बड़ी तादाद में लोगों ने जताई सहमति
जानकारी के अनुसार 2007 में हुए फैसले के बाद से नेपाल की बेहद पुरानी हिंदू राष्ट्र की पहचान में अब फाइनली बदलाव हो चुका है। बता दें के यहां 80 फीसद से ज्यादा हिंदू आबादी बसती है। ऐसे में लाखों लोगों ने यहां के संविधान में इस तरह के बदलाव का ये सुझाव दिया। इतनी बड़ी तादाद में लोगों के ऐसे सुझाव के दबाव के कारण यहां के नेताओं को इस पक्ष में हामी भरनी ही पड़ी।

नए संविधान पर दी जानकारी
नए संविधान पर लोगों की राय का अध्ययन कर रही संविधान सभा ने इस बात की जानकारी दी कि ज्यादातर लोग धर्मनिरपेक्ष के स्थान पर हिंदू या 'धार्मिक स्वतंत्र' लिखे जाने के पक्ष में हैं। वहीं यूसीपीएन-माओ के प्रमुख पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड ने इस बाबत कहा कि धर्मनिरपेक्ष शब्द पूरी तरह से सटीक नहीं है। इस शब्द ने लाखों लोगों की भावनाओं को आहत किया है। ऐसे में अब इसे किसी अन्य शब्द से बदलने पर विचार किया जा रहा है। उन्हें निश्चित तौर पर लोगों की भावनाओं का सम्मान करना होगा।

जनता के चुनाव को ऊपर रखने का सुझाव
इस क्रम में आगे बढ़ते हुए लोगों ने संविधान में प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति को सीधे जनता की ओर से चुने जाने का प्रावधान रखने का भी सुझाव दिया। प्रचंड की पार्टी के अलावा नेपाली कांग्रेस, द कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-यूनिफाइड मा‌र्क्सवादी लेनिनवादी और मधेसी दलों ने भी 'धर्म निरपेक्ष' शब्द हटाने का समर्थन किया है। वहीं अब इस क्रम पर आगे बढ़ते हुए इसको एकजुट होकर सटीक नाम देने पर जोरो-शोरों के साथ काम शुरू कर दिया गया है। देखना ये है कि अब 'धर्मनिरपेक्ष' के नाम पर कौन सा नाम सर्वसम्मति के साथ चुना जाता है।

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