भारत के मुख्य न्यायाधीश पी. सदाशिवम की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने इस मामले में सुशील शर्मा को राहत दी है. इस बेंच ने मामले पर अपना फ़ैसला 13 अगस्त, 2013 को सुरक्षित रख लिया था.

नैना साहनी युवा कांग्रेस के पूर्व नेता सुशील शर्मा की पत्नी थीं. सुशील शर्मा ने दो जुलाई, 1995 को गोली मार कर नैना की हत्या कर दी थी.

सुशील शर्मा को शक था कि उनकी पत्नी का मतलूब करीम नामक शख़्स के साथ अवैध संबंध है. इस शक के चलते ही उन्होंने नैना की हत्या की.

अदालत में पुलिस के ज़रिए पेश किए गए रिपोर्ट के मुताबिक़ दो जुलाई, 1995 को सुशील शर्मा गोल मार्केट स्थित जब अपने घर पहुंचे तब नैना साहनी फ़ोन पर किसी से बात कर रही थीं.

नैना साहनी की हत्या

सुशील शर्मा के आने पर नैना ने फ़ोन रख दिया.

सुशील शर्मा ने फ़ोन का रिडायल बटन दबा दिया. दूसरी ओर फ़ोन मतलूब करीम ने उठाया.

तंदूर कांड मामले में पूर्व कांग्रेस नेता की फांसी रद्द

इसके बाद सुशील शर्मा आपे से बाहर हो गए. उन्होंने इसके बाद अपनी लाइसेंस वाली रिवॉल्वर से नैना पर तीन गोली चलाई. पहली गोली नैना के सिर पर लगी जबकि दूसरी गोली गले पर.

तीसरी गोली के निशान घर में लगे एसी पर मिले. नैना की मौक़े पर ही मौत हो गई थी.

हत्या करने के बाद सुशील शर्मा नैना के शव को जनपथ पर स्थित अशोक यात्री निवास (अब इंद्रप्रस्थ होटल) में स्थित बगिया रेस्टोरेंट में ले गए और वहां के मैनेजर केशव कुमार के साथ मिलकर लाश को तंदूर में जलाने की कोशिश की.

सुशील शर्मा तब दिल्ली प्रदेश युवा कांग्रेस के अध्यक्ष थे और बगिया रेस्टोरेंट को चलाने का ठेका उन्हीं के पास था.

शव को तंदूर में डाला

सुशील शर्मा नैना के शव को पूरी तरह जलाने में कामयाब हो जाते, अगर दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल अब्दुल नज़ीर कुंजु और होम गार्ड के जवान चंद्र पाल ने उस दिन सुस्ती दिखाई होती.

बगिया रेस्टोरेंट ओपन एयर रेस्टोरेंट था. इन दोनों ने वहां से काफ़ी सारा धुंआ निकलते देखा.

संदेह की स्थिति में दोनों होटल की दीवार फांदकर रेस्टोरेंट तक पहुंचे.

इन दोनों ने बाद में अदालत में बयान दिया था कि मैनेजर केशव कुमार ने इन्हें बताया था कि तंदूर में कांग्रेस पार्टी के झंडे और बैनर जलाए जा रहे हैं. लेकिन इन दोनों ने पानी डाल कर जब आग बुझाया तो अधजली अवस्था में नैना साहनी के शवों के टुकड़े बरामद हुए.

सुशील शर्मा मौक़े से भी फ़रार हो गए और बाद में 10 जुलाई, 1995 को उन्होंने आत्मसमर्पण किया.

दिल्ली पुलिस ने सुशील शर्मा के ख़िलाफ़ 19 पन्नों की चार्ज़शीट दाख़िल की. इस चार्ज़शीट के आधार पर ट्रायल कोर्ट ने 2003 में सुशील शर्मा को मौत की सज़ा सुनाई थी.

2007 में दिल्ली हाई कोर्ट ने सुशील शर्मा की मौत की सज़ा को बरक़रार रखा था. तकरीबन छह साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने सुशील शर्मा की फांसी की सज़ा को उम्रक़ैद में तबदील कर दिया.

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