दहशत के वो चार घंटे
मैं गुडग़ांव की एक कंपनी में ग्रुप मैनेजर हूं। ऑफिस के काम से फॉरेन आना-जाना लगा रहता है। इस बार भी ऑफिस के काम से न्यूयॉर्क गया था। वहां से अपनी बहन, जो कनाडा के एम्सटर्डम में रहती हैं, से मिलने के बाद न्यूयॉर्क होते हुए मुझे इंडिया लौटना था। 22 मार्च की सुबह 7.45 बजे ब्रसेल्स के जेवेनटेम एयरपोर्ट पर पहुंचा। वहां चेकइन के बाद गेट नंबर-17 पर डिपार्चर की तैयारी में लगा। करीब 8 बज रहे होंगे। अचानक एक तेज धमाके की आवाज सुनाई पड़ी। कुछ समझ पाता, इसके पहले चीख-पुकार मच गई।
लोग इधर-उधर भागने लगे। एयरपोर्ट पर मौजूद सिक्योरिटी के लोग एलर्ट की मुद्रा में आ गए। इसके बाद हमें गेट नंबर-17 से 40 की तरफ बढऩे को कहा गया। हम लोग कुछ कदम आगे बढ़े ही थे कि एक और तेज धमाका हुआ। इस बार एयरपोर्ट के एक किनारे पर बस में ब्लास्ट हुआ था। वहां आग और धुएं का गुबार सा उठ रहा था। हम वहां से बमुश्किल ढाई-तीन सौ मीटर की दूरी पर थे। सारे लोग दहशत में थे। उस समय एयरपोर्ट पर तकरीबन आठ-नौ सौ लोग मौजूद रहे होंगे। चारों-तरफ अफरा तफरी। जहां-तहां लोग जख्मी हाल में पड़े कराह रहे थे। जख्मी लोगों की परवाह किए बगैर लोग अपनी जान लेकर इधर-उधर भाग रहे थे। घायलों के बैग और सामान इधर-उधर बिखरे पड़े थे।
जैसे जंग का मैदान बन गया एयरपोर्ट
ऐसा लग रहा था जैसे पल भर में पूरा एयरपोर्ट किसी जंग के बाद मैदान में तब्दील हो गया हो। करीब आधे घंटे हम जहां के तहां कोने में खड़े-खड़े अपनी खैरियत के लिए ऊपरवाले का नाम लेते रहे थे। खैर, थोड़े वक्त बाद वहां से हम सभी लोगों को वेयर हाउस ले जाया गया। हमारे पास जो बैग्स या सामान थे, जमा करा लिए गए। उस समय वहां पर बहुत ज्यादा ठंड भी थी। कुछ समझ में नहीं आ रहा था। लग रहा था पता नहीं क्या होगा। वहां कुछ घंटे रुकने के बाद हमें एक स्टेडियम में ले जाया गया। हमारा किसी से संपर्क भी नहीं हो रहा था। हर पल भारी गुजर रहा था। उसी समय सिक्योरिटी के जरिए पता चला कि कुछ अन्य जगहों पर भी बम ब्लास्ट हुए हैं।
डर से भूख-प्यास खत्म
बड़ी मुश्किल से व्हाट्सएप्प पर रांची में रहने वाले अब्बा और अम्मी से संपर्क हुआ। वे लोग काफी चिंतित थे। मैंने उन्हें एश्योर किया कि मैं ठीक हूं। नेटवर्क अभी जाम है। उसके बाद मेरा संपर्क नहीं हो पा रहा था। फिर नेटवर्क आने के बाद मैं अपने घर वालों के संपर्क में रहा, लेकिन लग रहा था कि पता नहीं यहां कभी भी किसी वक्त और बम ब्लास्ट हो सकते हैं। चारों तरफ हाई अलर्ट कर दिया गया था। भूख, प्यास और ऊपर से ठंड के कारण सभी की हालत खराब थी। सभी के लगेज और हैंड बैग्स भी एयरपोर्ट पर ही छूट गए थे। यहां तक कि लोगों के पासपोर्ट भी उनके बैग्स में ही रह गए थे। इसके बाद किसी तरह हम लोगों को पास के शहर ल्यूबन ले जाया गया। हमलोग किसी तरह तीन दिन तक वहीं पनाह लिए रहे। वहां पर इंडियन एम्बेसी से संपर्क किया गया, लेकिन सफलता नहीं मिली। इसके बाद जेट एयरवेज (जिस कंपनी का हमारा टिकट था) से संपर्क किया गया। फिर, हमें शुक्रवार की सुबह मुंबई लाया गया।
करीब से महसूस किया मौत को
अल्ला का रहमो-करम है कि मैं इस हादसे का शिकार होने से बच गया। बम ब्लास्ट और हमारे बीच कुछ मिनट का ही फासला था। एयरपोर्ट पर बम ब्लास्ट इतना खतरनाक हुआ था कि उसके छज्जे जगह-जगह से उड़ गए। वहां मौजूद सभी लोग बदहवास थे। किसी को भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था, लेकिन शुक्र है कि मैं अपने वतन सकुशल लौट आया हूं।
रांची में माता-पिता का हुआ बुरा हाल
बड़ी मुश्किल से गुजरे हैं वो पल
ब्रसेल्स एयरपोर्ट पर हमले के बाद सैयद तौसीफ अहमद के रांची में रह रहे वालिद तनवीर अहमद व वालिदा सोफिया अहमद का बेटे की चिंता में बुरा हाल हो गया था। उन्होंने बताया कि 22 मार्च की सुबह एक टीवी न्यूज चैनल के जरिए पता चला कि ब्रसेल्स एयरपोर्ट पर बम ब्लास्ट हुआ है। ऐसे में कुछ घंटे पहले ही बेटे से बात हुई थी, जो न्यूयार्क से ब्रसेल्स पहुंच रहा था। इससे वे लोग किसी अनहोनी को लेकर घबरा गए। बार-बार बेटे के नंबर पर संपर्क करने का प्रयास कर रहे थे, लेकिन संपर्क नहीं हो पा रहा था। दो घंटे बाद किसी तरह संपर्क हुआ। उसके बाद व्हाटसऐप के जरिए बेटे से संपर्क होने पर वे लोग कुछ राहत की सांस ले पाए, लेकिन उसके बाद भी जब तक बेटे की इंडिया में वापसी नहीं हुई, उनके रात-दिन बेचैनी में ही कटे।
बेटे के दीदार का इंतजार
तौसीफ की वालिदा सोफिया अहमद कहती हैं कि उनका बेटा अक्सर ऑफिशियल टूर पर विदेश जाता रहता है, लेकिन इस बार जो हुआ, वैसा सपने में भी नहीं सोचा था। बेटे की सकुशल वापसी से वह बेहद खुश हैं। वहीं, तौसीफ के वालिद तनवीर अहमद कहते हैं कि ब्रसेल्स में जो घटना घटी उसके बाद तो हमारे होश ही उड़ गए। आखिर मानवता के दुश्मन मासूमों का खून बहाकर क्या चाहते हैं? उन्होंने कहा कि बेटे की वतन वापसी तो हो गई है, लेकिन इंतजार यह है कि कब बेटे का दीदार हो पाएं।
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