पं राजीव शर्मा (ज्योतिषाचार्य)। सावन के दूसरे सोमवार के दिन सोम प्रदोष व्रत' भी है जो भगवान शिव को अति प्रिय है। इसके अतिरिक्त इस दिन अति शुभ योग 'अमृत सिद्ध एवं सर्वार्थ सिद्ध योग ' भी रहेगा। इस योग में पूजा -पाठ, प्रदोष पूजन का द्विगुणित फल प्राप्त होगा। शिव कृपा प्राप्ति का सावन महीने में यह सर्वश्रेष्ठ दिन है इस दिन कुमारी पूजा,दुर्गा पूजा एवं हनुमानजी दुर्गा पूजन करना भी शुभ रहेगा। सावन महीने में भगवान शिव के विभिन्न स्वरूप का अपनी कामना अनुसार जैसे वैवाहिक सुख की कामना करने वालों को शिव के अर्धनारीश्वर रूप, स्वास्थ्य के लिए महामृत्युंजय रूप का ध्यान करने से अवश्य शिव की कृपा प्राप्त होगी।

1. सदाशिव रूप

जो इस संसार की सृष्टि करते हैं,तत्पश्चात सम्पूर्ण जगत का पालन भी करते हैं, ऐसे सत्यानन्द स्वरूप निर्मल एवं पूर्ण ब्रह्म सदाशिव रूप हैं।यह सृष्टिकाल में ब्रह्मा, पालन के समय विष्णु और संहार काल में रुद्र नाम धारण करते हैं।ऐसे सदाशिव का ध्यान करना चाहिए।

2. मंगल स्वरूप

जिसका मुखारविंद मंद मुस्कान की छटा से अत्यंत मनोहर दिखाई दे रहा है और जो चंद्रमा की कला से परम उज्जवल है।आध्यात्मिक आदि तीनों तापों को शांत कर देने में समर्थ है, उस सच्चिन्मय एवं परमानंद स्वरूप से प्रकाशित गिरिराजनन्दिनी पार्वती के भुजपाश से आवेष्टित है।ऐसे उनके मंगल स्वरूप का ध्यान करना चाहिए।

3. अर्धनारीश्वर रूप

नीलमणि और प्रवाल के समान सुंदर तीन नेत्रों वाले,जिनके चारों हाथों में पाश,लाल कमल,कपल और त्रिशूल हैं, जिनके आधे अंग में अम्बिकाजी और आधे में महादेव हैं और दोनों पृथक- पृथक श्रृंगारों से सज्जित हैं,एक के ललाट पर अर्ध चंद्र है और मस्तक पर मुकुट सुशोभित है, ऐसे अर्धनारीश्वर रूप का ध्यान करना चाहिए।

4. भगवान शंकर

वंदना करने से जिनका मन प्रसन्न हो जाता है, जिन्हें प्रेम अत्यधिक प्यारा है और जो प्रेम प्रदान करने वाले पूर्णानंदमय,भक्तों की अभिलाषा पूर्ण करने वाले, सम्पूर्ण ऐश्वर्य के एकमात्र आवास स्थान और कल्याणस्वरूप हैं।सत्य जिनका श्रीविग्रह है और जिनका ऐश्वर्य त्रि कालाबाधित है,जिनकी ब्रह्मा और विष्णु उपासना करते हैं, ऐसे भगवान शंकर का ध्यान करना चाहिए।

5. गौरी पति

जो गिरिराजकुमारी उमा के पति हैं,जिनकी कीर्ति का कहीं अंत नही है,जो माया के आश्रय होकर उससे अत्यंत हैं और जिनका स्वरूप अचिंत्य है,उन विमल बोधस्वरूप गौरी पति का ध्यान करना चाहिए।

6. महामहेश्वर

चांदी के पर्वत के समान कांति वाले,चंद्रमा को आभूषण रूप में धारण करने वाले,रत्नमय अलंकारों से जिनका शरीर उज्ज्वल है,जिनके हाथों में परशु तथा मृग,वर और अभय मुद्राएँ हैं,जो प्रसन्न है और पझासन पर विराजमान हैं, देवतागण जिनके चारों ओर खड़े होकर उनकी स्तुति कर रहे हैं, जो बाघ की खाल पहनते हैं, उन महामहेश्वर का ध्यान करना चाहिए।

7. पंचमुख सदाशिव

भगवान शंकर के पांच मुखों में क्रमशः उर्ध्वमुख,गजमुक्ता के समान हल्के रंग का,पूर्वमुख पीले रंग का, दक्षिणमुख सजल मेघ के समान नील वर्ण का, पश्चिममुख मुक्ता के समान भूरे रंग का और उत्तर जवापुष्प के समान गहरे लाल रंग का है,जिनकी तीन आंखें और मुखमंडल में नील वर्ण के मुकुट के साथ चंद्रमा सुशोभित हो रहा है ऐसे पंच मुख सदाशिव का ध्यान करना चाहिए।

8. महाकाल

प्रजा की सृष्टि करने वाले प्रजापति देव भी प्रबल संसार भय से मुक्त होने के लिए जिनको नमस्कार करते हैं, जो सावधान चित्त वाले ध्यान परायण महात्माओं के हृदय में सुख पूर्वक रहते हैं और चंद्रमा की कला,सर्पों के कंकण धारण करते हैं, उनका ध्यान अवश्य करें।

9. नीलकण्ठ

समुद्र मंथन के दौरान कालकूट नाम के विष को पीने वाले,दस हजार बालसूर्यों के समान तेजस्वी, सिर पर जटाजूट,ललाट पर अर्धचंद्रऔर मस्तक पर सर्पों का मुकुट धारण किये,चारों हांथों में क्रमशः जपमाला,त्रिशूल,नरकपाल,खट्ट वांग मुद्रा को धारण करने वाले श्री नील कंठ का ध्यान करना चाहिए।

10. पशुपति

जिनकी प्रभा मध्यान्हकालीन सूर्य के समान दिव्य रूप वाली है, जिनके मस्तक पर चंद्र विराजमान हैं,सर्प ही जिनके आभूषण हैं,जिनके तीन नेत्र क्रमशः चंद्रमा,सूर्य और अग्नि के परिचायक हैं जिन्होंने अपने हांथों में त्रिशूल,मुदगर, तलवार और शक्ति को धारण कर रखा है।ऐसे पशुपति का ध्यान अवश्य करें।

11. महामृत्युंजय

अष्टभुजाओं वाले,जिनके एक हाथ में अक्षमाला,दूसरे में मृगमुद्रा,दो हांथों से दो कलशों में अमृत रस लेकर उससे अपने मस्तक को आपलावीत कर रहें हैं और दो हांथों से उन्हीं का कलशों को थामे हुए हैं, शेष दो हाँथ अपने अंक पर रख छोड़े हैं ऐसे महामृत्युंजय शिव श्वेत पझ पर विराजमान हैं,मुखमंडल पर तीन नेत्र शोभायमान हो रहे हैं, ऐसे महामृत्युंजय का ध्यान सावन महीने में अवश्य करें।