-जीपीएफ में डबल खाते से बढ़ी मुसीबत, 30 करोड़ मूलधन और करीब 22 करोड़ ब्याज फंसा

-2003 में हो शासन के निर्देश पर अलग हो गया था जीपीएफ अकाउंट, नहीं मिल रहा है ब्याज

-टीचर्स और यूनिवर्सिटी के एंप्लाइज का फंसा है पैसा, फ्यूचर में दिक्कत होना तय

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syedsaim.rauf@inext.co.in

GORAKHPUR: डीडीयू गोरखपुर यूनिवर्सिटी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। गोरखपुर यूनिवर्सिटी ईपीएफ खाते और ट्रेजरी का डाटा मैच को लेकर गोलमाल की स्थिति पैदा हो गई है। करीब 50 करोड़ रुपए से ज्यादा का गोलमाल सामने आया है, जिसको लेकर अधिकारियों से लेकर कर्मचारी तक सब परेशान हैं। फिलहाल इस मामले में फाइनेंस ऑफिसर ने सभी पुराने दस्तावेज मंगवाए हैं, जिसके आधार पर ट्रेजरी के जिम्मेदारों से बातचीत कर यूनिवर्सिटी के पैसे का पता लगाया जाएगा और इसे यूनिवर्सिटी के अकाउंट में वापस लाया जाएगा। अगर पैसा नहीं आता है, तो फ्यूचर में एंप्लाइज और टीचर्स को प्रॉब्लम फेस करनी पड़ सकती है।

15 साल से ज्यादा पुराना मामला

गोरखपुर यूनिवर्सिटी में कर्मचारियों का जीपीएफ ट्रेजरी में जमा होता था। सीएलए अकाउंट होने की वजह से इसमें एंप्लाइज और टीचर्स के जीपीएफ का पैसा भी इसी अकाउंट में आता था। साथ ही जितनी भी ग्रांट मिलती थी, वह भी इसी खाते में आती थी, जमा पैसे का ब्याज सरकार देती थी। लेकिन शासन ने 2003 में जीपीएफ अकाउंट अलग खुलवाने के निर्देश दिए और साथ ही प्रदेश में सीएलए अकाउंट भी बंद करवा दिए। इस दौरान यूनिवर्सिटी का करीब 30 करोड़ रुपया पुराने अकाउंट में बचा हुआ था।

लापरवाही में नहीं हुअा ट्रांसफर

गोरखपुर यूनिवर्सिटी के अकाउंट में इस तीस करोड़ रुपए को ट्रांसफर हो जाना चाहिए था। मगर जिम्मेदारों की अनदेखी और लापरवाही की वजह से उस वक्त पैसा ट्रांसफर नहीं हो सका। 2003 में सरकार ने सभी सीएलए अकाउंट बंद कर दिए, उसके बाद भी यूनिवर्सिटी का पैसा वहीं फंसा रहा और किसी ने उसे वहां से निकालने की जहमत गवारा नहीं की। मामले की जानकारी जिम्मेदारों को तब हुई जब 2015 में फाइनेंशियल ऑडिट हुई, लेकिन सब कुछ जानने के बाद भी किसी ने पैसा ट्रांसफर नहीं कराया और न ही मामला सॉल्व नहीं हो सका।

30 करोड़ रुपए वाला अकाउंट डीएक्टिव

मामले की जानकारी होने के बाद भी इसे संज्ञान न लेने की वजह से अकाउंट डीएक्टिवेट हो गया। इससे यूनिवर्सिटी के करीब एक हजार से ज्यादा एंप्लाइज और टीचर्स के खाते से कटे जीपीएफ का करीब 30 करोड़ रुपया यूं ही फंस गया। अकाउंट डीएक्टिव होने से यूनिवर्सिटी को ब्याज मिलना भी बंद हो गया। ऑडिट के बाद जब यूनिवर्सिटी को इसकी जानकारी हुई, तो जिम्मेदारों ने शासन को ब्याज के लिए लेटर लिखा है, लेकिन इन सबके बाद भी अब तक पैसा ट्रांसफर नहीं कराया जा सका है और यूनिवर्सिटी का 30 करोड़ मूलधन और करीब 22 करोड़ ब्याज मिलाकर कुल 50 करोड़ रुपए से ज्यादा पैसा फंसा हुआ है।

उस समय के अधिकारियों के मिस कम्युनिकेशन की वजह से पैसा ट्रांसफर नहीं हो सका। इस मामले से जुड़े दस्तावेज मंगवाए हैं। मामला समझने के बाद ट्रेजरी के अधिकारियों से बातचीत कर पैसा ट्रांसफर कराया जाएगा। जरूरत पड़ी तो शासन से भी बात की जाएगी।

- वीरेंद्र चौबे, फाइनेंस ऑफिसर, गोरखपुर यूनिवर्सिटी