-नन्हें मासूम के साथ बुजुर्ग महिला लिफ्ट खुलने का करते रहे इंतजार

- ताकत लगाने से बढ़ी मुश्किल, टेक्निशियन पहुंचने के बाद मिली राहत

- फैमिली की छूटी ट्रेन, बच्चे का मुंडन कराने के लिए जा रहे थे जसीडीह

GORAKHPUR: पैसेंजर्स को बेहतर फैसिलिटी देने और प्लेटफॉर्म पर पहुंचने के लिए सीढि़यां चढ़ने की मुसीबत से छुटकारा दिलाने के लिए गोरखपुर जंक्शन के प्लेटफॉर्म नंबर एक पर लगाई लिफ्ट उनके लिए मुसीबत का सबब बन गई। इस चार बाई चार की लिफ्ट में दो जिंदगियां 90 मिनट तक फंसी रही। इस दौरान उन्हें बाहर निकालने के बहुत जतन भी हुए, लेकिन कामयाबी नहीं मिल सकी। चार साल का नन्हा मासूम और 66 साल की बुजुर्ग महिला, उनके लिए दुनिया के सबसे लंबे प्लेटफॉर्म पर गुजरे यह 90 मिनट जिंदगी न भूलने वाली दास्तान बन गई। हालत यह रही कि डेढ़ घंटे के बाद जब वह लिफ्ट से बाहर आई, तो कुछ देर तक खामोशी के साथ एक जगह बैठी रहीं, वहीं नन्हा मासूम हैरतजदा लोगों को देखता रहा। यह सिस्टम पर एक बड़ा सवालिया निशान है, जिस स्टेशन को दुनिया के सबसे लंबे प्लेटफॉर्म का तमगा हासिल है और उसे ए-1 ग्रेड स्टेशन के तौर पर शामिल किया गया है, वहां किसी पैसेंजर्स को रेस्क्यू करने के लिए जिम्मेदारों को डेढ़ घंटे लग जा रहे हैं।

12 बजे लिफ्ट चली और फिर रुक गई

गोरखपुर जंक्शन के प्लेटफॉर्म नंबर 1 पर लगी लिफ्ट नंबर 4 पर नकहा नंबर 1 के पास रहने वाली एक फैमिली, जो बच्चे का मुंडन कराने जसीडीह जा रहे थे। जंगल नकहा नंबर 1 के रहने वाले सिद्धार्थ पांडेय ने बताया कि फैमिली में मां-पिता के साथ सिस्टर और उनके बच्चे भी साथ जा रहे थे। ट्रेन प्लेटफॉर्म नंबर 5 से जानी थी, इसलिए कुछ लोगों ने सीढ़ी का सहारा लिया, जबकि उनकी मां 66 साल की शांति देवी और उनके चार साल के नाती उमंग ने लिफ्ट की राह पकड़ी। अभी उन्होंने लिफ्ट में चढ़कर डोर क्लोज कर ऊपर जाने का बटन दबाया ही था कि अचानक झटके से लिफ्ट वहीं रुक गई। लिफ्ट में उम्र दराज शांति देवी और उनका नन्हें नाती सहम गए। नन्हें उमंग ने रोना शुरू किया, तो वहीं नानी उसका समझा-बुझाकर चुप कराने में लग गई।

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90 मिनट बाद पहुंचे टेक्निशयन ने निकाला बाहर

घटना की सूचना जिम्मेदारों को दी गई। इस बीच वहां की के जरिए बाहर से लिफ्ट खोलने की कोशिश की गई, लेकिन यह भी नाकाम रही। इसके बाद वहां मौजूद लोगों ने लोहे के रॉड और वहां पड़े दूसरे सामानों का इस्तेमाल कर लिफ्ट खोलने की कोशिश शुरू कर दी। इस बीच उन्हें 13020 बाघ एक्सप्रेस भी आती नजर आ गई। फैमिली मेंबर्स के फंसे होने की वजह से उन्हें डबल टेंशन हो गई। ट्रेन छूटने से ज्यादा लिफ्ट में फंसे लोगों की तबीयत खराब होने का डर सताने लगा। अंदर शांति देवी खुद की परवाह किए बगैर किसी तरह बच्चे को समझाने-बुझाने में लगी रही। करीब 90 मिनट के बाद टेक्निशियन पहुंचे और दरवाजे को किसी तरह काटकर फंसे बुजुर्ग और बच्चे को बाहर निकाला। सहमे बच्चे को देखकर उसका मां फफक कर रो पड़ी और उसे एक जगह बैठाकर पानी पिलाया। मां भी वहीं बैठ गई। इस दौरान वहां मौजूद उस बच्चे की नन्हीं बहन भी उसका सिर सहलाकर दिलासा देती रही।

टिकट की भी हो गई टेंशन

फैमिली मेंबर्स की मुश्किलें यही आकर खत्म नहीं हुई। जब सिद्धार्थ की मां और भांजा लिफ्ट से बाहर आ गए, तो उन्हें टिकट की भी टेंशन हो गई। ऐसा इसलिए कि जितनी देर में उन्हें लिफ्ट से बाहर किया गया, उतनी देर में उनकी ट्रेन आई और चली भी गई। अब उनका टिकट भी कोरे कागज से ज्यादा कुछ नहीं था। इसे लेकर वह यात्री मित्र कार्यालय पहुंचे और दास्तान बताई। यात्री मित्र ने पॉजिटिव रिस्पांस दिया और उनकी आपबीती सुनने के बाद जिम्मेदारों से बातचीत की और कोशिश की कि इनका सफर कान्टीन्यू हो सके और टिकट की वैल्यू बरकरार रहे। यात्री मित्र में बैठे जिम्मेदारों की मानें तो बाद में सभी रिपोर्ट आने के बाद उनका टिकट अलॉऊ कर दिया गया और वह अपने डेस्टिनेशन के लिए रवाना हुए।