नई दिल्ली (राॅयटर्स)। चार वैज्ञानिकों ने कहा कि चेतावनी के बावजूद केंद्र सरकार ने वायरस के संक्रमण को फैलने रोकने के लिए कड़े प्रतिबंध लागू नहीं किए। लाखों लोग बिना मास्क के धार्मिक तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी व विपक्षी नेताओं की राजनीतिक रैलियों में शामिल होते रहे। इस दौरान मोदी की कृषि नीतियों का विरोध करने के लिए हजारों किसान नई दिल्ली में अब भी धरना दे रहे हैं।

राॅकेट की तेजी से संक्रमण फैलने में नये वैरिएंट की भूमिका

दुनिया की दूसरी सबसे ज्यादा आबादी वाला देश भारत अब कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर से जूझ रहा है। संक्रमण की यह दूसरी लहर पिछले साल तुलना में बहुत ज्यादा गंभीर है। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि नये वैरिएंट या ब्रिटेन में पहचान किगए गए वैरिएंट की वजह से राॅकेट की तेजी से संक्रमण फैला होगा। शुक्रवार को भारत में कोविड-19 के 386,452 नये मामले सामने आए हैं। यह दुनिया में एक दिन में संक्रमण का सर्वाधिक मामला है।

मोदी या बीजेपी पर कितना होगा राजनीतिक असर

2014 के बाद जबसे मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने हैं, राॅकेट की तेजी से फैला कोरोना वायरस का यह संक्रमण उनके सामने सबसे बड़ा संकट है। अब यह देखना बाकी है कि इसका मोदी या उनकी पार्टी को राजनीतिक रूप से किस हर तक प्रभावित करेगा। अगला आम चुनाव 2024 में होना है। हाल के स्थानीय चुनाव में मतदान संक्रमण के तेजी से फैलने से पहले ही खत्म हो चुके थे। नये वैरिएंट के बारे में मार्च के शुरुआत में ही चेतावनी दी गई थी।

पीएम मोदी तक वैज्ञानिकों की चेतावनी पहुंची या नहीं?

इंडियन एसएआरएस-कोव-2 जेनेटिक्स कंसोर्टियम या आईएनएसएओजी ने मार्च की शुरुआत में ही नोवल कोरोना वायरस के नये वैरिएंट के बारे में चेतावनी जारी कर दी थी। एक वैज्ञानिक जो उत्तर भारत में एक रिसर्च सेंटर के डायरेक्टर हैं उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि यह जानकारी एक उच्च अधिकारी को दी गई थी जो प्रधानमंत्री को सीधे रिपोर्ट करते हैं। राॅयटर्स इस बात की ताकीद नहीं कर सका कि आईएनएसएओजी की यह चेतावनी पीएम मोदी तक पहुंचा या नहीं।

पीएमओ ने राॅयटर्स के सवालों का नहीं दिया जवाब

प्रधानमंत्री मोदी को वैज्ञानिकों की चेतावनी बताई गई थी या नहीं राॅयटर्स द्वारा पूछे जाने पर मोदी के कार्यालय ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। आईएनएसएसीओजी का गठन वैज्ञानिक सलाह के फोरम के तौर पर दिसंबर के लास्ट में सरकार द्वारा किया गया था। इसके गठन का उद्देश्य कोरोना वायरस के जीनोम वैरिएंट का पब्लिक हेल्थ पर खतरे का आंकलन करना था। आईएनएसएसीओजी ने देश की 10 प्रयोगशालाओं को एकसाथ किया जो वायरस के वैरिएंट पर शोध करने में सक्षम थे।

स्वास्थ्य मंत्रालय से भी गंभीर चेतावनी की गई थी साझा

सरकारी संस्थान इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज के डायरेक्टर व आईएनएसएसीओजी के सदस्य अजय परीदा ने राॅयटर्स को बताया कि आईएनएसएसीओजी शोधकर्ताओं ने पहली बार बी.1.617 की पहचान फरवरी में कर ली थी। इसे अब भारतीय वैरिएंट के नाम से जाना जा रहा है। 10 मार्च को आईएनएसएसीओजी ने अपनी फाइंडिंग स्वास्थ्य मंत्रालय की नेशनल सेंटर ऑफ डिसीज कंट्रोल (एनसीडीसी) से साझा कर लिया था। राॅयटर्स से उत्तर भारत के रिसर्च सेंटर के डायरेक्टर ने कहा कि उन्हें यह चेतावनी दे दी गई थी कि देश में तेजी से संक्रमण फैल सकता है।

महाराष्ट्र से आए 15-20 प्रतिशत सैंपल्स में नये वैरिएंट

इस व्यक्ति ने कहा कि इस जानकारी से भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय को अवगत करा दिया गया था। हेल्थ मिनिस्ट्री ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। इसी तारीख के आसपास आईएनएसएसीओजी ने स्वास्थ्य मंत्रालय के लिए मीडिया स्टेटमेंट की तैयारी शुरू कर दी थी। समाचार एजेंसी ने उस स्टेटमेंट के ड्राफ्ट को देखा है। फोरम की फाइंडिंग के हवाले से कहा गया है कि नये भारतीय वैरिएंट में वायरस के महत्वपूर्ण दो म्यूटेशन के बारे में जिक्र है जो मानव कोशिका के जुड़ जाते हैं। देश के सबसे प्रभावित राज्य महाराष्ट्र से आए 15 प्रतिशत से 20 प्रतिशत सैंपल्स में ये पाए गए हैं।

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