- एनसीईआरटी की जगह प्राइवेट पब्लिशर्स की बुक्स दे रहे स्कूल

- क्लास एक से आठवीं तक के स्टूडेंट्स से हो रही कमाई

मेरठ। नया सेशन शुरू होते ही प्राइवेट स्कूलों में बुक्स की कमाई का खेल शुरू हो गया है। यह बुक्स तक नहीं बल्कि ड्रेस से लेकर एक्टिविटी तक भी है। स्कूल्स इस खेल का फायदा उठाने के लिए नेशनल काउंसिलिंग फॉर एजुकेशन रिसर्च एंड ट्रेंनिंग के बजाए प्राइवेट बुक्स पब्लिशर्स की किताबों से पढ़ाते हैं। जिसके कारण हर साल पेरेंट्स की जेब पर स्कूल और दुकानदार डाका डाल रहे हैं।

250 का सेट चार हजार में

पब्लिक स्कूलों में बुक्स के नाम पर पेरेंट्स की जेब ढीली की जा रही है।

एनसीईआरटी की बुक्स का जो सेट 250 रुपए में आता है। प्राइवेट पब्लिशर्स का वहीं सेट पेरेंट्स को दो से तीन हजार के बीच दिया जा रहा है।

150 के नीचे नहीं है कोई भी बुक

नर्सरी से लेकर आठवीं तक की क्लासेज के लिए एनसीईआरटी की किताबें हैं। यह किताबें बहुत सस्ती हैं, कोई भी किताब 50 रुपए से ऊपर नहीं हैं। वहीं प्राइवेट पब्लिशर्स की कोई भी किताब 150 रुपए से कम नहीं हैं।

बंधी हुई हैं दुकानें

पेरेंट्स की माने तो स्कूल पेरेंट्स को दुकान भी बताते हैं कि किताबें केवल वहीं से ली जा सकती हैं। प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबों में 20 से 50 प्रतिशत छूट देते हैं। लेकिन पेरेंट्स को एमआरपी पर ही किताबें लेनी पड़ती हैं। जबकि एनसीईआरटी बुक्स पर पांच परसेंट की छूट मिलती है।

नोटबुक्स में भी खेल

स्कूल स्टूडेंट को वहीं नोटबुक्स लेने को बोलते हैं। जिनपर उनके स्कूल का नाम हो स्टूडेंट्स के पास दूसरा कोई ऑप्शन ही नहीं होता है। इसका फायदा दुकानदार बड़ा उठाते हैं।

सख्ती का असर नहीं

सीबीएसई के ऑर्डर का असर नहीं दिखाई पड़ता हैं। सीबीएसई ने 2005 में जून में और 2009 में जुलाई में सभी स्कूलों को कई सर्कुलर जारी कर एनसीईआरटी की बुक्स से पढ़ाने से ही कहा था। इस साल सीबीएसई ने

सर्कुलर जारी कर एनसीईआरटी बुक्स लगाने के लिए स्कूलों से रिकॉर्ड मांगा है।

तो ये हैं अंतर

क्लास सलेबस प्राइस एनसीईआरटी

पहली इंग्लिश 200 50

दूसरी हिंदी 175 45

तीसरी इंग्लिश 275 50

छठी मैथ्स 220 40

सातवीं साइंस 280 50

आठवीं कम्प्यूटर्स 175 50

स्कूल्स अक्सर अपने सिलेबस देने के साथ ही हमें दुकानों के भी नाम दे देते हैं। बुक्स भी उन्हीं दुकानों पर ही मिलती हैं।

सतनाम कौर

स्कूलों ने बुक्स और ड्रेस के लिए अपनी दुकान फिक्स की होती हैं। ये हर साल किताब बदल देते हैं।

संदीप

मैंने तो नोट किया है इनकी बुक्स के कवर ही बदले हुए होते हैं, अंदर के चैप्टर सभी सेम होते हैं। एक दो पेज आगे पीछे कर बुक्स को फिर से नया बनाकर बेच दिया जाता है।

अलका

क्या कहते हैं स्कूल्स

एनसीईआरटी की बुक्स मार्केट में ज्यादा एविलेवल नहीं हो पाती हैं। केवल इसीलिए अन्य बुक्स लगानी पढ़ती हैं।

मधु सिरोही, प्रिंसिपल, एमपीजीएस

ऐसा नहीं है कुछ बुक्स एनसीईआरटी की है और कुछ प्राइवेट हैं। प्राइवेट बुक्स केवल वहीं लगाई हैं, जो मार्केट में नहीं है।

कपिल सूद, प्रिंसिपल, जीटीबी

हमने तो अधिकतर एनसीईआरटी की ही बुक्स लगाई है। एक दो बुक्स ही ऐसी होंगी जो नहीं मिली होंगी। केवल वहीं बुक्स अलग है।

प्रेम मेहता, प्रिंसिपल, सिटी वोकेशनल

स्कूल्स की कोशिश रहती हैं कि वह एनसीईआरटी की बुक्स ही लगाएं। अगर एक दो बुक्स नहीं मिलती हैं तो ही मजबूरी में बुक्स बदलनी पढ़ती है।

राहुल केसरवानी, सहोदय सचिव