हो रहा हो, उनको यह व्रत करने से लाभ मिलता है। इस दिन विशेष तौर पर गौरी जी की पूजा की जाती है।चूंकि यह व्रत मंगलवार को किया जाता है, इसलिए इसे "मंगलागौरी" व्रत कहा जाता है। भगवान शिव के व्रत मुख्य रूप से पुरुषों द्वारा किये जाते हैं, परन्तु स्त्रियां इसके स्थान पर पूरे श्रावण मास या प्रत्येक मंगलवार को पार्वती जी के व्रत रखती हैं।यह व्रत विशेष तौर पर स्त्रियों के लिए ही है। इसके साथ ही मंगला गाैरी व्रत के लिए 27 जुलाई को पहला श्रावण मंगलवार व्रत, 3 अगस्त को दूसरा श्रावण मंगलवार व्रत, 10 अगस्त को तीसरा श्रावण मंगलवार व्रत और 17 अगस्त को चौथा श्रावण मंगलवार व्रत है।

पूजन व्रत विधान
इस दिन पूजा करने से पहले स्नानादि करके एक पट्टे या चौकी पर एक सफेद और एक लाल कपड़ा बिछायें।सफेद कपड़े पर नवग्रहों के नाम की चावल की नौ ढेरियां तथा लाल कपड़े पर षोडश मातृका की गेहूं की सोलह ढेरियां बनाएं।उसी पट्टे अथवा चौकी पर एक तरफ चावल व फूल रखकर गणेशजी की स्थापना करें।चौकी के एक कोने पर गेहूं की एक छोटी सी ढेरी रखकर उस पर जल से भरा कलश रखें।कलश में आम की एक पतली शाखा लाकर डालें फिर आटे का एक चौमुखा दीपक और सोलह धूपबत्ती जलायें।फिर पूजा का संकल्प लें।सबसे पहले गणेशजी की पूजा करें।उन पर पंचामृत,जनेऊ,चंदन,रोली,सिंदूर, सुपारी,लौंग,पान,चावल,फूल,विल्बपत्र, इलायची,फल,मेवा,दक्षिणा और प्रसाद चढ़ाकर उनकी आरती उतारें फिर कलश की पूजा करें।इसके पश्चात एक मिट्टी के सकोरे में आटा रखकर उस पर सुपारी रखें और दक्षिणा को आटे में दबा दें फिर विल्बपत्र चढ़ायें।

नव ग्रहों की करें पूजा
गणेशजी की पूजा के उपरांत नवग्रहों की पूजा करें,इसके बाद षोडश मातृका की बनी हुई सोलह गेहूं की ढेरियों की पूजा करें।इन पर रोली एवं जनेऊ न चढ़ायें।हल्दी,मेहंदी और सिंदूर चढ़ायें।

अब मंगलागौरी का करें पूजन
मंगला गौरी के पूजन के लिए एक थाली में चकला रखकर,उस पर मंगला गौरी की मिट्टी की प्रतिमा बनाएं या मिट्टी की पांच डलियां रखकर उन्हें मंगला गौरी मान लें।आटे की लोई बनाकर रख लें।पहले मंगलागौरी को पंचामृत स्नान करायें, स्नान के बाद वस्त्र धारण करवाएं,फिर नथ पहनाकर रोली,चंदन,हल्दी,सिंदूर,मेहंदी,काजल लगाकर श्रृंगार करें।फिर 16 प्रकार के फूल,16 माला,16 तरह के पत्ते,16 आटे के लड्डू,16 फल,5 तरह की मेवा,16 बार,16 बार सात तरह का अनाज,16 जीरा,16 धनियां,16 पान,16 सुपारी,16 लौंग,16 इलायची,एक सुहाग की डिब्बी में रोली,मेहंदी,काजल,हिंगुर,सिंदूर,तेल,कंघा,शीशा,16 चूड़ी,एक रुपया और वेदी दो उन पर दक्षिणा सहित चढ़ाकर मंगलागौरी की कथा सुने।एक चौमुखा दीपक बनाकर उसमें 16 तार की चार बत्ती बनायें और कपूर से आरती उतारकर परिक्रमा करें।16 लड्डुओं का बायना निकालें।इसके बाद भोजन में बिना नमक के एक ही अनाज की रोटी खाएं।दूसरे दिन मंगलागौरी को समीप के कुएँ, तालाब अथवा नदी में विसर्जित कर भोजन करें।
उद्यापन
मंगलागौरी व्रत का उद्यापन सावन के सोलह या बीस मंगलवार के व्रत करके करना चाहिए।उद्यापन के दिन कुछ न खायें।इस दिन ब्राह्मण द्वारा हवन कराकर,कथा सुने।सास को सुहाग पिटारी आदि देने का विधान है।